Rakhi Special Story: 300 सालों से बहनों ने नहीं मनाया रक्षाबंधन का पर्व
अजब गजब: अनहोनी के डर से इस गांव के लोगों ने रक्षाबंधन मनाना ही छोड़ दिया। भाई-बहन के पावन प्यार के प्रतीक रक्षाबंधन पर्व पर अनूठे डर की यह कहानी संभल शहर से 3 किलोमीटर दूर गवां मार्ग पर बसे बेनीपुर चक गांव की है। बेनीपुर चक गांव में 300 से अधिक वर्षों से रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाया जाता है। गांव निवासी सौदान सिंह, रघुनाथ सिंह, सियाराम सिंह आदि बुजुर्गों का मानना है कि कहीं बहनें उपहार में जमीनें न मांग ले और उन्हें गांव छोड़ना पड़े, इसलिए वे यह त्योहार ही नहीं मनाते।
त्योहार न मनाने के पीेछे की कहानी बड़ी दिलचस्प है। ठाकुर के परिवारों में कोई बेटा नहीं था। इसके कारण उनकी बेटियां यादवों के बेटों को अपना भाई मान उन्हें राखियां बांधती थीं। ठाकुर की एक बेटी ने यादव भाई को राखी बांधकर पूरे गांव की जमींदारी मांग ली थी। राखी के बदले जमींदारी मांग लेने पर यादवों ने गांव छोड़ने का निर्णय लिया।
ठाकुर की बेटी ने कहा कि वह तो मजाक कर रही थी। गांव के ठाकुरों ने भी समझाया लेकिन यादव नहीं माने और सब कुछ छोड़कर संभल जिले में बेनीपुर चक गांव में आकर बस गए। तब से यहां यादव परिवारों ने फैसला किया कि अब वह राखी नहीं बंधवाएंगे। पता नहीं फिर कोई बहन जमींदारी मांग ले, तभी से ये परंपरा निरंतर चली आ रही है। संभल से आदमपुर मार्ग पर लगभग 5 किलोमीटर दूरी पर स्थित गांव बेनीपुर चक बदलते वक्त के साथ आधुनिकता के ढांचे में ढल रहा है।
इसके बावजूद रक्षाबंधन न मनाने की 300 साल पुरानी परंपरा अभी भी कायम है। गांव के जबर सिंह बताते हैं कि उनके बुजुर्ग अलीगढ़ की तहसील अतरौली स्थित गांव सेमरा में ही रहते थे। गांव यादव और ठाकुर बाहुल्य था। यहां पर यादव परिवार की ही जमींदारी थी। दोनों जाति के लोगों में घनिष्ठता थी।