श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद में मुस्लिम पक्ष को तगड़ा झटका, हाईकोर्ट ने खारिज की याचिका

Krishna Janmabhoomi Land Dispute: श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह को लेकर चल रहे विवाद में मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका लगा है। हिंदू पक्ष को राहत देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया है।

श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह को लेकर चल रहे विवाद में मुस्लिम पक्ष को हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है। हिंदू पक्ष को राहत देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया है। आपको बता दे कि हाईकोर्ट ने सुनवाई पूरी करके अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। सभी 18 मुकदमों में एक ही प्रार्थना है जिसमें मथुरा में कटरा केशव देव मंदिर के साथ 13.37 एकड़ के परिसर से शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग की गई है। अतिरिक्त प्रार्थनाओं में शाही ईदगाह परिसर पर कब्ज़ा करने और मौजूदा ढांचे को गिराने की मांग की गई है।

मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका

न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की पीठ ने आदेश 7 नियम 11 (जन्मभूमि मुकदमों की स्वीकार्यता को चुनौती देने वाली) के तहत दायर मस्जिद समिति की दलीलों और देवता सहित हिंदू वादियों द्वारा उठाए गए तर्कों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। न्यायालय ने इस साल फरवरी में मस्जिद समिति की आपत्तियों पर सुनवाई शुरू की थी। न्यायालय के समक्ष, प्रबंध ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह (मथुरा) की समिति ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि हाईकोर्ट के समक्ष लंबित मुकदमों पर उपासना स्थल अधिनियम 1991, परिसीमा अधिनियम 1963 और स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट के अन्तर्गत केस की सुनवाई प्रतिबंधित है।

हिंदू पक्षकारों की दलील

  • ईदगाह का पूरा ढाई एकड़ एरिया श्रीकृष्ण विराजमान का गर्भगृह है। 
  • शाही ईदगाह मस्जिद कमेटी के पास भूमि का कोई ऐसा रिकॉर्ड नहीं है।
  • श्रीकृष्ण मंदिर तोड़कर शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण किया गया है।
  • बिना स्वामित्व अधिकार के वक्फ बोर्ड ने बिना किसी वैध प्रक्रिया के इस भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया है।

मुस्लिम पक्षकारों की दलील

  • मुस्लिम पक्षकारों की दलील है कि इस जमीन पर दोनों पक्षों के बीच 1968 में समझौता हुआ है। 60 साल बाद समझौते को गलत बताना ठीक नहीं है। लिहाजा मुकदमा चलने योग्य नहीं है।
  • उपासना स्थल कानून यानी प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के तहत भी मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है।
  • 15 अगस्त, 1947 के दिन जिस धार्मिक स्थल की पहचान और प्रकृति जैसी है वैसी ही बनी रहेगी। यानी उसकी प्रकृति नहीं बदली जा सकती है।

मालूम हो कि पूरा विवाद मथुरा में मुगल बादशाह औरंगजेब के समय की शाही ईदगाह मस्जिद से जुड़ा है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे भगवान कृष्ण के जन्मस्थान पर स्थित मंदिर को तोड़कर बनाया गया था। 1968 में श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान, जो मंदिर प्रबंधन प्राधिकरण है, और ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह के बीच एक ‘समझौता’ हुआ था। जिसके तहत दोनों पूजा स्थलों को एक साथ संचालित करने की अनुमति दी गई थी। मंदिर पक्ष का तर्क है कि समझौता धोखाधड़ी से किया गया था और कानून में अमान्य है। विवादित स्थल पर पूजा करने के अधिकार का दावा करते हुए, उनमें से कई ने शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग की है।

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