दुनिया के लिए खतरनाक हो सकता है जापान का रेडियोएक्टिव पानी
जापान ने समुद्र में फुकुशिमा न्यूक्लियर प्लांट का पानी छोड़ना शुरू कर दिया है. ये प्रोसेस चौबीसों घंटे अगले 3 दशक तक चलता रहेगा. जापान सरकार भले ही कह रही हो कि पानी में अब रेडियोएक्टिव तत्व नहीं रहे, लेकिन पूरी दुनिया घबराई हुई है वैसे तो इस पानी की जांच खुद यूनाइटेड नेशन्स की एटॉमिक एजेंसी IAEA कर चुकी और भरोसा भी जता चुकी कि उसमें खास जहर नहीं, लेकिन तब भी देश डरे हुए हैं.कहीं न कहीं इस खौफ का कारण भी है. पुराने रिकॉर्ड्स गवाह हैं कि रेडियोधर्मी तत्व एक बार मिट्टी या पानी में घुले तो वर्षों तक उसे जहर बनाए रखते हैं.

वर्ष 2011 में ताकतवर भूकंप और उसके बाद आई सुनामी लहरों ने जापान के फुकुशिमा दाइची परमाणु बिजलीघर को बुरी तरह नुकसान पहुंचाया. इसके बाद इस सयंत्र को बंद कर दिया गया. हालांकि संयंत्र के रेडियोएक्टिव पानी को अभी तक वहीं रखा गया था लेकिन अब 12 सालों के बाद जापान इसको समुद्र में छोड़ने जा रहा है. ये काम 24 अगस्त से शुरू हो जाएगा. हालांकि इस पानी को फिल्टरिंग और डायल्यूशन करके अगले 10 सालों तक धीरे धीरे छोड़ा जाता रहेगा लेकिन ये बहस शुरू हो चुकी है कि इसका असर किस तरह से पड़ने वाला है. चूंकि भारत का समुद्री इलाका जापान से दूर नहीं है लिहाजा इसका असर इधर भी होगा.
क्या है रेडियोधर्मी तत्व

रेडियोएक्टिव तत्व वे हैं, जिनसे खतरनाक अदृश्य विकिरणें निकलती हैं. ये लंबे समय तक मौजूद रहते हैं, इसका सबूत अमेरिका का मार्शल द्वीप है. यहां साल 1946 से 1958 तक यूएस ने कई न्यूक्लियर टेस्ट किए. ये समय दूसरे वर्ल्ड वॉर के बाद का था. अमेरिका अपनी पूरी तैयारी रखना चाहता था,जिसके लिए उसने प्रशांत महासागर में इस छोटे से द्वीप समूह को चुना. इसे ऑपरेशन क्रॉसरोड्स नाम दिया गया.
विरोध क्यों हो रहा है
पूरी दुनिया में इस पानी को छोड़ने का विरोध हो रहा है. पर्यावरण कार्यकर्ता कह रहे हैं, रेडियोधर्मी पानी छोड़ने के बाद जो भी नतीजे आने वाले हैं, वो किसी को नहीं मालूम. क्योंकि इसका अभी पूरी तरह अध्ययन नहीं किया गया है. पर्यावरण संगठन ग्रीनपीस के मुताबिक, ट्रिटियम, कार्बन-14, स्ट्रॉनटियम-90 और आयोडीन-129 के बायोलॉजिकल जोखिम का अध्ययन नाकाफी है.

पड़ोसी देश क्या चिंता जता रहे हैं
फुकुशिमा का पानी महासागर में छोड़ने की योजना पर जापान के पड़ोसी देश चीन, दक्षिण कोरिया और रूस भी चिंता जताते रहे हैं. चीन और रूस चाहते हैं कि जापान पानी को समंदर में छोड़ने के बजाए उसे भाप बनाकर उड़ा दे. लेकिन जापान सरकार ने इसे खारिज कर दिया. वैसे फुकुशिमा के मछुआरे भी इसका विरोध करते रहे हैं.
खतरा सैकड़ों-हजारों सालों तक रहता है
रेडियोधर्मी कचरे के साथ समस्या है कि ये पूरी तरह से खत्म नहीं हो सकते. कचरे के स्रोत के आधार पर, रेडियोधर्मिता कुछ घंटों से सैकड़ों सालों तक रह सकती है, जिसके बाद इसका घातक असर कम होता है. यही वजह है कि इसके खतरे के आधार पर ठोस और तरल कचरे का निपटान अलग तरह से होता आया है. ठोस को सावधानी से ऐसी जगह पर और इस प्रकार से गाड़ा जाता है कि उससे निकलने वाली हानिकारक विकिरण व अन्य कण कम से कम हानि पहुंचा सकें और उसमें कोई रिसाव न हो.
भारत किस तरह खतरे में
रेडियोएक्टिव पानी समुद्र से बहते हुए हिंद महासागर तक भी पहुंच सकता है. हालांकि यहां तक आने के लिए पानी को लगभग 14 हजार किलोमीटर की दूरी तय करनी होगी. पानी में घुले जहरीले तत्वों का असर इस बीच कम हो सकता है क्योंकि अथाह पानी में घुलकर उसकी सांद्रता कुछ कम हो जाएगी. इसके बाद भी असर तो रहेगा ही. हालांकि भारत सरकार ने अब तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
