पल-पल बदलता बच्चों का मूड? कहीं वो मानसिक बीमारी का शिकार तो नहीं..

Mental disorder in childhood: जब बच्चे मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं, तो इसका मतलब है कि वे अपने विकासात्मक और भावनात्मक मील के पत्थर तक पहुंच रहे हैं और स्वस्थ सामाजिक स्किल सीख रहे हैं. उन्हें यह भी सीखने में सक्षम होना चाहिए कि समस्याएं आने पर उनका सामना कैसे किया जाए. इन्ही पहलुओं के बारे में चर्चा करने के लिए आज हमारे साथ लखनऊ के जाने माने मनोरोग विभाग में डॉ. अनिल कुमार (Neuropsychiatrist) से वार्तालाप हुआ –

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अगर आपका बच्चा किसी काम में ध्यान नहीं लगा पाता है और पल भर में ही उसका व्यवहार बदलता रहता है तो सतर्क हो जाएं. क्योंकि ये बच्चों में होने वाली एक मानसिक बीमारी (Mental Disorder) का लक्षण है. इस बीमारी को ADHD Disorder कहते हैं. अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर आमतौर पर जेनेटेक कारणों से होता है.

एक्सपर्ट्स बताते हैं कि बच्चों में तीन प्रकार की मानसिक समस्याएं ज्यादा देखी जाती हैं. इनमें डिप्रेशन -एंग्जाइटी, ऑटिज्म स्पैक्ट्रम डिसऑर्डर और अटेंशन डिफिसिट हाइपर एक्टिवटी ( एडीएडी) शामिल हैं.

कई बच्चों को आपने देखा होगा की उनका मूड थोड़ी-थोड़ी देर में बदलता है. वो किसी छोटी सी भी समस्या को पहाड़ बना देते है या हर चीज को लेकर उन्हें इनसिक्योरिटी रहती है, तो इसे बिल्कुल भी हल्के में नही लेना चाहिए क्योंकि ये एक मानसिक बीमारी की निशानी है. इसको मेडिकल की भाषा में बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर कहते हैं. ये बीमारी बढ़ती उम्र के साथ होती है और इसका कारण ब्रेन फंक्शन पर पड़ा हुआ असर होता है. ये बीमारी मेंटल हेल्थ को बुरी तरह प्रभावित करती है.

राजधानी लखनऊ के मनोरोग विभाग में डॉ. अनिल कुमार (Neuropsychiatrist) बताते हैं कि बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर एक मानसिक बीमारी है. अधिकतर मामलों में इसके शुरुआती लक्षणों की पहचान नहीं हो पाती है, लेकिन अगर किसी व्यक्ति को अचानक मूड में बदलाव, छोटी-छोटी बातों को सुलझाने में परेशानी जैसे लक्षण दिखते हैं तो मनोरोग विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए. डॉ अनिल ने बच्चों में मानसिक बीमारियों के बारे में जानकारी देते हुए कहा-

कहीं आपका बच्चा मानसिक बीमारियों से पीड़ित तो नहीं?

कुछ बच्चे मानसिक बीमारी से पीड़ित होते हैं, जिसका अर्थ है कि बच्चों के आमतौर पर सीखने, व्यवहार करने या अपनी भावनाओं को संभालने के तरीके में बदलाव. ये डिसऑर्डर बच्चे के लिए दिन गुजारने में परेशानी और समस्याएं पैदा कर सकते हैं.

बच्चे का नहीं लगता किसी काम में ध्यान तो हो जाएं सतर्क

ADHD Disorders In kids, बच्चों में होने वाला एक मानसिक विकार है. इस बीमारी में बच्चे का मानसिक विकास बाधित हो जाता है. इसका कोई इलाज नहीं है, लेकिन समय पर बीमारी की पहचान से लक्षणों को कम किया जा सकता है.

अगर आपका बच्चा किसी काम में ध्यान नहीं लगा पाता है और पल भर में ही उसका व्यवहार बदलता रहता है तो सतर्क हो जाएं. क्योंकि ये बच्चों में होने वाली एक मानसिक बीमारी (Mental Disorder) का लक्षण है. इस बीमारी को ADHD Disorder कहते हैं. अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर आमतौर पर जेनेटेक कारणों से होता है. इससे पीड़ित बच्चे किसी काम को सही प्रकार से नहीं कर पाते हैं उनको ध्यान केंद्रित करने में परेशानी आती है. वह किसी बात को आसानी से याद भी नहीं रख पाते हैं.

मनोरोग विशेषज्ञ का कहना है कि अगर बच्चे को बचपन में दिमाग में चोट लग जाती है तो भी इस बीमारी के होने की आशंका रहती है. ऐसे में जरूरी है कि बच्चे के व्यवहार में हो रहे किसी भी बदलाव पर माता-पिता नजर रखें.

फोन या गेम की लत न लगने दें

इस बीमारी से बचाव के लिए जरूरी है कि माता-पिता बच्चे के साथ ज्यादा से ज्यादा समय व्यतीत करें. उन्हें फोन या गेम की लत न लगने दें. बच्चों को बाहर खेलने के लिए लेकर जाएं और अगर बच्चों के व्यवहार में कुछ बदलाव दिख रहा है तो उसे डांटे न और शांत मन से समझाने कि कोशिश करें.

