
Ground Zero Review: जोश के साथ रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानी, BSF के रोल में छाए इमरान
Ground Zero Review: बॉलीवुड स्टार इमरान हाशमी की फिल्म ‘ग्राउंड जीरो’ थिएटर में आ चुकी है. इस फिल्म में इमरान के साथ सई ताम्हणकर और जोया हुसैन भी हैं. फिल्म का निर्देशन तेजस देओस्कर ने किया है.
Ground Zero Review: अभी 22 अप्रैल को पहलगाम की वादियों में गूंजी गोलियों की आवाज, एक बार फिर आतंकवाद के नापाक साये को उजागर कर गई. ऐसे ही 22 साल पहले, जब दुश्मन सरहद पार से दहशत फैलाने की हर मुमकिन कोशिश कर रहा था, तब देश पर मर मिटने वाला एक ऐसा बीएसएफ अफसर, जिसने अपनी जान हथेली पर रखकर वतन की हिफाजत का जिम्मा उठाया.
इस जांबाज अफसर का नाम था नरेंद्र नाथ धर दुबे. ‘ग्राउंड जीरो’ के जरिए निर्देशक तेजस देओस्कर ने इमरान हाशमी के साथ मिलकर आतंकवादी गाजी बाबा को मार गिराने के लिए किए गए एक गुप्त और खतरनाक मिशन की सच्ची कहानी हमारे सामने पेश की है.
‘ग्राउंड जीरो’ अच्छी फिल्म है. वैसे भी जब मामला हमारे समाज के अनसंग हीरो का हो, तो वो कहानी सिर्फ ‘मनोरंजन’ तक सीमित नहीं रहती. ‘तुझे लाई यहां तेरी मौत फौजी, कश्मीर का बदला लेगा गाजी’ को ‘तुझे लाई यहां तेरी मौत गाजी, कश्मीर का बदला लेगा फौजी’ में कैसे तब्दील किया गया, इसकी दिलचस्प कहानी ‘ग्राउंड जीरो’ में बताई गई है.
बाकी आर्मी फिल्मों के मुकाबले इस फिल्म में कहानी के अलावा कुछ अलग नहीं है, लेकिन वो इसे देखने के लिए काफी है. कई जगह पर कास्टिंग बहुत अच्छी है, तो कई जगह पर बहुत बुरी. चलिए अब फिल्म के बारे में विस्तार से बात करते हैं.
फिल्म की कहानी
बीएसएफ के एक अफसर नरेंद्र नाथ धर दुबे (जिन्हें इमरान हाशमी निभा रहे हैं) की पोस्टिंग श्रीनगर में हुई थी, जहां वो अपने परिवार के साथ रहते थे. बात 2001 की है, जहां कुछ आतंकवादी छिपकर जवानों पर गोलियां चलाकर उन्हें मार देते थे. ये सब जैश-ए-मोहम्मद के बड़े नेता राणा ताहिर नदीम यानी गाज़ी बाबा के इशारे पर चल रहा था. इस गैंग ने लगभग 70 से ज़्यादा जवानों को मार डाला था. नरेंद्र और उनके साथी अफसर मिलकर इन आतंकवादियों का पता लगाने की कोशिश कर रहे थे, जो उनके जवानों पर हमले कर रहे थे, लेकिन गाज़ी और उसके लोग हमेशा उनसे आगे निकल जाते थे.
गाजी बाबा की अगुवाई में आतंकवादियों ने पहले दिल्ली (पार्लियामेंट) और फिर गुजरात के गांधीनगर (अक्षरधाम) में हमले किए. कुछ महीने बाद कश्मीर में भी हमला किया, जहां उन्होंने हुसैन नाम के एक जवान लड़के को मार दिया. हुसैन नरेंद्र का खास आदमी था और उसे खबरें देता था. हुसैन की मौत और दूसरे हमलों के लिए नरेंद्र खुद को जिम्मेदार मानने लगे. इस बात को लेकर वो अपने बड़े अफसर से गुस्से में बहस करके अपना तबादला करवा लेना चाहते थे.
अब क्या वो श्रीनगर से वो इंदौर चले गए? कैसे उन्होंने गाजी बाबा को मार गिराया? ये जानने के लिए आपको थिएटर में जाकर ‘ग्राउंड जीरो’ देखनी होगी.
