बांग्लादेश में हालात हुए बेकाबू, इंटरनेट बंद, सड़क पर उतरी सेना, राष्ट्रव्यापी कर्फ्यू का ऐलान

Bangladesh Quota Protest: बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में कोटा सिस्टम खत्म करने की मांग को लेकर चल रहा छात्रों का हिंसक विरोध प्रदर्शन जारी है. कुछ सप्ताह पहले देशभर में शुरू हुई हिंसक झड़पों में अब तक 105 से ज्यादा लोग मारे गए हैं.

शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार ने कानून-व्यवस्था की चिंताजनक स्थिति को नियंत्रित करने के लिए राष्ट्रव्यापी कर्फ्यू लागू करने और सेना उतारने का फैसला किया है. लाठी, डंडे और पत्थर लेकर सड़कों पर घूम रहे प्रदर्शनकारी छात्र बसों और निजी वाहनों को आग के हवाले कर रहे हैं. अब तक 2500 से ज्यादा प्रदर्शनकारी पुलिस और सुरक्षा बलों के हाथ झड़प में जख्मी हुए हैं. देश में मोबाइल इंटरनेट सर्विस बंद कर दी गई है.

इस बीच, जहां बांग्लादेशी छात्रों ने कोटा प्रणाली के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, वहीं पश्चिम बंगाल के कोलकाता में प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन के कार्यकर्ताओं ने शुक्रवार को प्रदर्शन कर उनके प्रति एकजुटता दिखाई। हालाँकि इसका कोई व्यापक असर कोलकाता में कानून-व्यवस्था पर नहीं पड़ा.

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सबसे पहले जान लीजिए बांग्लादेश में हो क्या रहा है?
प्रदर्शनकारी क्या मांग कर रहे हैं? आंदोलनकारी बांग्लादेश में कोटा प्रणाली को समाप्त करने की मांग कर रहे हैं, जिसके तहत 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ देश की आजादी की लड़ाई में लड़ने वाले दिग्गजों के परिजनों को 30% आरक्षण दिया जाता था। उनका मानना है कि कोटा प्रणाली भेदभावपूर्ण है और हसीना के समर्थकों को लाभ पहुंचाती है, जिनकी अवामी लीग पार्टी ने स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया था। वे इसके बजाय योग्यता आधारित प्रणाली चाहते हैं।

यह विरोध पिछले महीने के अंत में शुरू हुआ था तब यह हिंसक नहीं था। हालांकि, मामला तब बढ़ गया जब इन विरोध प्रदर्शनों में हजारों लोग सड़क पर उतर आए। बीते सोमवार को ढाका विश्वविद्यालय में छात्रों की पुलिस और सत्तारूढ़ अवामी लीग समर्थित छात्र संगठन से झड़प हो गई। इस घटना में कम से कम 100 लोग घायल हो गए।

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आरक्षण 1972 में दिया गया तो आंदोलन अभी क्यों हो रहा है?
1972 से जारी इस आरक्षण व्यवस्था को 2018 में सरकार ने समाप्त कर दिया था। पिछले महीने उच्च न्यायालय ने सरकारी नौकरियों के लिए आरक्षण प्रणाली को फिर से बहाल कर दिया। कोर्ट ने आरक्षण की व्यवस्था को खत्म करने के फैसले को भी गैर कानूनी बताया था। कोर्ट के आदेश के बाद देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।

हालांकि, बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। सरकार की अपील के बाद सर्वोच्च अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश को निलंबित कर दिया और मामले की सुनवाई के लिए 7 अगस्त की तारीख तय कर दी है।

मामला कोर्ट में फिर क्यों हो रहे प्रदर्शन?
प्रदर्शनकारी छात्र मुख्य रूप से स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों के लिए आरक्षित नौकरियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी इस व्यवस्था को खत्म करने की मांग कर रहे हैं, उनका कहना है कि यह भेदभावपूर्ण है और प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग पार्टी के समर्थकों के फायदे के लिए है। बता दें कि प्रधानमंत्री शेख हसीना बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीब उर रहमान की बेटी हैं, जिन्होंने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम का नेतृत्व किया था।

प्रदर्शनकारी चाहते हैं कि इसकी जगह योग्यता आधारित व्यवस्था लागू हो। विरोध प्रदर्शन के समन्वयक हसनत अब्दुल्ला ने कहा कि छात्र कक्षाओं में लौटना चाहते हैं, लेकिन वे ऐसा तभी करेंगे जब उनकी मांगें पूरी हो जाएंगी।

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पूरे मसले पर क्या है सरकार का रुख?
प्रधानमंत्री शेख हसीना ने आरक्षण प्रणाली का बचाव करते हुए कहा कि युद्ध में अपने योगदान के लिए स्वतंत्रता सेनानियों को सर्वोच्च सम्मान मिलना चाहिए, चाहे उनका राजनीतिक जुड़ाव कुछ भी हो। उनकी सरकार ने मुख्य विपक्षी दलों, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी पार्टी पर अराजकता को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है। बीएनपी ने विरोध के समर्थन में गुरुवार को छात्रों के बंद के आह्वान का समर्थन किया था। इससे पहले बुधवार को अधिकारियों ने बीएनपी मुख्यालय पर भी छापा मारा था और पार्टी की छात्र शाखा के कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था।

गुरुवार को बांग्लादेश के कानून मंत्री अनीसुल हक ने कहा कि प्रधानमंत्री शेख हसीना ने उनसे प्रदर्शनकारियों के साथ बैठकर बातचीत करने को कहा है। अगर प्रदर्शनकारी तैयार हों तो वह बातचीत करने के लिए तैयार हैं।

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