Arctic: ‘बर्फ-मुक्त’ हो जाएगी धरती, दुनिया पर आने वाली है बड़ी आफत?

Ice-Free Arctic: अंटार्कटिका और आर्कटिक धरती का रेफ्रिजरेटर कहा जाता हैं. इनकी वजह से धरती ठंडी रहती है, अमरीका के कोलोराडो बोल्डर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की टीम ने पाया कि जीवाश्म ईंधन के जलने से होने वाले उत्सर्जन के कारण यह प्रभाव होगा, जो गर्मियों में ध्रुवीय भालू, सील और वालरस के आवास को ‘सफेद आर्कटिक’ से ‘नीले आर्कटिक’ में बदल देगा।

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आर्कटिक की समुद्री बर्फ गर्मियों में स्वाभाविक रूप से घटती है और सर्दियों में फिर से जम जाती है, लेकिन एक नए शोध में पाया गया कि यह क्षेत्र अगले एक दशक में ‘बर्फ-मुक्त’ हो सकता है। ‘बर्फ-मुक्त‘ का मतलब 100 प्रतिशत बर्फ की समाप्ति नहीं है बल्कि इसका अर्थ है कि महासागर में 10 लाख वर्ग किमी से भी कम बर्फ होगी। अमरीका के कोलोराडो बोल्डर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की टीम ने पाया कि जीवाश्म ईंधन के जलने से होने वाले उत्सर्जन के कारण यह प्रभाव होगा, जो गर्मियों में ध्रुवीय भालू, सील और वालरस के आवास को ‘सफेद आर्कटिक’ से ‘नीले आर्कटिक’ में बदल देगा।

10 साल के अंदर आर्कटिक में बर्फ देखने को नहीं मिलेगी. खासतौर से सितंबर महीने में. यानी जब वहां गर्मियां रहती हैं. अगर ऐसा हुआ तो दिक्कत वहां के जानवरों, पर्यावरण को होगा. नई प्रजातियों का घुसपैठ होगा. साथ ही समंदर के जलस्तर में भी बढ़ोतरी होगी. दुनिया के कई इलाके इसकी चपेट में आएंगे.

पूरी तरह से बदल जाएगा आर्कटिक का वातावरण
शोध के अनुसार 2035-2067 तक लगातार सितंबर में बर्फ न होने की आशंका है। उस अवधि के भीतर का सटीक वर्ष इस बात पर निर्भर करेगा कि दुनिया कितनी जल्दी जीवाश्म ईंधन जलाने की मात्रा को कम करती है। कोलोराडो बोल्डर विश्वविद्यालय में वायुमंडलीय और समुद्री विज्ञान की एसोसिएट प्रोफेसर और शोध की प्रमुख लेखिका एलेक्जेंड्रा जाह्न ने कहा कि यह आर्कटिक को पूरी तरह से अलग वातावरण में बदल देगा। इसलिए भले ही बर्फ-मुक्त स्थितियों को टाला नहीं जा सकता, फिर भी लंबे समय तक इनसे बचने के लिए कार्बन उत्सर्जन को यथासंभव कम रखने की आवश्यकता है।

पांच दशकों से लगातार घटती जा रही बर्फ
पिछले साल अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने जब सैटेलाइट ट्रैकिंग शुरू की तो आर्कटिक में छठी सबसे कम बर्फ देखी। इस दौरान बर्फ अपनी वार्षिक न्यूनतम सीमा 4.23 मिलियन वर्ग किमी तक पहुंच गई। यह कोई नया चलन नहीं है, लेकिन इसकी स्थिति बिगड़ती जा रही है। आर्कटिक समुद्री बर्फ कम से कम 1978 से सिकुड़ रही है, जब नासा ने सैटेलाइट के साथ इसका अवलोकन करना शुरू किया था।

तट पर रहने वाले लोगों के लिए बढ़ेंगी चुनौतियां
इन आगामी हालातों की वजह से न केवल आर्कटिक वन्यजीवों को नुकसान होगा क्योंकि उनका निवास स्थान पिघल जाएगा। बल्कि तट पर रहने वाले लोगों को भी संघर्ष करना पड़ेगा। समुद्री बर्फ, तट पर लहरों के प्रभाव को कम करती है, जिसका अर्थ है कि यदि यह नष्ट हो जाती है तो लहरें मजबूत और बड़ी होंगी, साथ ही अधिक कटाव का कारण बनेंगी।

लाखों लोगों का घर भी आर्कटिक
आर्कटिक में लगभग 40 लाख निवासी हैं, जिनमें से 10% स्वदेशी हैं
दुनिया की 10% मछलियां आर्कटिक में पकड़ी जाती हैं
आर्कटिक महासागर 14 मिलियन वर्ग किमी में फैला हुआ है

बचने का उपाय

हालांकि इससे बचने का उपाय भी वैज्ञानिकों ने बताया है कि अगर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर नियंत्रण रखा जाए तो शायद इससे बचा जा सकता है। विशेषकर कार्बन उत्सर्जन को रोकना बेहद जरुरी है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो आने वाले दिनों में कम बर्फ की वजह से हीटवेव हवाएं चलेंगी जिससे पुरी दुनिया का वातावरण बदल जाएगा और लोगों में अनेक प्रकार की बिमारी होने लगेंगी।

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