
Basant Panchami: मां सरस्वती का जन्म उत्सव, व्रत अनुष्ठान से मिलेगा विद्या-कलात्मक गुण का वरदान
Saraswati Puja: बसंत पंचमी का त्योहार हिंदू धर्म में विद्या की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन माता सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है। माना जाता है कि इस दिन पूरे विधि विधान से मां सरस्वती का पूजन करने से वह प्रसन्न होती हैं और भक्तों को कला और विद्या का दान देती हैं.

बसंत पंचमी का पर्व माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन मनाया जाता है। इस दिन से बसंत ऋतु की शुरुवात होती है। इस बार बसंत पंचमी का पर्व 14 फरवरी को मनाया जाएगा। इस दिन कला, वाणी और विद्या की देवी मां सरस्वती का पूजन किया जाता है. कहते हैं माता का पूजन करने पर बुद्धि बढ़ती है और कलात्मक गुण भी बढ़ता है. लेखक, कवि, संगीतकार और विद्यार्थी सभी सरस्वती की प्रथम वंदना करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से उनके भीतर रचना की ऊर्जाशक्ति उत्पन्न होती है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन पीले रंग का भी विशेष महत्व बताया गया है। वसंत पंचमी का दिन विद्या आरंभ या किसी भी शुभ कार्य के लिए बेहद उत्तम माना जाता है।
कब मानई जाएगी बसंत पंचमी–
पंचांग के अनुसार पंचमी तिथि की शुरुआत 13 फरवरी को दोपहर 02 बजकर 41 मिनट से हो रही है। अगले दिन 14 फरवरी को दोपहर 12 बजकर 09 मिनट पर इसका समापन होगा। उदया तिथि के अनुसार इस साल वसंत पंचमी का पर्व 14 फरवरी को मनाया जाएगा।
बन रहा है शुभ योग:
बसंत पंचमी पर इस साल रेवती और अश्विनी नक्षत्र का शुभ योग बन रहा है. माना जाता है कि बसंत पंचमी के दिन ही मां सरस्वती का जन्म हुआ था. ऐसे में मां सरस्वती की पूजा ना सिर्फ मंदिरों बल्कि शैक्षिक संस्थानों में भी की जाती है.
सरस्वती पूजन का महत्व:
सरस्वती मां को सत्वगुणसम्पन्ना माना गया है, इनके नाम हैं जिसमें वाक्, वाणी, गी:, गिरा, भाषा,शारदा, वाचा, वागीश्वरी, ब्रह्मी, गौ, सोमलता, वाग्देवी आदि नामों से भी जानी जाती है। धार्मिक मान्यता है कि सरस्वती देवी की पूजा से रोग, शोक, चिंताएं और मन का संचित विकार भी दूर होता है। मां की उपासना से व्यक्ति में विवेक का विकास होता है। सतत अध्ययन ही सरस्वती की सच्ची आराधना है।
मां सरस्वती की पूजाविधि:
इस दिन सुबह स्नानादि के पश्चात श्वेत अथवा पीले वस्त्र धारण कर विधिपूर्वक कलश स्थापना करें। वास्तु के अनुसार पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम दिशा को सरस्वती पूजा के लिए आदर्श स्थान माना जाता है। इस दिशा में व्यवस्था न होने पर आप पूर्व, उत्तर-पूर्व या उत्तर दिशा में भी पूजन कर सकते हैं। चौकी पर श्वेत अथवा पीला कपड़ा बिछाकर मां सरस्वती की मूर्ति को स्थापित करे फिर ऐसे करे पूजा –
– गंगाजल से मां सरस्वती को स्नान कराएं ,व पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें।
– रोली, चन्दन, हल्दी, केसर,अक्षत, पीले या सफ़ेद रंग के पुष्प और पीली मिठाई अर्पित करें।
– मां सरस्वती की वंदना का पाठ करें।
-विद्यार्थी चाहे तो इस दिन मां सरस्वती के लिए व्रत भी रख सकते हैं।
– यथाशक्ति ”ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः ” का जाप करें । इस मंत्र के जाप से मां सरस्वती जल्दी प्रसन्न होती है और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
पीले रंग पहनने की मान्यताए:
शास्त्रों में बताया गया है कि पीला रंग सुख, शांति प्रदान करने वाला है । यह रंग तनाव को दूर करने वाला होता है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, बसंत पंचमी के दिन पीले रंग के कपड़े पहनने के पीछे कई मान्यताएं जुड़ी हैं. पीला रंग भगवान सूर्य देव को समर्पित है। जिस प्रकार सूर्य की किरणें अंधकार का विनाश करती हैं, उसी प्रकार पीला रंग मनुष्य के हृदय में बसी बुरी भावना को नष्ट करता है, इसलिए इस दिन पीला रंग पहनना शुभ माना गया है।
बसंत पंचमी से बसंत ऋतु की शुरुआत होती है। साथ ही बसंत का मौसम आते-आते वातावरण में ठंडक काफी कम हो जाती है और मौसम सुहावना हो जाता है। इस समय खेतों में सरसों के पीले फूल दिखाई देते हैं। सूर्य के उत्तरायण रहने से सूर्य के प्रकाश में पीलापन बढ़ जाता है। इन दिनों में प्रकृति में पीले रंग की अधिकता होती है, इसलिए बसंत पंचमी के दिन लोग पीले वस्त्र पहनते हैं।