नागरिकता कानून पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला… धारा 6A की संवैधानिक वैधता पर लगाई मुहर

Supreme Court on Citizenship Act: नागरिकता कानून की धारा 6A की संवैधानिक वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने 4-1 के बहुमत से नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A को संवैधानिक बताया है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार (Supreme Court on Citizenship Act) से अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों की पहचान, पता लगाने और निर्वासन के लिए असम में तत्कालीन सर्बानंद सोनोवाल सरकार में NRC को लेकर दिए गए निर्देशों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए कहा है. बहुमत के फैसले से धारा 6A वैध करार दी गई है। सीजेआई जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने 6A में भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन के लिए दी गई 25 मार्च 1971 की कट ऑफ डेट को भी सही ठहराया। सुप्रीम कोर्ट अब से इस पहचान और निर्वासन प्रक्रिया की निगरानी करेगा.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा
किसी राज्य में अलग-अलग जातीय समूहों का होना आर्टिकल 29(1) का उल्लंघन नहीं है। याचिकाकर्ता को यह साबित करना होगा कि एक जातीय समूह अपनी भाषा और संस्कृति की रक्षा नहीं कर सकता क्योंकि वहां दूसरा जातीय ग्रुप भी रहता है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर किसी स्थिति का उद्देश्य से उचित संबंध है, तो उसे अस्थायी रूप से अनुचित नहीं ठहराया जा सकता। भारत में नागरिकता देने का एकमात्र तरीका रजिस्ट्रेशन नहीं है और धारा 6A को सिर्फ इसलिए असंवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि इसमें रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया नहीं दी गई है। इसलिए मेरा भी निष्कर्ष है कि धारा 6A वैध है।

सुनवाई के दौरान CJI ने कही ये बात
चीफ जस्टिस ने कहा कि केंद्र सरकार इस अधिनियम को अन्य क्षेत्रों में भी लागू कर सकती थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया। क्योंकि यह सिर्फ असम के लिए था। क्योंकि असम के लिए यह व्यावहारिक था। सीजेआई ने कहा कि 25 मार्च, 1971 की कट ऑफ डेट सही थी। स्वतंत्रता के बाद पूर्वी पाकिस्तान से असम में अवैध प्रवास भारत में कुल अवैध प्रवास से अधिक था। यह इसकी मानदंड की शर्त को पूरा करता है। धारा 6A न तो कम समावेशी है और न ही अति समावेशी है।

नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A क्या है?
*नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A, बांग्लादेश से असम में अवैध घुसपैठ का हल निकालने के लिए असम समझौते के हिस्से के तौर पर 1985 में पेश की गई थी। यह 1 जनवरी, 1966 से पहले असम में प्रवेश करने वाले लोगों को भारतीय नागरिकता देती है।

*साथ ही 1 जनवरी 1966 और 24 मार्च 1971 के बीच आने वाले लोगों को 10 साल की प्रतीक्षा अवधि के बाद नागरिक के रूप में रजिस्ट्रेशन की अनुमति देती है, इन 10 सालों में उन्हें मतदान का अधिकार नहीं होता है।

*सवाल है कि 24 मार्च 1971 के बाद आने वालों का क्या होगा? तो भारतीय नागरिकता कानून के मुताबिक, घुसपैठियों की जानकारी जुटाई जाएगी और उन्हें निर्वासित किया जाएगा। धारा 6A विवादास्पद रही है, इसकी संवैधानिकता को जनसांख्यिकीय चिंताओं के कारण सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।

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