कच्चातीवू द्वीप को लेकर भारत में राजनीति हुई तेज, बिगड़ सकता है भारत-श्रीलंका संबंध

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को सौंपने को लेकर कांग्रेस और डीएमके पर देश की संप्रभूता के साथ समझौता करने का आरोप लगाया है. केंद्र सरकार द्वारा इस मुद्दे को इतनी जोर-शोर से उठाए जाने से सवाल उठ रहा है कि क्या श्रीलंका को सौंपा गया कच्चातिवु द्वीप भारत वापस लेगा? इस बारे में श्रीलंका के मंत्री से बात करने पर उन्होंने कहा कि भारत ने इस मुद्दे पर अभी तक कोई आधिकारिक संदेश नहीं भेजा है.

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Katchatheevu Island Conflict: कच्चातीवू द्वीप को लेकर भारत में राजनीति तेज है और भारतीय जनता पार्टी ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर कच्चातीवू द्वीप को श्रीलंका के हवाले करने का आरोप लगाया है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी बीजेपी कांग्रेस और डीएमके पर कच्छतीवु द्वीप को लेकर लगातार हमले कर रही है. पीएम का आरोप है कि कांग्रेस की पुरानी सरकार ने ‘देश के हितों की रक्षा’ नहीं की.

इस विवाद को लेकर अंग्रेजी अख़ाबर इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट छापी है. ये रिपोर्ट श्रीलंका सरकार में मंत्री जीवन थोंडामन से किए गए इंटरव्यू के आधार पर छापी गई है.

रिपोर्ट के अनुसार भारत ने श्रीलंका को कच्छतीवु द्वीप को लेकर कोई आधिकारिक बातचीत नहीं की है. जबकि बीजेपी डीएमके और कांग्रेस पर हमला कर रही थी कि उसने कच्छतीवु द्वीप श्रीलंका को दे दिया. तमिलनाडु के बीजेपी प्रमुख के. अन्नामलाई ने दावा किया था कि केंद्र सरकार इस क्षेत्र को दोबारा भारत में शामिल किए जाने के लिए सभी प्रयास कर रही है.

इस दावे के विपरीत श्रीलंका के राष्ट्रपति रनिल विक्रमसिंघे की कैबिनेट में तमिल मूल के मंत्री जीवन थोंडामन ने अख़बार को बताया, “जहां तक श्रीलंका की बात है कच्छतीवु द्वीप श्रीलंका की सीमा में पड़ता है. नरेंद्र मोदी सरकार के श्रीलंका के साथ रिश्ते अच्छे हैं. अब तक भारत की ओर से किसी भी तरह की आधिकारिक बातचीत कच्छतीवु को लेकर नहीं की गई है. अगर इस तरह की कोई बात की जाएगी तो विदेश मंत्रालय उसका जवाब देगा.”

श्रीलंका की ओर से ये बयान तब आया है जब एक दिन पहले ही विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कच्छतीवु को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी और बीजेपी के उस दावे को और मज़बूत कर दिया था जिसमें कहा जा रहा है कि साल 1975 में इंदिरा गांधी सरकार ने कच्छतीवु द्वीप श्रीलंका को दे दिया था और इस बात को ‘छिपाए रखा.’

सोमवार को विदेश मंत्री जयशंकर ने बीजेपी कार्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस की और जब उनसे भारत सरकार के इस द्वीप पर दोबारा दावा करने को लेकर पूछा गया तो उन्होंने कहा- ये मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.

थोड़ी देर बार अन्नामलाई ने चेन्नई में पत्रकारों से कहा- “गेंद अब केंद्र के पाले में है. हर संभव समाधान पर विचार किया जाएगा. इस मामले में बीजेपी का एकमात्र उद्देश्य तमिल मछुआरों की सुरक्षा करना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री जयशंकर इस मामले में काफी गंभीर हैं. इसे (कच्चतीवु) अवैध रूप से श्रीलंका को सौंप दिया गया था.”

‘कच्छतीवु का मुद्दा पड़ोसी देश से रिश्ते बिगाड़ सकता है’

द हिंदू अख़बार में छपे विश्लेषण में कहा गया है कि पूर्व भारतीय राजनयिकों का कहना है कि साल 1974 में भारत और श्रीलंका के बीच कच्छतीवु पर हुए समझौते पर चर्चा से दोनों देशों के रिश्तों पर असर पड़ सकता है और इसके राजनयिक असर बड़े हो सकते हैं.

ज़्यादातर राजनयिक ये भी सवाल कर रहे हैं कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर की सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कच्छतीवु द्वीप को “छोड़ने” और स्थिति के लिए “समाधान” खोजने के बयान से ये सवाल उठ रहे हैं कि क्या मंत्रालय के रुख में बदलाव हुआ है?

साथ ही सवाल ये भी है कि क्या सरकार अब तक जो संसद में कहती रही है और सुप्रीम कोर्ट में जो कुछ कहा है क्या उसका स्टैंड अब बदल गया है?

आरटीआई के जवाब में साफ़-साफ़ कहा गया है कि 1974 में जो समझौता हुआ उसके अनुसार इस क्षेत्र पर कब्ज़ा नहीं किया गया था.

पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (2010-2014) शिव शंकर मेनन के अनुसार, सरकार 50 साल पुराने समझौते को फिर से खोलना “सेल्फ़-गोल ” हो सकता है.

द हिंदू से बात करते हुए मेनन ने कहा- “ज़मीन पर जो हालात है वो बदलना बहुत मुश्किल है. लेकिन अगर देश का नेतृत्व इस मुद्दे को उठाएगा तो इससे देश की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा होगा. और ये सरकार का सेल्फ़ गोल हो सकता है. संप्रभुता और सीमा ऐसा मुद्दा नहीं है जो सरकारों के बदलने से बदल जाए. अगर सरकार पुराने समझौते दोबारा खोलेगी तो ये एक बुरा उदाहरण साबित होग.”

पूर्व विदेश सचिव और श्रीलंका में उच्चायुक्त रहीं निरुपमा मेनन राव ने कहा कि तमिलनाडु की राजनीति पर श्रीलंका करीब से नज़र बनाए रहता है और इसका असर दोनों देशों के ‘द्विपक्षीय रिश्तों पर पड़ सकता है.’

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