मनोरोग विशेषज्ञ के मुताबिक बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर मेंटल हेल्थ इश्यूज में एक कल्सटर बी पर्सनैलिटी में गिना जाता है. जिन लोगों को ये डिसऑर्डर होता है उनमें मेंटल और इमोशनल कुछ थोट पैटर्न रहते है जिसकी वजह से वो अलग बिहेव करते हैं.

जब बच्चे मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं, तो इसका मतलब है कि वे अपने विकासात्मक और भावनात्मक मील के पत्थर तक पहुंच रहे हैं और स्वस्थ सामाजिक स्किल सीख रहे हैं. उन्हें यह भी सीखने में सक्षम होना चाहिए कि समस्याएं आने पर उनका सामना कैसे किया जाए. हालांकि, कुछ बच्चे मानसिक बीमारी से पीड़ित होते हैं, जिसका अर्थ है कि बच्चों के आमतौर पर सीखने, व्यवहार करने या अपनी भावनाओं को संभालने के तरीके में बदलाव. ये डिसऑर्डर बच्चे के लिए दिन गुजारने में परेशानी और समस्याएं पैदा कर सकते हैं. यहां बच्चों में होने वाले कुछ सामान्य मानसिक डिसऑर्डर हैं, जिनके लक्षण जानने से माता-पिता को अपने बच्चे के लिए थेरेपी और उपचार लेने में मदद मिल सकती है.

एंग्जायटी: एंग्जायटी यानी चिंता एक सामान्य मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है, जो बच्चों और बड़ों दोनों को प्रभावित कर सकती है. एंग्जायटी के लक्षण में शामिल हो सकते हैं- बेचैनी, थकान, ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, पेट दर्द या सिरदर्द, नींद की समस्याएं, गुस्सा या चिड़चिड़ापन या सामाजिक अलगाव.

डिप्रेशन: डिप्रेशन एक गंभीर मानसिक बीमारी है, जो बच्चों और बड़ों दोनों को प्रभावित कर सकती है. डिप्रेशन के लक्षण में शामिल हो सकते हैं- उदास मन, रुचि या आनंद की कमी, थकान, भूख या वजन में बदलाव, नींद की समस्याएं, सोचने या निर्णय लेने में कठिनाई और आत्महत्या के विचार.

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर: ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) एक मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है, जो बच्चों और बड़ों दोनों को प्रभावित कर सकती है. इसके लक्षण में शामिल हो सकते हैं- सामाजिक संपर्क और बातचीत में कठिनाई, रुचियों और गतिविधियों में सीमितता, संवेदी समस्याएं और दोहराव वाली गतिविधियां या व्यवहार.

एजुकेशन को लेके बच्चों पर मानसिक दबाव:

आज कल बच्चों में पढाई को लेकर अधिक मानसिक दबाव रहता है. ज्यादातर वर्किंग पेरेंट्स बच्चों को पढाई के लिए बार बार प्रेशर देते है और खुद रिलैक्स होने के लिए मोबाइल या टीवी का आप्शन ले लेते है ,जिससे बच्चों के मानसिक व्यवहार में परिवर्तन आता है. इसके लिए जरुरी है की बच्चों के साथ मिलकर पढाई का वातावरण बनाये जिससे उनका पढाई में रूचि बढ़े.

एजुकेशन भविष्य को लेके तुलना करना गलत –

आज कल बच्चों में पढाई को लेकर हमारा तुलनात्मक व्यवहार उन्हें अधिक मानसिक दबाव में डाल देता है , समाज में किसी और के बच्चें से पढाई को लेके ,मार्क्स को लेके आदि तुलनात्मक व्यवहार बढ़ गया है जिससे बच्चे अत्यधिक मानसिक दबाव में रहते है. कई बार बच्चे आत्महत्या जैसी कोशिश भी कर देते है. यह हमारा फर्ज बनता है कि उन्हें मानसिक रूप से तनावमुक्त करें कि लाइफ किसी पोजीशन या टारगेट पर निर्भर नहीं करती है. अगर बच्चे मानसिक रूप से स्वस्थ रहेगे तो भविष्य में दुबारा कोशिश करके अपने आयाम पर पंहुच सकते है.

सामाजिक भागीदारी जरुरी:

आज कल बच्चें पारिवारिक और सामाजिक भागीदारी में रूचि नहीं रखते जिससे उनके मानसिक व्यवहार पर असर पड़ता है. उनका रिश्तो के प्रति लगाव कम होता जा रहा है. जिससे सामाजिक संपर्क और बातचीत में कठिनाई, रुचियों और गतिविधियों में सीमितता, संवेदी समस्याएं आदि का ज्ञान नहीं हो पता इससे वो मानसिक रूप से मजबूत नहीं हो पाते. इसके लिए जरुरी है कि उन्हें बुजुर्गो के साथ और अलग अलग ग्रुप के बच्चो के साथ थोडा समय ब्यतीत करने की आदत डाले जिससे उनका मानसिक विकास अच्छा होगा.

Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामाजिक पहलुओं और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.

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