30 दिन में 36 मर्डर, घर से खींचकर मारा, गर्दन काटी, तालाब में फेंका

पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले पूरे राज्य में हिंसा में 30 दिन में 36 पॉलिटिकल मर्डर हुए। 18 लोग तो सिर्फ वोटिंग वाले दिन यानी 8 जुलाई को मारे गए।

पश्चिम बंगाल हिंसा (Image:Social platform)

पश्चिम बंगाल में हुए पंचायत चुनाव के नतीजे आज यानी 11 जुलाई को आएंगे। पूरे राज्य में हिंसा में दूसरी पार्टियों के लोगों पर बम फेंके गए, फायरिंग की, घर से खींचकर मारा गया। ये सब सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स और दूसरे राज्यों से आई पुलिस के 59 हजार जवानों की तैनाती के बावजूद हुआ।

BSF के DIG सेंट्रल फोर्स की तैनाती के नोडल ऑफिसर थे। BSF के DIG एसएस गुलेरिया का कहना है, ‘जहां सेंट्रल फोर्स तैनात थीं, वहां हिंसा नहीं हुई और सेंसिटिव बूथ की हमें जानकारी नहीं दी गई।’

पश्चिम बंगाल में चुनाव से पहले हिंसा का इतिहास रहा है, इस बार भारी सुरक्षा के बावजूद हिंसा क्यों हुई, इस पर कोलकाता की रविंद्र भारती यूनिवर्सिटी के पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर और पॉलिटिकल एनालिस्ट बिश्वनाथ चक्रवर्ती का कहना है कि इसकी तीन बड़ी वजहें हैं…

7 जून को वेस्ट बंगाल कैडर के IAS ऑफिसर राजीव सिन्हा ने स्टेट इलेक्शन कमिश्नर का पद संभाला। एक दिन बाद ही यानी 8 जून को उन्होंने पंचायत इलेक्शन अनाउंस कर दिए। अनाउंसमेंट के पहले ऑल पार्टी मीटिंग बुलाने की परंपरा रही है, लेकिन सिन्हा ने ऐसा नहीं किया। इस पर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि ऐसा करना जरूरी नहीं है। विपक्ष के दबाव में 13 जून को ऑल पार्टी मीटिंग बुलाई गई। इस पर BJP के स्टेट प्रेसिडेंट सुकांत मजूमदार ने कहा कि ‘15 जून को नॉमिनेशन की आखिरी तारीख है। इससे दो दिन पहले बैठक बुलाने का कोई मतलब नहीं। कमिश्नर को चुनाव की तारीख अनाउंस करने से पहले मीटिंग बुलाना चाहिए था।’

बिश्वनाथ चक्रवर्ती पश्चिम बंगाल की इकोनॉमिक सिचुएशन को भी हिंसा की वजह बताते हैं। वे कहते हैं, ‘राज्य में इंडस्ट्रियलाइजेशन नहीं हुआ है। पढ़े-लिखे नौजवानों के पास नौकरी या काम-धंधा नहीं है। कुछ लोग बाहर चले जाते हैं, पर ज्यादातर यहीं रहते हैं। फिर ऐसे युवा काम के लिए नेताओं के पास घूमते हैं।’ ‘हर नेता का अपना एरिया होता है, जहां वो कमांड करता है। उसका पूरा सिंडिकेट चलता है। हर नेता की अपनी वाहिनी है। इनमें हजारों की संख्या में बेरोजगार लड़के शामिल होते हैं। पंचायतों में बहुत फंड आता है, इसके जरिए रोजगार पैदा होता है। नेता के करीबियों को काम मिल जाता है। ऐसे में लोग अपनी पार्टी को जिताने के लिए जान तक दांव पर लगा देते हैं।’

बंगाल में चुनावों में हिंसा का इतिहास रहा है। बिश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं, ‘2003 के पंचायत इलेक्शन में करीब 80 मौतें हुईं थीं। 2008 में 45 और 2013 में 31। अगले चुनाव यानी 2018 में मौतों की संख्या बढ़कर 75 पर पहुंच गई। इस बार 36 लोगों की मौत की खबर है। हालांकि ये आधिकारिक आंकड़ा नहीं है। सरकार हमेशा मौतों की संख्या कम करके बताती है, वास्तविकता में कहीं ज्यादा मौतें होती हैं।’

TMC के बाबर अली मुर्शिदाबाद के कपसडांगा में ब्लॉक लीडर थे। वे अपने दोस्त फूलचंद शेख के साथ एक दुकान पर चाय पी रहे थे। तभी 5-7 लाेग आए, नुकीले हथियारों से बाबर अली और फूलचंद पर हमला कर दिया। बाबर अली के समर्थक उन्हें बेलडांगा के अस्पताल लेकर गए, लेकिन वहां तक पहुंचने से पहले ही बाबर अली की मौत हो गई। फूलचंद मुर्शिदाबाद के मेडिकल कॉलेज में एडमिट हैं। उनकी हालत अब भी क्रिटिकल है।

