
Aditya-L1 Launched: आदित्य L1 चला सूर्य की ओर, भारत ने रचा एक और इतिहास
Aditya-L1 मिशन की सफल लॉन्चिंग हो गई है. इसरो के सबसे भरोसेमंद रॉकेट PSLV-XL आदित्य को उसके तय ऑर्बिट में छोड़ने निकल गया है. लॉन्च के करीब एक घंटे बाद आदित्य-एलवन अपनी तय कक्षा में पहुंचेगा. इसके बाद वह 16 दिन धरती के चारों तरफ पांच चक्कर लगाएगा. फिर सही गति मिलते ही सीधे L1 की तरफ निकल जाएगा.

ISRO अपने पहले सूर्य मिशन PSLV-C57/Aditya-L1 मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च कर चुका है. लॉन्चिंग श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के दूसरे लॉन्च पैड से 2 सितंबर 2023 को 11:50 बजे की गई. यह लॉन्चिंग पीएसएलवी-एक्सएल रॉकेट से की गई है. इस रॉकेट की यह 25वीं उड़ान थी.
सबसे पहले जानिए इस रॉकेट के बारे में…
- यह PSLV रॉकेट की 59वीं उड़ान है.
- PSLV-XL वैरिएंट की 25वीं उड़ान है.
- यह रॉकेट 145.62 फीट ऊंचा है.
- लॉन्च के समय वजन 321 टन रहता है.
- यह चार स्टेज का रॉकेट है. 6 स्ट्रैप ऑन होते हैं.
क्या करेगा रॉकेट?
- PSLV-XL रॉकेट आदित्य-L1 को धरती की निचली कक्षा में छोड़ेगा. जो 235 km x 19,500 km की पेरिजी और एपोजी वाली अंडाकार कक्षा है.
- आदित्य-L1 का वजन 1480.7 किलोग्राम है. लॉन्च के करीब 63 मिनट बाद रॉकेट से आदित्य-L1 स्पेसक्राफ्ट अलग हो जाएगा.
- रॉकेट वैसे तो आदित्य को 25 मिनट में ही आदित्य को तय कक्षा में पहुंचा देगा.
- यह इस रॉकेट की सबसे लंबी उड़ानों में से एक है. यानी सबसे ज्यादा समय की. इससे पहले इतनी लंबी यात्रा साल 2021 में ब्राजील के अमेजोनिया समेत 18 सैटेलाइट की उड़ान थी. उसमें एक घंटा 55 मिनट लगा था.
- उससे पहले सितंबर 2016 में इस रॉकेट ने 2 घंटे 15 मिनट की उड़ान भरी थी. तब इसने आठ सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में छोड़ा था.
लैरेंज प्वाइंट (Lagrange Point). यानी L. यह नाम गणितज्ञ जोसेफी-लुई लैरेंज के नाम पर दिया गया है. इन्होंने ही इन लैरेंज प्वाइंट्स को खोजा था. जब किसी दो घूमते हुए अंतरिक्षीय वस्तुओं के बीच ग्रैविटी का एक ऐसा प्वाइंट आता है, जहां पर कोई भी वस्तु या सैटेलाइट दोनों ग्रहों या तारों की गुरुत्वाकर्षण से बचा रहता है.
आदित्य-L1 के मामले में यह धरती और सूरज दोनों की गुरुत्वाकर्षण शक्ति से बचा रहेगा. लॉन्च के बाद आदित्य 16 दिनों तक धरती के चारों तरफ चक्कर लगाएगा. इस दौरान पांच बार ऑर्बिट बदला जाएगा. ताकि सही गति मिले. फिर आदित्य का ट्रांस-लैरेंजियन 1 इंसर्शन होगा. यहां से शुरू होगी 109 दिन की लंबी यात्रा. जैसे ही आदित्य-L1 पर पहुंचेगा, वह वहां पर एक ऑर्बिट मैन्यूवर करेगा. ताकि L1 प्वाइंट के चारों तरफ चक्कर लगा सके.
आदित्य-एलवन की जर्नी
- आदित्य-L1 अपनी यात्रा की शुरुआत लोअर अर्थ ऑर्बिट (LEO) से करेगा. यानी PSLV-XL रॉकेट उसे तय LEO में छोड़ देगा.
- इसके बाद धरती क चारों तरफ 16 दिनों तक पांच ऑर्बिट मैन्यूवर करके सीधे धरती की गुरुत्वाकर्षण वाले क्षेत्र यानी स्फेयर ऑफ इंफ्लूएंस (SOI) से बाहर जाएगा. फिर शुरू होगी क्रूज फेज. यह थोड़ी लंबी चलेगी.
- आदित्य-L1 को हैलो ऑर्बिट (Halo Orbit) में डाला जाएगा. जहां पर L1 प्वाइंट होता है. इस यात्रा में इसे 109 दिन लगेंगे. इसे कठिन इसलिए माना जा रहा है क्योंकि इसे दो बड़े ऑर्बिट में जाना है.
कठिनाई भी है रास्ते में…
- धरती के SOI से बाहर जाना. क्योंकि पृथ्वी अपनी ग्रैविटी से आसपास मौजूद हर चीज को अपनी ओर खींचती है.
