वरीना हुसैन ने अफगान के हालात पर जताई चिंता, भारत के लिए कही यह बात
फिल्म ‘लवयात्री’ से बॉलीवुड में डेब्यू करने वाली अफगानिस्तान में जन्मीं बॉलीवुड अभिनेत्री वरीना हुसैन ने वहां के बिगड़े हालात पर चिंता जताई है। वरीना ने कहा मेरी जिंदगी भी उनकी तरह है जो युद्धग्रस्त देश से पलायन के परिणामों से जूझ रहे हैं।
एक बेहतर जिंदगी की तलाश में मेरा परिवार एक देश से दूसरे देश को खोजने लगा। आखिरकार हम भारत पहुंचे, एक उदार और प्यार करने वाला देश, जिसने हमारा स्वागत किया और हमने इसे अपना घर बना लिया।
अस्तित्व के लिए लड़ने वाले लोगों की तरह मैंने भी कम उम्र में ही काम करना शुरू कर दिया था। मुझे नहीं पता था कि मैं एक दिन बॉलीवुड अभिनेत्री बन जाऊंगी। कई सालों के संघर्ष के बाद सलमान सर ने मुझे लॉन्च किया।
अफगानिस्तान से शिफ्ट हुआ परिवार
20 साल पहले जब अफगानिस्तान के हालात बिगड़े थे तब वरीना के परिवार ने देश छोड़ दिया था और उज्बेकिस्तान चला गया था। वरीना हुसैन 10 साल पहले भारत आईं और यहीं अपना घर बना लिया।
वरीना ने कहा कि तालिबान के कब्जे के बाद वह वहां के हालात समझ सकती हूं कि क्यों लोग काबुल छोड़ना चाह रहे हैं। वरीना का परिवार अमेरिका में रहता है हालांकि उन्होंने मुंबई में काम करना चुना।
पुराने दिनों को किया याद
वरीना ने कहा मैं अफगानिस्तान में रही हूं जहां परिवार के साथ पिकनिक एंजॉय किया है और आजादी की खुशबू थी।
हालांकि तब भी तालिबान के प्रभाव की वजह से वहां बहुत नियम थे। जैसे एक लड़की रात में अकेले बाहर नहीं जा सकती थी।
कई बार हम अपनी मां की दवा लेने के लिए रात में अकेले नहीं निकल पाते थे। यह कई वर्षों के युद्ध का नतीजा था।‘
अफगान लोगों को मिले अधिकार
वरीना कहतीं हैं अगर हम वाकई एक शांतिपूर्ण अफगानिस्तान चाहते हैं तो हमें अपनी दादी और उनके पूर्वजों के दौर मे जाना होगा, जब काबुल अपने फैशन, कला, संस्कृति, पर्यटन, व्यापार और स्वतंत्रता के लिए जाना जाता था।
नेतृत्व की बात करें तो अब समय आ गया है कि अफगानिस्तान के लोगों को बुनियादी स्वतंत्रता मिले कि वे अपना नेता चुन सकें।
महिलाओं पर पड़ेगा असर
अफगानिस्तान की महिलाओं पर बात करते हुए वरीना कहती हैं कि मुझे डर है कि इतने सालों में जो प्रगति हुई है वह गायब हो जाएगी।
सालों की लड़ाई के बाद महिलाओं को जो अधिकार मिले हैं वह खत्म हो जाएंगे और वह एक बार फिर से दूसरे दर्जे की नागरिक के रूप में हो जाएंगी जिन्हें बुनियादी अधिकार नहीं मिलेंगे।