
अहमदाबाद विमान हादसे की असली वजह? Black box investigation से होगी पुष्टि…
Ahmedabad Plane Crash: कल हुए अहमदाबाद में भयानक विमान हादसे ने सभी को झगझोर दिया है. सरदार वल्लभभाई पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से एयर इंडिया की फ्लाइट AI171 ने दोपहर 1:30 बजे टेकऑफ किया और एयरपोर्ट के बगल में स्थित मेघानीनगर के रिहायशी इलाके में क्रैश हो गई.
Ahmedabad Plane Crash: इस विमान में कुल 242 लोग सवार थे. यह फ्लाइट मेघानीनगर के एक मेडिकल हॉस्टल के ऊपर जाकर गिर गई, जिसके कारण कई मेडिकल स्टूडेंट्स की भी मौत हो गई. अहमदाबाद के अधिकारीयों के अनुसार 262 लोगों के मौत की पुष्टि कर चुके है.
इस प्लेन क्रैश को सबसे घातक विमानन हादसों में से एक माना जा रहा है. इस आर्टिकल में हम इस विमान हादसे से जुड़े टेक्निकल टर्म्स पर बात करेंगे, जिसमें ब्लैक बॉक्स समेत कई टेक्निकल चीजों के बारे में बातें की जाएंगी. इसके अलावा हम इस आर्टिकल में यह जानने की भी कोशिश करेंगे कि कैसे मॉर्डन टेक्नोलॉजी और डेटा विश्लेषण से इस तरह की घटनाओं के कारण का पता लगाया जाता है
ब्लैक बॉक्स जाँच?
ब्लैक बॉक्स को औपचारिक रूप से फ्लाइट रिकॉर्डर कहा जाता है. यह एक बेहद मजबूत डिवाइस होता है, जो हवाई जहास की उड़ान के दौरान उसमें हो रही कई महत्वपूर्ण जानकारियों को रिकॉर्ड करता है. इस बॉक्स का नाम ब्लैक बॉक्स है, लेकिन असल में इसका रंग काला नहीं बल्कि चमकीला नारंगी यानी ब्राइट ओरेंज होता है.
ब्लैक बॉक्स में दो हिस्से होते हैं. इसके पहले हिस्से का नाम फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR) और दूसरे हिस्से का नाम कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR) है. फ्लाइट में हुई दुर्घटना की जांच करने वाले विशेषज्ञों को ब्लैक बॉक्स में मौजूद इन्हीं दो हिस्सों की माध्यम से प्लेन क्रैश के कारणों का पता लगाने में मदद मिलती है.
फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR)
एफडीआर हवाई जहाज की उड़ान के दौरान उसके फंक्शन्स और स्थिति को रिकॉर्ड करता है.यह हवा की गति, ऊंचाई, दिशा, वर्टिकल एसेलेरेशन और प्लेन की स्थिति जैसे कई महत्वपूर्ण पैरामीटर्स को रिकॉर्ड करता है, जो किसी भी दुर्घटना के बाद जांच में मदद करती हैं.नए प्लेन्स में कम से कम 88 पैरामीटर्स को रिकॉर्ड करना जरूरी होता है और कुछ फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR) ऐसे भी होते हैं, जो 1000 से भी ज्यादा चीजों को ट्रैक करते हैं, जिनमें फ्लैप की स्थिति, ऑटोपायलट सेटिंग, या धुआं डिटेक्टर जैसी चीजें शामिल होती है.एफडीआर की खास बात है कि यह यह 6,000 मीटर से ज्यादा गहराई में पानी के अंदर भी सिग्नल भेज सकता है. एफडीआर से मिले डेटा से जांच करने वाली एजेंसियां और लोग कंप्यूटर-जनरेटेड वीडियो बनाकर, यह जानने की कोशिश करते हैं कि प्लेन क्रैश के दौरान यानी अंतिम क्षणों में क्या हुआ होगा. इस डेटा की मदद से बनी वीडियो से फ्लाइट के अंतिम क्षणों के देखा जा सकता है. इससे प्लेन की स्थिति, इंस्ट्रूमेंट रीडिंग, और अन्य डिटेल्स के बारे में पता चलता है.
कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR)
ब्लैक बॉक्स के दूसरे हिस्से का नाम कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर यानी CVR है. इसका काम कॉकपिट में बैठे पायलट्स की बातचीत और अन्य आवाजों जैसे- इंजन की आवाज़, स्टॉल अलर्ट, लैंडिंग गियर की एक्टिविटीज़ समेत और भी कई अन्य आवाज़ों को रिकॉर्ड करना होता है.इन आवाजों से इंजन की स्पीड, प्लेन के सिस्टम्स में आई खराबी समेत घटना के वक्त हुई कई चीजों का पता लगाया जा सकता है.कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर को आमतौर पर किसी विमान के पिछले हिस्से यानी टेल सेक्शन में रखा जाता है. इस कारण वो दुर्घटना में सबसे कम प्रभावित होता है.कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर को काफी सीक्रेटली रखा जाता है. अमेरिकी कानून के मुताबिक, सीवीआर की ऑडियो रिकॉर्डिंग को पब्लिक नहीं किया जाता और इसका लिखित ट्रांसक्रिप्ट भी सिर्फ जांच के दौरान या पब्लिक हीयरिंग यानी सार्वजनिक सुनवाई के दौरान ही जारी किया जाता है.
ब्लैक बॉक्स क्यों जरूरी होता है?
ब्लैक बॉक्स किसी भी प्लेन क्रैश के बाद, उस हादसे की जांच करने के लिए काफी जरूरी होता है. इससे हादसे का कारण पता करने में मदद मिलती है. क्योंकि उड़ान के हर पल की जानकारी देता है. ब्लैक बॉक्स, जांच करने वाले अधिकारियों को दुर्घटना से पहले ही घटनाओं को समझने में मदद करता है.उदाहरण के तौर पर दुर्घटना के वक्त कोई टेक्निकल प्रॉब्लम आई या नहीं, इंजन में कोई समस्या आई या नहीं, कोई पक्षी टकराया था या नहीं, हवा में विस्फोट हुआ था या नहीं, हादसा किसी इंसान गलती के कारण हुआ या नहीं, ऐसे सभी फैक्टर्स का पता लगाने में ब्लैक बॉक्स की बड़ी भूमिका होती है.
एक्सीडेंट के बाद ?
किसी भी प्लेन क्रैश के बाद ब्लैक बॉक्स को प्लेन के टूटे हुए टुक़ड़ों के बीच ढूंढा जाता है. उसके बाद उसे डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (DGCA) या एयरक्राफ्ट एक्सीडेंट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो (AAIB) की फोरेंसिक लैब में भेजा जाता है, जहां उसकी गहन जांच शुरू होती है.उसके बाद फोरेंसिक लैब के एक्सपर्ट्स ब्लैक बॉक्स के मेमोरी मॉड्यूल से डेटा निकालते हैं. उसके बाद उसमें रिकॉर्ड हुई आवाज़ों और उड़ान के डेटा को जोड़ते हैं. उसके बाद इस डेटा को रडार पर रिकॉर्ड हुए डेटा और एटीसी डेटा के साथ सिंक करके मैच कराया जाता है.
इस पूरे प्रोसेस में कुछ दिनों से लेकर कई हफ्तों तक का वक्त लग सकता है. अगर ब्लैक बॉक्स को दुर्घटना के दौरान ज्यादा क्षति नहीं पहुंची है तो जांच जल्दी हो जाती है और अगर ब्लैक बॉक्स ज्यादा क्षतिग्रस्त है, तो जांच करने में ज्यादा वक्त लगता है.
ब्लैक बॉक्स की शुरुआत
1930 के दशक में फ्रांस के इंजीनियर फ्रांस्वा हुस्सेनोट ने एक डेटा रिकॉर्डर बनाया था, जो फोटोग्राफिक फिल्म पर फ्लाइट के उड़ान की जानकारियों को रिकॉर्ड करता है. 1950 के दशक में ऑस्ट्रेलिया के डॉ. डेविड वॉरेन ने एक ऐसे डिवाइस को बनाने का सुझाव दिया जो उड़ान डेटा के साथ-साथ कॉकपिट (वो हिस्सा जिसमें पायलट्स बैठकर प्लेन उड़ाते हैं) की आवाजों को भी रिकॉर्ड कर सके.