- क्रूज फेज और हैलो ऑर्बिट में L1 पोजिशन को कैप्चर करना. अगर गति नियंत्रित नहीं हुई तो वह जल जाएगा.
आदित्य-L1 क्या है?
Aditya-L1 भारत की पहली अंतरिक्ष आधारित ऑब्जरवेटरी (Space Based Observatory) है. यह सूरज से इतनी दूर तैनात होगा कि उसे गर्मी तो लगे लेकिन खराब न हो. क्योंकि सूरज की सतह से थोड़ा ऊपर यानी फोटोस्फेयर का तापमान करीब 5500 डिग्री सेल्सियस रहता है. केंद्र का तापमान 1.50 करोड़ डिग्री सेल्सियस रहता है. ऐसे में किसी यान या स्पेसक्राफ्ट का वहां जाना संभव नहीं है.
क्या करेगा आदित्य-L1 स्पेस्क्राफ्ट?
- सौर तूफानों के आने की वजह, सौर लहरों और उनका धरती के वायुमंडल पर क्या असर होता है.
- आदित्य सूरज के कोरोना से निकलने वाली गर्मी और गर्म हवाओं की स्टडी करेगा.
- सौर हवाओं के विभाजन और तापमान की स्टडी करेगा.
- सौर वायुमंडल को समझने का प्रयास करेगा.
कौन-कौन से पेलोड्स जा रहे हैं आदित्य के साथ?
PAPA यानी प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य … यह सूरज की गर्म हवाओं में मौजूद इलेक्ट्रॉन्स और भारी आयन की दिशाओं और उनकी स्टडी करेगा. कितनी गर्मी है इन हवाओं में इसका पता करेगा. साथ ही चार्ज्ड कणों यानी आयंस के वजन का भी पता करेगा.
VELC यानी विजिबल लाइन एमिसन कोरोनाग्राफ… इसे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स ने बनाया है. सूर्ययान में लगा VELC सूरज की HD फोटो लेगा. इस स्पेसक्राफ्ट को PSLV रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा. इस पेलोड में लगा कैमरा सूरज के हाई रेजोल्यूशन तस्वीरे लेगा. साथ ही स्पेक्ट्रोस्कोपी और पोलैरीमेट्री भी करेगा.
SUIT यानी सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलिस्कोप… यह एक अल्ट्रावायलेट टेलिस्कोप है. यह सूरज की अल्ट्रावायलेट वेवलेंथ की तस्वीरे लेगा. साथ ही सूरज के फोटोस्फेयर और क्रोमोस्फेयर की तस्वीरें लेगा. यानी नैरो और ब्रॉडबैंड इमेजिंग होगी.
SoLEXS यानी सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर… सूरज से निकलने वाले एक्स-रे और उसमें आने वाले बदलावों की स्टडी करेगा. साथ ही सूरज से निकलने वाली सौर लहरों का भी अध्ययन करेगा.
SUIT यानी सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलिस्कोप… यह एक अल्ट्रावायलेट टेलिस्कोप है. यह सूरज की अल्ट्रावायलेट वेवलेंथ की तस्वीरे लेगा. साथ ही सूरज के फोटोस्फेयर और क्रोमोस्फेयर की तस्वीरें लेगा. यानी नैरो और ब्रॉडबैंड इमेजिंग होगी.
SoLEXS यानी सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर… सूरज से निकलने वाले एक्स-रे और उसमें आने वाले बदलावों की स्टडी करेगा. साथ ही सूरज से निकलने वाली सौर लहरों का भी अध्ययन करेगा.
सूरज की स्टडी क्यों… क्यों जरूरी है ये मिशन?
- सूरज हमारा तारा है. उससे ही हमारे सौर मंडल को ऊर्जा यानी एनर्जी मिलती है.
- इसकी उम्र करीब 450 करोड़ साल मानी जाती है. बिना सौर ऊर्जा के धरती पर जीवन संभव नहीं है.
- सूरज की ग्रैविटी की वजह से ही इस सौर मंडल में सभी ग्रह टिके हैं.
- सूरज का केंद्र यानी कोर में न्यूक्लियर फ्यूजन होता है. इसलिए सूरज चारों तरफ आग उगलता हुआ दिखता है.
- सूरज की स्टडी इसलिए ताकि उसकी बदौलत सौर मंडल के बाकी ग्रहों की समझ भी बढ़ सके.
– सूरज की वजह से लगातार धरती पर रेडिएशन, गर्मी, मैग्नेटिक फील्ड और चार्ज्ड पार्टिकल्स का बहाव आता है. इसी बहाव को सौर हवा या सोलर विंड कहते हैं. ये उच्च ऊर्जा वाली प्रोटोन्स से बने होते हैं. - सोलर मैग्नेटिक फील्ड का पता चलता है. जो कि बेहद विस्फोटक होता है.
- कोरोनल मास इजेक्शन (CME) वजह से आने वाले सौर तूफान से धरती को कई तरह के नुकसान की आशंका रहती है. इसलिए अंतरिक्ष के मौसम को जानना जरूरी है. यह मौसम सूरज की वजह से बनता और बिगड़ता है.