तबादले से तंग आकर कांस्टेबल ने दिया नौकरी से इस्तीफ़ा… आठ महीने में 5 बार हुआ ट्रांसफर
UP POLICE NEWS: पुलिस डिपार्टमेंट में तबादले का भय हर किसी को सताता है पर बात अगर तबादले पे तबादला की हो तो ऐसा होना लाज़मी है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में तैनात एक सिपाही ने ट्रांसफर से परेशान होकर नौकरी से इस्तीफा दे दिया. दे भी क्यों न आठ महीने में 5 बार हुआ ट्रांसफर। सिपाही ने इस सिलसिले में उसने पुलिस कमिश्नर को पत्र भी लिखा है. इसके बाद प्रदेश के पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया है. हालांकि इस विषय में कोई भी पुलिस अफसर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है. आगे पढ़िए-आखिर क्या है पूरा मामला.
वर्तमान में लखनऊ के नगराम थाने में यूपी 112 में तैनात कांस्टेबल नियाज अहमद ने लखनऊ पुलिस कमिश्नर को त्याग पत्र भेजा है. इसमें कांस्टेबल ने लिखा है, बीते 8 माह में 5 स्थानांतरण (ट्रांसफर) से क्षुब्ध हो कर त्याग पत्र देने को बाध्य हो गया है. इस ट्रांसफर से वह मानसिक रूप से प्रताड़ित है. इसकी वजह से कोई अप्रिय घटना हो सकती है. स्थानांतरण से उसकी मानसिक स्थिति और पारिवारिक स्थिति को देखकर नौकरी से त्याग पत्र देना चाहता हूं.
जानबूझ कर किया जा रहा ट्रांसफर
पुलिस कमिश्नर को लिखे गए त्याग पत्र की गंभीरता को देखते हुए कमिश्नर अमरेंद्र सेंगर ने इस मामले की जांच डीसीपी मध्य रवीना त्यागी को देते हुए कांस्टेबल से बातचीत करने के निर्देश दिए हैं. वहीँ कांस्टेबल के मुताबिक, उसका जानबूझ कर ट्रांसफर किया जा रहा है जिससे वह बहुत परेशान है और अब नौकरी नहीं करना चाहता है.
क्या है पुलिसकर्मी के मानसिक तनाव में रहने की वजह
एक स्टडी के मुताबिक, देश में लगभग 24 फीसदी पुलिसकर्मी औसतन 16 घंटे व 44 फीसदी 12 घंटे से अधिक काम करते हैं. स्टडी के अनुसार, औसतन हर दिन पुलिसकर्मी 14 घंटे काम कर रहे हैं. इतना ही नहीं स्टडी के दौरान 73 फीसदी पुलिसकर्मियों ने बताया है कि उनके काम के बोझ का बुरा असर उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है. 85 फीसदी पुलिसकर्मियों की मानें तो वे अपनी ड्यूटी की वजह से परिवार को समय नहीं दे पाते हैं.
महज 60 छुट्टियां है पुलिस के लिए, वो भी मुस्किल से मिलती हैं: उत्तर प्रदेश पुलिस एसोसियासन अराजपत्रित के महासचिव आरडी पाठक ने बताया कि पुलिसकर्मियों को वर्ष भर में 60 छुट्टियां ही मिलती हैं, इन छुट्टियों का लाभ भी उन्हें किसी तरह का नहीं मिलता है. यदि किसी पुलिसकर्मी के घर में कोई आकस्मिक समस्या आ जाए तो घर दूर होने की वजह से उसे छुट्टी की जरूरत होती है, वह भी अधिकारी छुट्टी जल्दी मंजूर नहीं करते. ऐसे में पारिवारिक कलह के चलते पुलिसकर्मी मानसिक तनाव में चले जाते हैं.
साप्ताहिक अवकाश देने की हुई थी पहल
दस वर्ष पहले एक जून 2013 को तत्कालीन डीआईजी लखनऊ नवनीत सिकेरा ने पायलेट प्रोजेक्ट के तहत गोमती नगर थाने के पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश देने की पहल की थी. इसे कैसे लागू किया जाएगा इसके लिए रिसर्च भी की गई थी. इसका नतीजा सफल रहा. अवकाश का लाभ पाने वाले पुलिसकर्मियों का हेल्थ चेकअप भी कराया जाता रहा और उसमें भी काफी सुधार दिखा था. हालांकि, धीरे-धीरे इस पहल ने दम तोड़ दिया और फिर इसे आगे नहीं बढ़ाया जा सका.
विभाग में बढ़ रहा सुसाइड का ग्राफ
मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. देवाशीष शुक्ला कहते हैं कि कोरोना काल के बाद से अचानक से मानसिक तनाव इतना बढ़ गया है कि वह गुस्से में आकर अपनी आत्महत्या कर ले रहे हैं. खासकर वो पुलिसकर्मी जो 15 घंटे से अधिक की बिना छुट्टी के ड्यूटी करते हैं.
डॉ. देवाशीष के मुताबिक, पुलिसकर्मियों की पोस्टिंग आमतौर पर घर को छोड़िए संबधित जिले से भी काफी दूर होती है. ऐसे में परिवार से मिलना कम ही होता है. ऊपर से ड्यूटी के दौरान हमेशा अलर्ट रहना और सभी विभागों के अपेक्षा अधिक जवाबदेही होना, पब्लिक में निगेटिव इमेज, अधिकारियों की ओर से संवादहीनता, लंबी ड्यूटी, साप्ताहिक अवकाश न मिलना जैसे कारण उनके तनाव और मानसिक बीमारियों का मुख्य कारण बनते है और फिर अचानक से वो अपनी जीवन लीला समाप्त कर देते हैं.
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