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Bharat Ratan: मोदी सरकार का बड़ा दांव ‘भारतरत्न’, चुनावी माहौल में सियासी समीकरण
PM Modi Politics: लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भारत सरकार ने कई हस्तियों को भारत रत्न देने का फैसला लिया है। इसमें पीवी नरसिंह राव से लेकर चौधरी चरण सिंह शामिल है। उनमें से कम से कम तीन तो ऐसे हैं, जिससे सीधे चुनावी समीकरण प्रभावित होने की संभावना है।
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Loksabha Election 2024: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की ओर से एक ही साल में पांच शख्सियतों को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न‘ देने की घोषणा करना किसी चुनावी वर्ष के लिए निश्चित तौर पर मास्टरस्ट्रोक से कम नहीं है। खास बात ये है कि इसके लिए जिन शख्सियतों को चुना गया है, उनमें से तीन तो ऐसे हैं, जिससे सीधे चुनावी समीकरण प्रभावित हो सकता है।
भारत सरकार ने एक के बाद एक भारत रत्न देकर कई संदेश दिए। इसके राजनीतिक और सामाजिक मायने बताए जा रहे हैं। इसे बीजेपी की सियासी रणनीति से लेकर सोशल इंजीनियरिंग का भी हिस्सा माना जा रहा है।
कर्पूरी ठाकुर को सम्मान सोशल इंजिनियरिंग की मिसाल
भारत रत्न के बहाने मोदी की अगुआई में केंद्र सरकार ने सोशल इंजिनियरिंग की भी मिसाल पेश की। पहल कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर बिहार में पिछड़ों और अब चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देकर जाट समुदाय को अपने रेडार में रखा। दिलचस्प बात है कि दोनों समुदाय अपने-अपने इस नायक को भारत रत्न देने की मांग सालों से कर रहे थे और दोनों से जुड़े समुदाय पिछले कुछ दिनों तक बीजेपी से दूर थे। लेकिन नरेंद्र मोदी ने भारत रत्न का दांव देकर न सिर्फ दोनों समुदाय के बीच बड़ा संदेश दिया ।
मोदी सरकार ने उन्हें यह सम्मान तब देने का फैसला किया, जब बिहार में जाति जनगणना करवा कर तत्कालीन महागठबंधन सरकार अपनी पीठ थपथपा रही थी और जिसे कांग्रेस नेता राहुल गांधी पूरे देश में करवाने की मांग कर रहे हैं।
हिंदुत्व राजनीति के प्रतीक लाल कृष्ण अडवाणी को सम्मान
भाजपा के दिग्गज नेता और पूर्व उपप्रधानमंत्री और पूर्व गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी पिछले दशकों से देश में हिंदुत्व की राजनीति के प्रतीक बन चुके हैं।
ऐसे में उन्हें भारत रत्न देकर नरेंद्र मोदी ने संकेत दे दिया कि वह देश में विरासत और हिंदुत्व के प्रतीक रहे जनप्रतिनिधियों और शख्सियतों को भी सम्मान देते रहे हैं। राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के तुरंत बाद लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देना एक खास संकेत और संदेश दोनों था। दरअसल, नरेंद्र मोदी ने पिछले दस सालों में प्रतीकों की राजनीति को बेहद प्रभावी तरीके से अंजाम दिया है। वे इसपर खास तरीके से काम करते हैं जिसका अपना सियासी संदेश रहा है।
उन्होंने राम मंदिर आंदोलन की जो बुनियाद रखी थी, उसकी नींव पर आज अयोध्या में पवित्र राम जन्मभूमि पर भगवान राम राम लला का भव्य और दिव्य मंदिर स्थापित हो चुका है। जिस वर्ष यहां प्राण प्रतिष्ठा हुई है, उसी साल उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा, हिंदुत्व की राजनीति के लिए बहुत बड़ा संदेश है।
किसान क्रांति के अगुवा चौधरी चरण सिंह को सम्मान
देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की पहचान आज भी किसान नेता के तौर पर बनी हुई है। उन्हें भारत रत्न देकर साफ तौर पर यह संदेश देने की कोशिश हुई है कि यह सरकार किसानों का सम्मान करती है।
मोदी सरकार ने एम. एस. स्वामीनाथन और चौधरी चरण सिंह को ऐसे समय में भारत रत्न दिया है जब एक बार फिर किसानों का मुद्दा गरम है। किसान एक बार फिर आम चुनाव से पहले किसान आंदोलन के मूड में है। लेकिन किसानों के अब तक के सबसे बड़े वैज्ञानिक और दूसरी ओर से किसानों के अब तक के सबसे नेता को भारत रत्न देकर मोदी सरकार ने बड़ा संदेश दे दिया। दरअसल, 2020 में जब दिल्ली में किसानों का आंदोलन हुआ तब सरकार बैकफुट पर आ गई थी। तब कहा गया कि सरकार ने वक्त रहते कदम नहीं उठाए, न ही सही तरीके से संवाद किया। इसका कुछ हद तक खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ा। लेकिन इस बार बीजेपी और केंद्र सरकार ने किसानों से जुड़े दो बड़े नाम को भारत रत्न देकर संदेश देने में जरूर सफलता पायी
है कि वह उनके मुद्दों के साथ है।
आर्थिक क्रांति के जनक पीवी नरसिम्हा राव को सम्मान
मोदी सरकार ने देश के पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता पीवी नरसिम्हा राव को मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ देने की घोषणा करके एक तरह से कांग्रेस को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है। राजनीतिक रूप से कोई राव से सहमत हो या न हो, लेकिन देश में आर्थिक क्रांति और उदारीकरण लाने में उन्होंने जिस नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया था, वह इतिहास में दर्ज हो चुका है। अगर उदारीकरण के पीछे पूर्व पीएम डॉक्टर मनमोहन सिंह का दिमाग था तो उसका कंट्रोल राव के पास था। कांग्रेस में रहते हुए राव के लिए पार्टी में आखिरी वक्त में सबकुछ ठीक नहीं रहा था। कहा जाता है कि बाद के समय में उनका गांधी परिवार से तालमेल नहीं बैठ पा रहा था। जिस तरह पीएम मोदी ने 2014 में सत्ता में आने के बाद सरदार पटेल के बाद एक-एक विरासत को अपने पाले में किया, नरसिंह राव को भारत रत्न देना भी उसी मुहिम का एक बड़ा हिस्सा है। दिलचस्प बात है कि मोदी सरकार ने ही कांग्रेस के एक और पूर्व नेता और राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को भारत रत्न दिया था। बाद के सालों में प्रणव मुखर्जी और नरेंद्र मोदी के बीच बेहद मधुर संबंध हो गए थे।
दक्षिण राज्यों के विस्तार पर पूरा फोकस
पिछले कुछ सालों से नरेंद्र मोदी की अगुआई में बीजेपी ने दक्षिण विस्तार पर अपना पूरा फोकस रखा है। शुक्रवार को जो तीन भारत रत्न की घोषणा हुई उसमें दो दक्षिण भारत के ही थे- नरसिंह राव और स्वामीनाथन। पिछले दिनों पद्म सम्मान में भी दक्षिण के नामचीन लोगों को प्रमुखता मिली। राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा से पहले पीएम मोदी ने दक्षिण के कई मंदिरों का दौरा किया था। उन्होंने काशी-तमिल समागम जैसी पहल की। दरअसल, बीजपी को पता है कि अगर पार्टी को 2019 के मुकाबले अपनी संख्या में बढ़ोतरी करनी है तो उसे दक्षिण के राज्यों में अपना विस्तार करना होगा। साथ ही कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों में अपने प्रदर्शन को बरकरार रखना होगा, जहां बीजेपी ने 2019 में बेहतर प्रदर्शन किया था। दक्षिण से भारत रत्न का सम्मान देकर बीजेपी उन आरोपों को भी खारिज करने की कोशिश कर रही है कि दक्षिण की उपेक्षा केंद्र सरकार करती है।