Mahashivratri 2025: शिव की पूजा में वर्जित है केतकी का फूल, जानें भगवान ने क्या दिया था श्राप?

Mahashivratri 2025: भगवान शिव की पूजा में केतकी का फूल वर्जित माना गया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर क्यों महादेव पर केतकी के फूल अर्पित नहीं किए जाते हैं? ऐसे में आइए जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा।

Mahashivratri 2025: पूरे देश में बुधवार को महाशिवरात्रि का पावन पर्व मनाया जाएगा। यह दिन भगवान शिव की आराधना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। भक्तजन पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा, भांग और विभिन्न प्रकार के फूल अर्पित करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव अपने भक्तों की भक्ति को सहर्ष स्वीकार करते हैं, लेकिन कुछ चीजें ऐसी भी हैं जो शिव पूजन में वर्जित मानी जाती हैं। उन्हीं में से एक है केतकी का फूल, जिसे शिवलिंग पर अर्पित करना निषेध माना जाता है।

इस फूल से जुड़ी एक पौराणिक कथा है, जिसमें भगवान शिव ने इस फूल को अपने पूजन में निषेध घोषित किया था।

शिव पुराण के अनुसार, एक समय भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा के बीच श्रेष्ठता को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया। दोनों ही देवता स्वयं को सबसे महान साबित करने में लगे थे। इस विवाद को सुलझाने के लिए भगवान शिव एक विशाल अग्निस्तंभ के रूप में प्रकट हुए, जिसे ज्योतिर्लिंग कहा गया। यह स्तंभ इतना विशाल और दिव्य था कि इसका कोई आदि दिखाई दे रहा था और न ही कोई अंत। भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु से कहा कि जो इस ज्योतिर्लिंग का आदि या अंत खोजकर आएगा, वही श्रेष्ठ माना जाएगा।

इस चुनौती को स्वीकार कर भगवान विष्णु वराह रूप धारण कर पृथ्वी के गर्भ में चले गए ताकि ज्योतिर्लिंग का आधार खोज सकें, जबकि भगवान ब्रह्मा हंस का रूप धारण कर आकाश की ओर उड़ चले ताकि वे इसका अंत खोज सकें।

विष्णु जी ने काफी प्रयास किया, लेकिन उन्हें ज्योतिर्लिंग का आधार नहीं मिला। हार मानकर उन्होंने भगवान शिव के सामने सत्य स्वीकार कर लिया। वहीं, ब्रह्माजी लगातार आकाश में ऊपर उड़ते रहे, लेकिन वे भी ज्योतिर्लिंग का अंत नहीं खोज सके। इसके बावजूद, ब्रह्माजी ने हार स्वीकार करने के बजाय एक कपटपूर्ण उपाय सोचा। उड़ान भरते समय उन्हें केतकी का एक फूल मिला, जो बहुत समय से वहां गिरा हुआ था।

ब्रह्माजी ने केतकी के फूल को अपनी योजना में शामिल कर लिया और उससे कहा कि वह झूठी गवाही दे कि उसने ब्रह्मा को ज्योतिर्लिंग का अंत देख लेते हुए देखा है। केतकी के फूल ने ब्रह्माजी की बात मान ली और शिव के समक्ष झूठी गवाही दी कि ब्रह्मा जी ने ज्योतिर्लिंग का अंत खोज लिया है।

भगवान शिव सर्वज्ञ थे, वे इस छल को तुरंत समझ गए। ब्रह्माजी के इस छल और केतकी के झूठे समर्थन से शिव अत्यंत क्रोधित हो गए। उन्होंने ब्रह्मा को श्राप दिया कि उनकी कभी भी पूजा नहीं होगी, क्योंकि उन्होंने अहंकार और कपट का सहारा लिया। साथ ही, भगवान शिव ने केतकी के फूल को भी श्राप दिया कि अब से यह फूल उनकी पूजा में कभी स्वीकार नहीं किया जाएगा। तभी से शिवलिंग पर केतकी के फूल को अर्पित करना निषेध माना जाता है।

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