Bangladesh के संविधान से हट जायेगा ‘सेक्युलरिज्म’ और ‘समाजवाद’… यूनुस को सौंपी गई रिपोर्ट

Bangladesh News: शेख हसीना के प्रधानमंत्री पद छोड़ने और देश के प्लायन के बाद से मोहम्मद यूनुस लगातार बांग्लादेश की छवि बदलने की कोशिश कर रहे हैं. संविधान सुधार आयोग ने बुधवार को मोहम्मद यूनुस को रिपोर्ट सौंपी, जिसमें धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और राष्ट्रवाद के राज्य सिद्धांतों को बदलने का प्रस्ताव रखा गया है.

इस प्रस्ताव के आने के बाद से देश और उसके पड़ोसी भारत में चिंता बढ़ गई है, क्योंकि ये सिद्धांत 1971 के मुक्ति संग्राम के मूल आदर्शों का हिस्सा थे. बांग्लादेश के संविधान में अब तक 17 बार संशोधन किया जा चुका है.

नई राज्य नीति में बदलाव का प्रस्ताव
बांग्लादेश में छात्रों के नेतृत्व में हुए राष्ट्रव्यापी आंदोलन के बाद, शेख हसीना के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद एक अंतरिम सरकार ने नए संविधान सुधार प्रस्ताव तैयार किए हैं। इसमें देश के संविधान में बदलाव कर दो सदन वाली संसद और प्रधानमंत्री के कार्यकाल को दो अवधि तक सीमित करने का सुझाव दिया गया था।

रिपोर्ट में और क्या-क्या कहा गया?
मुख्य सलाहकार के प्रेस कार्यालय ने रियाज़ के हवाले से एक बयान जारी किया. इसमें कहा गया कि आयोग ने द्विसदनीय संसद बनाने की सिफारिश की है. रिपोर्ट में निचले सदन को नेशनल असेंबली और ऊपरी सदन को सीनेट नाम दिया जाएगा. इसमें क्रमशः 105 और 400 सीटें होंगी. रिपोर्ट में प्रस्ताव दिया गया है कि दोनों सदनों को संसद के मौजूदा पांच साल के कार्यकाल के बजाय चार साल का कार्यकाल पूरा करना चाहिए. इसने सुझाव दिया कि निचले सदन को बहुमत के आधार पर और ऊपरी सदन को आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर बनाया जाना चाहिए

संविधान में मौलिक सिद्धांतों का समावेश
ये प्रस्ताव बांग्लादेश के संविधान में ये तीन सिद्धांत देश के संविधान में राज्य नीति सिद्धांतों में शामिल किए गए हैं। नए प्रस्तावों के अनुसार, संविधान में लोकतंत्र शब्द को लेकर कोई बदलाव नहीं किया गया है, लेकिन यह संशोधन संविधान के चार मूल सिद्धांतों में से एक सिद्धांत के तौर पर पेश किया जाएगा।

बांग्लादेश ने क्यों उठाया ऐसा कदम?
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया कि पिछले 16 सालों में प्रधानमंत्री कार्यालय में सत्ता का ज्यादा-से-ज्यादा सेंट्रलाइज किया गया. इसके अलावा संस्थागत शक्ति संतुलन की कमी देश में बिना कोई रोक-टोक के सत्तावाद को बढ़ावा देने वाले मुख्य कारक बने हैं. आयोग का मानना है कि इस कदम से सत्ता का डिसेंट्रलाइज होगा और नियुक्तियों में पारदर्शिता व जवाबदेही सुनिश्चित होगी.

इतिहास में बदलाव का संकेत
बांग्लादेश के संविधान में अब तक 17 संशोधन हो चुके हैं. लेकिन वर्तमान प्रस्ताव, 1971 के मुक्ति संग्राम के बाद बने मूलभूत सिद्धांतों को हटाने का है, जो देश की ऐतिहासिक पहचान को बदलने का संकेत देता है.

यह भी पढ़ें…

Pakistan को रास न आई भारत की तारीफ… 2 यूट्यूबरों को हुकूमत ने सुनाई फांसी की सजा

No Trouser’s Day: मेट्रो में अंडरवियर पहन सफर करते यात्री, क्या है ये अजीबोगरीब ट्रेंड

California Fire में कैदियों की बल्ले-बल्ले, सजा में छूट के साथ हो रही बंपर कमाई

Back to top button