रेजीनगर में 8 जुलाई को वोटिंग वाले दिन TMC की पंचायत कैंडिडेट बबीता खातून के ससुर यासिन शेख की हत्या कर दी गई। वे बूथ पर तैनात स्टाफ के लिए डिनर लेकर गए थे। लौटते वक्त उन पर बम से हमला किया गया। सेल्फ हेल्प ग्रुप की लीडर और यासिन की पत्नी रूपाली आरोप लगाती हैं कि ‘हमला कांग्रेस से जुड़े लोगों ने करवाया। मेरे पति की बॉडी जमीन पर पड़ी थी, लेकिन पुलिस ने हमें उनके पास तक जाने नहीं दिया। रात में डॉक्टरों ने बताया कि उनकी मौत हो गई है।’

TMC वर्कर साबिर उद्दीन शेख खारग्राम पुलिस स्टेशन के तहत आने वाले रतनपुर गांव में रहते थे। 8 जुलाई की सुबह 4 बजे उनके घर का दरवाजा खटखटाया गया। दरवाजा खोलते ही उपद्रवियों ने उन्हें बाहर खींच लिया। घसीटकर पास में बने तालाब पर ले गए। तालाब के किनारे ही शेख की गर्दन काट दी और शव फेंककर भाग गए।

इसी इलाके में कांग्रेस लीडर फूलचंद शेख का मर्डर हुआ था। इसका आरोप साबिर पर था। कहा जा रहा है कि साबिर को मारकर फूलचंद की हत्या का बदला लिया गया।

मुर्शिदाबाद के नौदा पुलिस स्टेशन में आने वाले गंगाधारी में कुछ लोग बम फेंक रहे थे, फायरिंग कर रहे थे। आरोप है कि ये लोग TMC से जुड़े थे। तभी कांग्रेस समर्थक 65 साल के लियाकत शेख को गोली लगी। उन्हें मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया, लेकिन रास्ते में ही उन्होंने दम तोड़ दिया।

इसी तरह लालगोला के छैतानी में TMC समर्थक बूथ पर हंगामा कर रहे थे। इसी दौरान CPM कार्यकर्ता रोशन अली पर डंडों और रॉड से हमला किया गया। इसमें वे गंभीर रूप से घायल हो गए।

पूर्वी बर्दवान जिले के आउसग्राम में CPM कार्यकर्ता रजिबुलहक पर कथित तौर पर TMC समर्थकों ने हमला किया। कोलकाता के NRS हॉस्पिटल में उनकी मौत हो गई। कूचबिहार के फलीमारी में एक मतदान केंद्र के पास BJP के पोलिंग एजेंट महादेव विश्वास की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस मामले में भी TMC समर्थकों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई है।

पूर्वी बर्दवान में नंदीग्राम के TMC एजेंट गौतम रॉय को मार दिया गया। आरोप CPM समर्थकों पर लगा। बताया गया कि उन्होंने रॉय को निशाना बनाकर बम फेंके थे। पूर्वी मेदिनीपुर के सोनाचुरा में TMC बूथ अध्यक्ष देव कुमार रॉय पर धारदार हथियारों से हमला किया गया। इसमें उनकी मौत हो गई। आरोप BJP समर्थकों पर है।

नदिया के छपरा में TMC कार्यकर्ता हमजार अली पर बम फेंककर उनकी हत्या कर दी गई। इसका आरोप कांग्रेस समर्थकों पर लगा।

मालदा के इंग्लिश बाजार थाने के नौघोरिया में उपद्रवियों ने बम फेंके। इसमें एक TMC उम्मीदवार की सास तस्लीमा की मौत हो गई। ऐसे ही एक हमले में मालदा के मानिकचौक में आने वाले बालुटोला में TMC कार्यकर्ता मालेक शेख की मौत हो गई और सात लोग घायल हो गए।

7 जुलाई की रात कूचबिहार के तूफानगंज में TMC कार्यकर्ता गणेश दास की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। इसका आरोप BJP समर्थकों पर है।

कूचबिहार के गीतलदाहा में BJP कार्यकर्ता चिरंजीत कारजी को गोली मार दी गई। तीन लोग गोली लगने से घायल भी हुए। फायरिंग का आरोप TMC समर्थकों पर है। अगले दिन 8 जुलाई को मालदा जिले में TMC कार्यकर्ता मतीउर रहमान पर हमला हुआ, इसमें उनकी मौत हो गई।

चुनावी हिंसा पर हमने TMC के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयप्रकाश मजूमदार से जब पूछा गया कि बंगाल में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई, सरकार रोक क्यों नहीं पाई? तो उनका जवाब था कि बड़े पैमाने पर जो हिंसा बताई जा रही है, उसका दूसरा साइड भी है। कुल 61,500 बूथ थे। इनमें से ज्यादा से ज्यादा 200 बूथ पर हिंसा हुई होगी। बाकी 61 हजार बूथ पर तो शांति से मतदान हुआ न।

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