
पुण्यतिथि पर विशेष: हम कुछ भी कहें, पर असल में गांधी हमारी ताकत हैं

आजादी के संघर्ष में महात्मा गांधी ने सर्वाधिक अग्रणी भूमिका निभाई। आजादी की लड़ाई में नरम और गरम, दोनों तरह के नेता थे लेकिन सभी महात्मा गांधी को ही अपना नेता और मार्गदर्शक समझते थे। महात्मा गांधी ने अपने जीवन के 50-60 वर्ष देश की सेवा में लगाए।
देश में 1922 के बाद जगह-जगह विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई थी। इस पर कई लोग गांधी को यंत्र विरोधी कहने लगे। इस पर गांधी जी का कहना कहना था कि हमारा शरीर भी एक जटिल मशीन है, क्या मैं इसका विरोध कर सकता हूं?
उन्होंने स्वयं कपड़ा तैयार कर उसका इस्तेमाल करने की सलाह दी थी और चरखे के पक्ष में यह तर्क पेश किया था कि इससे करोड़ों लोगों को आजीविका मिलेगी।
1918 में अहमदाबाद में मिल मालिकों और मजदूरों के बीच मंहगाई भत्ते की दर को लेकर विवाद हुआ था। गांधी ने उन्हें हड़ताल करते रहने की सलाह दी और तब-तक हड़ताल करते रहने की प्रतिज्ञा दिलवाई, जब तक उनकी मांग पूरी नहीं हो पाती है। तब से आज तक मालिकों और मजदूरों के बीच विवादों के हल के लिए हड़ताल एक माध्यम बनी हुई है।
1932 में दलितों के लिए जब अंग्रेज सरकार पृथक मतदाता मंडल की व्यवस्था कर रही थी, तो गांधी ने इसके खिलाफ उपवास किया। वह चाहते थे कि समाज में छुआछूत जैसी बीमारी को दूर करना चाहिए।
गांधी जी ने छुआछूत के खिलाफ आमरण अनशन के द्वारा भी जागृति लाई थी। इसके कारण देश में सैकड़ों मंदिरों में दलितों का प्रवेश कराया गया। साथ ही सार्वजनिक कुएं भी दलितों को सुलभ हो पाए थे।
वर्ष 1931 में भगतसिंह, राजगुरू और सुखदेव जैसे क्रान्तिकारी नेताओं को अंग्रेज सरकार द्वारा फांसी दी गई थी।
फांसी रूकवाने के लिए गांधी तत्कालीन वाइसराय लार्ड इरविन से चार-पांच बार मिले और उन्हें पत्र भी लिखा था लेकिन उन्होंने गांधी जी की एक न सुनी। हालाँकि कई लोग आरोप लगाते हैं कि गांधी ने भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी नहीं रोकी।
महायुद्ध के दौरान सुभाष बाबू की मौत की खबर सुनते ही गांधी जी बहुत दुखी हुए। दोनों के बीच जो भी मतभेद रहे हों, लेकिन गांधी को राष्ट्रपिता कहने वाले भी सुभाष चंद्र बोस ही थे।
गांधी के विचार और दर्शन की तरफ दुनिया का झुकाव बढ़ा है। गांधी का स्मरण किए बिना हमारे देश का कोई भी कार्य सफल नहीं हो सकता। असल में गांधी हमारी ताकत हैं।