नहाय खाय के साथ आज से शुरू हुआ महाछठ का पर्व, जानें पूरी डिटेल

छठ पूजा 2021
महाछठ का पर्व

हिंदू पंचाग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को महाछठ का पर्व मनाया जाता है। चतुर्थी तिथि पर नहाय-खाय से इस पर्व की शुरुआत हो जाती है।  

षष्ठी तिथि को छठ व्रत की पूजा, व्रत और डूबते हुए सूरज को अर्घ्य के बाद अगले दिन सप्तमी को उगते सूर्य को जल देकर प्रणाम करने के बाद व्रत का समापन किया जाता है।

इस दिन सूर्यदेव की बहन छठ मैया और भगवान सूर्य की पूजा का विधान है। धार्मिक मान्यता के अनुसार छठ का व्रत संतान की प्राप्ति, कुशलता और उसकी दीर्घायु की कामना के लिए किया जाता है।

इस बार आज 8 नवंबर से नहाय-खाय के साथ महाछठ का पर्व का आरंभ होगा। कल 9 नवंबर को खरना किया जाएगा और 10 नवंबर षष्ठी तिथि को मुख्य छठ पूजन किया जाएगा और अगले दिन 11 नवंबर सप्तमी तिथि को छठ पर्व के व्रत का पारण किया जाएगा।

सूर्य की बहन है छठी मैया

शास्त्रों के अनुसार छठ देवी भगवान ब्रह्माजी  की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन हैं, उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए ये पर्व मनाया जाता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि ब्रह्माजी ने सृष्टि रचने के लिए स्वयं को दो भागों में बांट दिया, जिसमें दाहिने भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया।

सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी या देवसेना के रूप में जाना जाता है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका एक नाम षष्ठी है, जिसे छठी मैया के नाम से जाना जाता है।

शिशु के जन्म के छठे दिन भी इन्हीं की पूजा की जाती है। इनकी उपासना करने से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है। पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी बताया गया है, जिनकी नवरात्रि की षष्ठी तिथि को पूजा की जाती है।

ऐसे हुई छठ पूजन की शुरुआत

ब्रह्मवैवर्त पुराण की कथा के अनुसार जब प्रथम मनु के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं हुई, इस कारण वे बहुत दुखी रहने लगे थे। महर्षि कश्यप के कहने पर राजा प्रियव्रत ने एक महायज्ञ का अनुष्ठान संपन्न किया।

जिसके परिणाम स्वरुप उनकी पत्नी गर्भवती तो हुई लेकिन दुर्भाग्य से बच्चा गर्भ में ही मर गया। प्रजा में मातम का माहौल छा गया। उसी समय आसमान में एक चमकता हुआ पत्थर दिखाई दिया, जिस पर षष्ठी माता विराजमान थीं।

जब राजा ने उन्हें देखा तो उनसे, उनका परिचय पूछा। माता षष्ठी ने कहा कि- मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री हूँ और मेरा नाम षष्ठी देवी है। मैं दुनिया के सभी बच्चों की रक्षक हूं और सभी निःसंतान स्त्रियों को संतान सुख का आशीर्वाद देती हूं।

इसके उपरांत राजा प्रियव्रत की प्रार्थना पर देवी षष्ठी ने उस मृत बच्चे को जीवित कर दिया और उसे दीर्घायु का वरदान दिया।

देवी षष्ठी की ऐसी कृपा देखकर राजा प्रियव्रत बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की पूजा-आराधना की। मान्यता है कि राजा प्रियव्रत के द्वारा छठी माता की पूजा के बाद यह त्योहार मनाया जाने लगा।

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