देश भर में गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल है बनारस की ईद

चांद का हुआ दीदार

बनारस। पवित्र माह-ए-रमजान में रोजे को पूरा करने के बाद ईद की खुशियां मिलती है। बनारस में ईद का पुराना इतिहास है। काशी में ईद का त्योहार सौहार्दपूर्ण ढंग से मनाया जाता है, यहाँ की ईद देश भर में गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल है।

काशी निवासी डॉ. मोहम्मद आरिफ ने बताया कि बनारस में गोविंदपुरा व हुसैनपुरा में सबसे पहले ईद मनाई गई थी। हिंदुस्तान में मुसलमानों के आने के साथ ही ईद मनाने के सबूत मिलते हैं।

जहां तक बनारस की बात है यहां मुस्लिम सत्ता की स्थापना से पूर्व ही मुस्लिम न सिर्फ आ चुके थे बल्कि कई मुस्लिम बस्तियां भी बस गई थीं।

दालमंडी के निकट गोविंदपुरा और हुसैनपुरा में ईद की नमाज सबसे पहले पढ़े जाने का संकेत तवारीखी किताबों से जाहिर है।  डॉ. आरिफ ने बताया कि बनारस के मुसलमानों की ईद को देखकर कुतुबुद्दीन ऐबक को आश्चर्य हुआ था।

ईद की नमाज के बाद बनारस में जो सौहार्दपूर्ण माहौल था, उसमें हिंदू-मुसलमान की पहचान करना मुश्किल था। यह बनारसी तहजीब थी जो देश में मुस्लिम सत्ता की स्थापना के पूर्व ही काशी में मौजूद थी। इस्लामी विद्वान मौलाना साकीबुल कादरी कहते हैं कि ईद रमजान की कामयाबी का तोहफा है।

उलेमा मौलाना डॉ. शफीक अजमल का कहना है कि ईद का मतलब केवल यह नहीं कि महीने भर जो इबादत करके नेकियों की पूंजी एकत्र किया है उसे बुरे और बेहूदा कामों में जाया कर देना बल्कि ईद का मतलब है कि दूसरों को खुशियां बांटना, दूसरों की मदद करना ईद का सबसे बड़ा मकसद है।

मौलाना अजहरुल कादरी ने ईद की तवारीखी हैसियत पर रौशनी डालते हुए बताया कि सन दो हिजरी में सबसे पहले ईद मनायी गई। पैगंबरे इस्लाम नबी ए करीम हजरत मोहम्मद का वो दौर था।

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