
इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि: अपने साहसिक फैसलों के चलते कही जाती थीं ‘आयरन लेडी’

31 अक्टूबर 1984 को उन्हीं के अंगरक्षकों कर दी थी इंदिरा गांधी की हत्या
नई दिल्ली। आज 31 अक्टूबर देश की इकलौती महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि है। इंदिरा का जन्म 19 नवंबर, 1917 को हुआ था। आज ही के दिन 1984 में उनके अंगरक्षकों द्वारा गोली मारकर उनकी बेरहमी से हत्या कर दी गई थी।
इंदिरा गांधी ने 1966 से 1977 के बीच लगातार 3 बार देश की बागडोर संभाली और उसके बाद 1980 में दोबारा इस पद पर पहुंची।
राजनीतिक जीवन
बचपन से ही इंदिरा गांधी स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ चुकी थी। उन्होंने ‘बाल चरखा संघ’ की स्थापना की थी।
1930 में असहयोग आंदोलन के समय बच्चों की मदद से ‘वानर सेना’ बनाया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इंदिरा जेल भी गई।
सन् 1955 में इंदिरा कांग्रेस कार्य समिति और केंद्रीय चुनाव समिति की सदस्य बानी। 1956 में अखिल भारतीय युवा कांग्रेस और एआईसीसी महिला विभाग की अध्यक्ष बनीं।
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1959-1960 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष रही। इसके बाद इंदिरा गांधी 1966 से 1977 तक लगातार तीन बार भारत की प्रधानमंत्री बनी रही।
अपने राजनैतिक जीवन में उन्होंने कई बड़े फैसले लिए जिनमें से कुछ बहुत सफल हुए और कुछ का बहुत विरोध हुआ। ‘आयरन लेडी’ कही जाने वाली इंदिरा गांधी के साहसिक फैसलों में उनके दृढ़ निश्चय की झलक मिलती है।
चाहे बात 1971 के युद्ध में पाकिस्तान को सबक सिखाना हो या अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से आतंकी जनरैल सिंह भिंडरावाला को निकालने के लिए ऑप्रेशन ब्लू स्टार को मंजूरी देना हो। ये सब आसान निर्णय नहीं थे।
साल 1971 में भारत के हाथों पाकिस्तान को करारी शिकस्त मिली थी। पाकिस्तान किसी ना किसी बहाने से चीन और अमेरिका की ताकत पर फूलते हुए भारत को गीदड़ धभकियां दे रहा था।
25 अप्रैल 1971 को तो इंदिरा ने थलसेनाध्यक्ष से यहां तक कह दिया था कि अगर पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए जंग करनी पड़े तो करें, उन्हें इसकी कोई परवाह नहीं है।
14 दिसंबर को भारतीय सेना ने ढाका में पाकिस्तानी गवर्नर के घर पर हमला कर दिया। वहां पाकिस्तानी अधिकारियों की गुप्त मीटिंग चल रही थी।
जनरल नियाजी ने भेजा युद्धविराम का प्रस्ताव
इसके बाद नियाजी ने तुरंत युद्धविराम का प्रस्ताव भेज दिया, लेकिन भारत को ये मंजूर नहीं था। थलसेनाध्यक्ष ने कह दिया कि अब युद्धविराम नहीं बल्कि सरेंडर होगा।
कोलकाता से पूर्वी सेना के कमांडर जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ढाका पहुंचे।
नियाजी ने जनरल अरोड़ा के सामने सरेंडर के कागज पर हस्ताक्षर किए। सरेंडर के प्रतीक के तौर पर नियाजी ने अपनी रिवॉल्वर भी अरोड़ा को सौंप दी।
सरेंडर के बाद इंदिरा ने ऐलान किया कि भारत ने 14 दिनों के भीतर पाकिस्तान को झुकने पर मजबूर कर दिया।