
जन्मदिवस पर विशेष: डॉ. विक्रम साराभाई- जिनकी वजह से आज भारत लांच कर पता है सैटेलाइट

नई दिल्ली। भारत के अंतरिक्ष प्रोग्राम के ‘पितामह’ डॉ. विक्रम साराभाई भारत के प्रमुख वैज्ञानिक थे। डॉ. विक्रम साराभाई का जन्म अहमदाबाद में 12 अगस्त 1919 को एक समृद्ध जैन परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम श्री अम्बालाल साराभाई और माता का नाम श्रीमती सरला साराभाई था।
अहमदाबाद में उनके पैत्रिक घर “द रिट्रीट” में उस समय सभी क्षेत्रों से जुड़े महत्वपूर्ण लोग आया करते थे। इसका साराभाई के व्यक्तित्व के विकास पर महत्वपूर्ण असर पड़ा।
कैम्ब्रिज से लौटे थे भारत
डॉ. विक्रम साराभाई को भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक माना जाता है। उन्होंने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को आगे बढ़ाने और स्पेस रिसर्च में एक बड़ी भूमिका अदा की थी। विक्रम साराभाई की वजह से ही अहमदाबाद में फिजिक्स रिसर्च लैबोरेट्री की स्थापना हो सकी थी।
वो सन् 1947 में कैम्ब्रिज से वापस आए और 11 नवंबर, 1947 को अहमदाबाद में विक्रम साराभाई ने भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल) की स्थापना की। उस समय उनकी उम्र सिर्फ 28 वर्ष थी।
विक्रम साराभाई ने 1966-1971 तक पीआरएल की सेवा की।। उन्हें साल 1966 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था।। साल 1972 में उन्हें मरणोपरांत पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था।
भारत को बताया अंतरिक्ष कार्यक्रम का महत्व
डॉ. साराभाई परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष भी थे। उन्होंने अहमदाबाद में बाकी उद्योगपतियों के साथ मिल कर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (IIM) अहमदाबाद की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसरो की स्थापना उनकी महान उपलब्धियों में एक थी।
उन्होंने रूसी स्पेस एजेंसी स्पुतनिक की लॉन्चिंग के बाद उन्होंने भारत जैसे विकासशील देश के लिए अंतरिक्ष कार्यक्रम के महत्व के बारे में सरकार को राजी किया था। डॉ. साराभाई ने भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रम के महत्व पर जोर दिया।
एक रुपए की सैलरी पर करते थे काम
डॉ. विक्रम साराभाई ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बेंगलुरु के भारतीय विज्ञान संस्थान में नोबेल विजेता डॉक्टर सीवी रमन के साथ काम किया।
साराभाई और परमाणु उपकरणों के शांतिपूर्ण इस्तेमाल पर होने वाली कई कॉंन्फ्रेंस और अंतरराष्ट्रीय पैनलों के अध्यक्ष रहे।
वो कैम्ब्रिज फिलोसोफिकल सोसाइटी के साथी थे और अमरीकी जियो फिजिकल यूनियन के सदस्य थे। साल 1962 में इन्हें इसरो का कार्यभार सौंपा गया। उनकी निजी संपत्ति को देखते हुए उन्होंने अपने काम के लिए मात्र एक रुपए की टोकन सैलरी में काम किया।
डॉ. कलाम के गुरु
साराभाई ने इंडियन सैटेलाइट के लॉन्च और इस प्रोजेक्ट को शुरू किया था। ये उनके प्रयासों का ही नतीजा था कि भारत अपना पहला सैटेलाइट आर्यभट्ट लॉन्च कर सका था। साल 1975 में रूस के सेंटर से इसे लॉन्च किया गया था।
उन्हें भारत के मिसाइल मैन डॉक्टर अब्दुल कलाम का गुरु माना जाता था। 30 दिसंबर 1971 को साराभाई मुंबई (उस समय बॉम्बे) जाने की तैयारी में थे। वो रवाना होने से पहले एसएलवी डिजाइन का रिव्यू कर रहे थे।
उस समय उन्होंने अब्दुल कलाम को फोन लगाया था। डॉ. कलाम से फोन पर बात करने के एक घंटे के अंदर ही कार्डियक अरेस्ट की वजह से उनका निधन हो गया। उस समय उनकी उम्र मात्र 52 साल थी।