विश्व महिला दिवस: इन महिलाओं के बुलंद हौसलों के आगे मुश्किलों ने घुटने टेके

international womens day

नई दिल्ली। आज 8 मार्च को पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रही है। इस मौके आज हम आपको दिल्ली की कुछ जुझारू महिलाओं की कहानी बताते हैं जिनके आगे मुश्किलें भी छोटी पड़ गई हैं।

किसी महिला ने अपने हौसले से शारीरिक बाधाओं से पार पाया, तो किसी ने हिम्मत दिखाकर बच्चों को उनके परिवारवालों से मिलवाया। किसी ने हलाला और बहु-विवाह के बाद अब हिजाब के खिलाफ मोर्चा खोला। ये महिलाएं घर के साथ-साथ दूसरे मोर्चों में भी बखूबी अपनी पहचान दर्ज करा रही हैं।

खोए बच्चे को तलाशने की आस में सीमा के पास पहुंचते हैं लोग

लापता बच्चों को ढूंढ़कर बिना बारी के तरक्की पाने वाली एएसआई सीमा ढका के पास लोग यू ट्यूब वीडियो देखकर पहुंचते हैं। इसमें वे लोग भी शामिल हैं, जिनके बच्चे दूसरे थाना क्षेत्रों से लापता हुए हैं और वो जांच अधिकारी से संतुष्ट नहीं हैं।

Seema Dhaka Delhi Police

वर्ष 2020 में खोए बच्चों को ढूंढ़ने पर तत्कालीन पुलिस आयुक्त एसएन श्रीवास्तव ने सीमा ढका को बिना बारी की तरक्की देने की घोषणा की थी।

समयपुर बादली थाने में तैनात सीमा ढका ने तीन महीने के भीतर 76 बच्चों को ढूंढ़ निकाला था, जिसके बाद उन्हें हेड कांस्टेबल से एएसआई बना दिया गया था। तरक्की मिलने के बाद भी सीमा ने यह काम बंद नहीं किया बल्कि डेढ़ साल में 74 और बच्चों को ढूंढ़ निकाला है।

इनमें कुछ ऐसे भी बच्चे हैं जो समयपुर बादली थाना क्षेत्र से नहीं खोए थे, यूट्यूब पर सीमा के बारे में देखकर बच्चों के परिजनों ने सीमा से संपर्क साधा था।

सीमा की देखरेख में हेडकांस्टेबल सुनीता और हेडकांस्टेबल मनोज की टीम बनाई गई है। इसमें मनोज ने 112 और सुनीता ने 75 बच्चों को ढूंढ़कर उनके परिवार से मिलाया है। इनकी तरक्की के लिए पत्र पुलिस मुख्यालय भेजा गया है।

बच्चियों के लिए पढ़ाई की अहमियत समझा रही समीना

मुस्लिम समाज में हलाला और बहु-विवाह की प्रथा के खिलाफ कानूनी जंग लड़ रही डॉ. समीना ने अब हिजाब को लेकर मोर्चा खोल दिया है।

dr. samina

उनका कहना है कि मुस्लिम लड़कियों की पढ़ाई इससे प्रभावित होगी। वह लोगों को समझा रही हैं कि वह स्कूल की वर्दी में बच्चियों को भेजें, हिजाब की जिद पर न अड़ें।

डॉ. समीना का कहना है कि बच्चियों की पढ़ाई को लेकर वैसे ही गंभीरता नहीं है। ऐसे में हिजाब का मुद्दा उछलने से लड़कियां पढ़ाई से और दूर होंगी, लिहाजा उन्होंने आवाज उठाई है। डॉ. समीना ओखला, बाटला हाउस व अन्य मुस्लिम इलाकों में घर-घर जाकर महिलाओं को समझा रही है।

वह बच्चियों के परिजनों को समझातीं हैं कि वह हिजाब के नाम पर बच्चियों की पढ़ाई न रुकवाएं। उनके विचारों से कई परिवारों ने सहमति भी जताई है और अपनी बच्चियों को स्कूल भेजने का फैसला किया है।

डॉ. समीना का कहना है कि वह कट्टरपंथियों के खिलाफ हैं। उनका यह भी कहना है कि वह तीन तलाक के मामलों में समझौते के पक्ष में हैं, क्योंकि अगर एक परिवार टूटता है तो कई लोग प्रभावित होते हैं। ऐसे में परिवार को जोड़ने का काम करना चाहिए। पिछले छह महीने में उन्होंने दिल्ली में 12 मामलों में बातचीत से सहमति कराई है।

संकल्प और हौसले की उड़ान से शारीरिक बाधाओं को पीछे छोड़ा

दिल्ली विवि के मैत्रेयी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर स्मृति सिंह ने अपने दृढ़ संकल्प और हौसले की उड़ान से शारीरिक बाधाओं को पीछे छोड़ दिया।

prof. smriti singh Maitreyi College

दृष्टिबाधित स्मृति सिंह द्वारा चलाई गई मुहिम के चलते जल्द ही दवा पट्टी पर विशेष क्यूआर कोड अंकित किए जाएंगे, जिसे स्कैन करने से दृष्टिबाधित व्यक्ति को दवा के बारे में पूरी जानकारी मिल सकेगी।

अंग्रेजी साहित्य की शिक्षिका डॉ. स्मृति सिंह ने कुछ दिनों पहले ही दवा की पट्टी पर क्यूआर कोड अंकित करने की मुहिम शुरू की थी।

उन्हें इस मुहिम में सेंट स्टीफंस अस्पताल के वरिष्ठ आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. मैथ्यू वर्गीज का सहयोग मिला। दवा की पट्टी पर दृष्टिबाधित लोगों के लिए कोई विशेष कोड अंकित नहीं होने के चलते उन्हें दवा के बारे में पूरी जानकारी नहीं मिल पाती।

इससे गलती होने की संभावना रहती है, जिससे जान भी जा सकती है। इस स्थिति को देखते हुए डॉ. स्मृति सिंह ने दवा की पट्टी पर क्यूआर कोड अंकित करने की मांग की थी, जिस पर दवा का नाम, दवा की मात्रा, दवा का जेनरिक नाम, उसका बैच नंबर, उत्पादन तिथि, एक्सपायरी तारीख और उसके साइड इफेक्ट की भी जानकारी हो।

इस मांग को लेकर उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय, आयुष मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय, नीति आयोग से अपील की थी और सोशल मीडिया अभियान भी चलाया था। इस पर उन्हें नीति आयोग के प्रमुख से क्यूआर डालने का आश्वासन मिला है।

डॉ. स्मृति सिंह ने बताया कि वे और उनके पति दोनों ही दृष्टिबाधित हैं। कोरोना की दूसरी लहर के समय वे संक्रमण की चपेट में आ गई थीं। ऐसे समय में उन्हें जरूरत महसूस हुई कि काश दवा की पट्टी पर क्यूआर कोड अंकित होता। इसी के बाद उन्होंने यह अभियान शुरू किया था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button