शब्दों के बादशाह थे गोपालदास ‘नीरज’, आज भी जीवंत हैं उनके गीत

मुंबई/अलीगढ़। आज ही के दिन यानी 04 दिसंबर साल 1925 में पद्मभूषण से सम्मानित हिंदी के साहित्यकार, कवि, लेखक और गीतकार गोपालदास सक्सेना ‘नीरज’ का जन्म हुआ था। उनके गीतों के लिए उन्हें तीन बार फ़िल्म फेयर पुरस्कार भी मिला।

शब्द शिल्पी गोपालदास ‘नीरज’ के रचे तमाम गीतों की खुशबू ताउम्र लोगों को महकती रहेगी।  उनके गीतों में जीवन का नजरिया है, प्रणय है और वेदना भी है।

उनका मानना था कि 1965 में आई आई उनकी फिल्म ‘नई उमर की नई फसल’ का गीत कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे… और मेरा नाम जोकर फिल्म के गीत ए भाई जरा देख के चलो, आगे ही नहीं पीछे भी… इन दोनों में जीवन का दर्शन छिपा है।

वह गर्व से कहते थे कि आत्मा का शब्द रूप है काव्य। मानव होना यदि भाग्य है तो कवि होना मेरा सौभाग्य…। मेरी कलम की स्याही और मन के भाव तो मेरी सांसों के साथ ही खत्म होंगे।

वे पहले व्यक्ति थे जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया, पहले पद्म श्री से, उसके बाद पद्म भूषण से।

गोपालदास सक्सेना ‘नीरज’ का जन्म 4 जनवरी 1925 को उप्र के इटावा जिले के ब्लॉक महेवा के निकट पुरावली गाँव में हुआ था। मात्र 6 वर्ष की आयु में पिता का निधन हो गया।

1942 में एटा जिले के राजकीय इंटर कॉलेज से हाई स्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। शुरुआत में इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया उसके बाद सिनेमाघर की एक दुकान पर नौकरी की।

फिर दिल्ली जाकर सफाई विभाग में टाइपिस्ट की नौकरी की। वहाँ से नौकरी छूट जाने पर कानपुर के डीएवी कॉलेज में क्लर्की की। फिर बाल्कट ब्रदर्स नाम की एक प्राइवेट कम्पनी में पाँच वर्ष तक टाइपिस्ट का काम किया।

नौकरी करने के साथ प्राइवेट परीक्षाएँ देकर 1949 में इण्टरमीडिएट, 1951 में बीए और 1953 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से एमए किया। मेरठ कॉलेज में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया।

उसके बाद वे अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हो गये और मैरिस रोड जनकपुरी अलीगढ़ में स्थायी आवास बनाकर रहने लगे। 19 जुलाई 2018 को नीरज जी महाप्रयाण पर चले गए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button