फिल्म का निर्देशन
तेजस प्रभा विजय देओस्कर फिल्म ‘ग्राउंड जीरो’ के निर्देशक हैं. ये उनकी पहली हिंदी फिल्म है, जो थिएटर में रिलीज हो रही है. इससे पहले उन्होंने राकुलप्रीत के साथ ‘छत्रीवाली’ बनाई थी. अच्छी कहानी के साथ स्ट्रॉन्ग मैसेज देना तेजस की फिल्मों का यूएसपी रहा है. ग्राउंड जीरो की बात करें तो इस फिल्म के पहले सीन से तेजस आपको कहानी के साथ बांध लेते हैं.
फिल्म में एक्शन सीन्स को उम्दा तरीके से डायरेक्ट किया गया है. टारगेट का पीछा करते-करते पांव पर गोली मारना हो, या फिर क्लाइमेक्स का एक्शन सीन हो, तेजस ने पूरी रिसर्च के साथ सही मिलिट्री तकनीक को दिखाते हुए तमाम फाइट सीन का निर्देशन किया है. फिल्म में कुछ ऐसे पल हैं जो आपको पूरी तरह से चौंका देंगे, आपके दिल को दहला देंगे. कहानी कहने का उनका तरीका बहुत ही जबरदस्त है और कैमरे एंगल पर भी अच्छा काम हुआ है, जिसके लिए तेजस की तारीफ करनी होगी.
‘ग्राउंड ज़ीरो’ फिल्म इसलिए खास है क्योंकि इसकी कहानी बहुत ही बारीकी से लिखी गई है. इस कहानी में किरदारों को हीरो नहीं बल्कि आम इंसानों की तरह दिखाया गया है. इस कहानी से स्क्रीनप्ले लिखने वाले संचित गुप्ता और प्रियदर्शी श्रीवास्तव की भी तारीफ करनी होगी कि उन्होंने इतने संवेदनशील विषय को गहराई और समझदारी से पेश किया.
स्टार की एक्टिंग
इमरान हाशमी ने एन एन डी दुबे के किरदार को पूरी तरह से न्याय दिया है. देश की रक्षा करने वाले हर सिपाही के सिक्स पैक नहीं होते, हर सिपाही 6 फूट हाइट का नहीं होता, लेकिन भारत माता की सुरक्षा के लिए खड़ा हर सिपाही वो चट्टान होता है, जो देश की हर मुश्किल घड़ी में सीना तान कर खड़ा रहता है. एन एन डी दुबे वही सिपाही हैं. उनके इमोशंस अपने किरदार के जरिए इमरान ने बखूबी हम तक पहुंचाए हैं.
इमरान हाशमी के अलावा, सई ताम्हणकर और जोया हुसैन भी फिल्म में अहम भूमिका में नजर आते हैं. सई ने नरेंद्र नाथ दुबे की पत्नी, जया दुबे का किरदार निभाया है. भले ही उनके किरदार के लिए ज्यादा स्क्रीन स्पेस नहीं है. लेकिन अपनी डायलॉग डिलीवरी, अपने इमोशंस के जरिए वो इस फिल्म में अपनी छाप छोड़ती है. किस तरह से एक बीएसएफ अधिकारी देश की फिक्र करता है और उसकी पत्नी अपने पति की फिक्र करती है, ये विरोधाभास बहुत खूबसूरती से दिखाया गया है.
जोया हुसैन ने आदिला नाम की एक आईबी अधिकारी का किरदार निभाती हैं, इस किरदार के लिए जरूरी अग्रेशन उन्होंने फिल्म में दिखाया है. इमरान हाश्मी के सीनियर के तौर पर मुकेश तिवारी की कास्टिंग बिलकुल भी नहीं जचती. उनमें वो दबदबा भी नहीं दिखता, जो ऐसे रोल के लिए बहुत जरूरी होता है. वो इस किरदार में भी गुंडे ही लगते हैं. उनकी वजह से कई अच्छे सीन में मजा नहीं आता. आईबी हेड के तौर पर राहुल वोहरा भी कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाते.
फिल्म ‘ग्राउंड जीरो‘ सीधे मुद्दे की बात करती है, इधर-उधर बिलकुल नहीं भटकती. फिल्म का जबरदस्त क्लाइमेक्स शानदार तरह से दिखाया गया है. कुल मिलाकर, ग्राउंड ज़ीरो एक दमदार फिल्म है. इमरान हाश्मी की इस फिल्म में आर्मी फिल्मों में अक्सर दिखने वाली पुरानी बातों से बचने की कोशिश की है. अच्छी कहानी, अच्छा निर्देशन, अच्छी एक्टिंग और स्ट्रॉन्ग मैसेज इससे ज्यादा और क्या चाहिए