भारत रत्न पं. गोविंद वल्लभ पंत की जयंती : स्वतंत्रता संग्राम के समर्पित सिपाही

भारत रत्न गोविंद बल्लभ पंत

नई दिल्ली। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई ऐसे नायक भी रहे हैं जो सुर्ख़ियों से दूर चुपचाप अपने काम को अंजाम देते रहे। ऐसे लोग अपने कार्यों के बदौलत ही पहचाने भी गए। आजादी की लड़ाई के ऐसे ही एक सिपाही थे भारत रत्न पं. गोविंद बल्लभ पंत।

उप्र के पहले मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को राजनीतिक रूप से पिछड़े माने जाने वाले पहाड़ी इलाकों को देश के राजनीतिक मानचित्र पर जगह दिलाने का श्रेय जाता है।

गोविन्द बल्लभ पंत जी की वकालत के बारे में कई किस्से मशहूर थे। उनका मुकदमा लड़ने का ढंग निराला था, जो मुवक्किल अपने मुकदमों के बारे में सही जानकारी नहीं देते थे, पंत जी उनका मुकदमा नहीं लेते थे।

10 सितम्बर, 1887 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा स्थित खूंट गाव में जन्में गोविंद बल्लभ पंत ने वर्ष 1905 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। 1909 में उन्होंने कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की। काकोरी मुकद्दमें ने एक वकील के तौर पर उन्हें पहचान और प्रतिष्ठा दिलाई।

गोविंद बल्लभ पंत जी महात्मा गांधी के जीवन दर्शन को देश की जनशक्ति में आत्मिक ऊर्जा का स्त्रोत मानते रहे। गोविंद बल्लभ पंत जी ने देश के राजनेताओं का ध्यान अपनी पारदर्शी कार्यशैली से आकर्षित किया। भारत के गृहमंत्री के रूप में वह आज भी प्रशासकों के आदर्श हैं।

पंत जी चिंतक, विचारक, मनीषी, दूरदृष्टा और समाजसुधारक थे। उन्होंने साहित्य के माध्यम से समाज की अंतर्वेदना को जनमानस में पहुंचाया।

उनका लेखन राष्ट्रीय अस्मिता के पा‌र्श्व चिन्हांकन द्वारा लोगों के समक्ष विविध आकार ग्रहण करने में सफल हुआ। उनके निबंध भारतीय दर्शन के प्रतिबिंब हैं।

उन्होंने राष्ट्रीय एकता के लिए अपनी लेखनी उठाई। प्रबुद्ध वर्ग के मार्गदर्शक पंत जी ने सभी मंचों से मानवतावादी निष्कर्षों को प्रसारित किया।

राष्ट्रीय चेतना के प्रबल समर्थक पंत जी ने गरीबों के दर्द को बांटा और आर्थिक विषमता मिटाने के अथक प्रयास किए।

वर्ष 1937 में पंत जी संयुक्त प्रांत के प्रथम प्रधानमंत्री बने और 1946 में उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने। 10 जनवरी, 1955 को उन्होंने भारत के गृह मंत्री का पद संभाला।

सन 1957 में गणतन्त्र दिवस पर महान देशभक्त पन्त जी को भारत की सर्वोच्च उपाधि ‘भारतरत्न’ से विभूषित किया गया।

हिन्दी को राजकीय भाषा का दर्जा दिलाने में भी गोविंद वल्लभ पंत जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। सात मार्च, 1961 को गोविंद बल्लभ पंत का निधन हो गया।

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