निलंबित सिपाही की अजीबोगरीब करतूत… ट्रैफिक निदेशालय से डिलीट किये गाड़ियों के चालान

UP News: उत्तर प्रदेश के यातायात निदेशालय के आईटी सेल में एक बड़े साइबर अपराध का खुलासा हुआ है। आईटी सेल की जिम्मेदारी ट्रैफिक चालानों की निगरानी और प्रबंधन की होती है। लेकिन इस बार विभागीय सिस्टम का दुरुपयोग करके 116 गाड़ियों के चालान अनधिकृत रूप से डिलीट और कोर्ट से रिलीज़ किए गए। इस मामले में प्रमुख आरोपी एक आरक्षी है, जो पहले इसी सेल में तैनात था और अब निलंबित है।

ट्रैफिक लाइन के आईटी सेल प्रभारी आनंद कुमार ने मंगलवार को सुशांत गोल्फ सिटी थाने में निलंबित ट्रैफिक सिपाही अजय शर्मा के खिलाफ धोखाधड़ी और आईटी ऐक्ट के तहत केस दर्ज करवाया है। पुलिस को दी तहरीर में उन्होंने बताया कि 25 अक्टूबर को उन्नाव से सिपाही मुकेश राजपूत ने लखनऊ ट्रैफिक लाइन के कार्यालय में कार्यरत आदित्य दुबे को बताया कि 24 अक्टूबर 2024 को गाड़ी नंबर यूपी 35 क्यू 7005 का चालान यातायात निदेशालय की यूजर आईडी संख्या uptp@nic.in से गलत तरीके से डिलीट कर दिया गया है।

आरोपी आरक्षी की भूमिका
जांच के दौरान, यह सामने आया कि आरक्षी अजय शर्मा, जो आईटी सेल में कार्यरत था, ने उच्चाधिकारियों की अनुमति के बिना चालान डिलीट किए। इस कृत्य को विभागीय नियमों और नैतिकता का उल्लंघन माना गया है। अधिकारियों का मानना है कि यह काम भ्रष्टाचार और संदिग्ध गतिविधियों का हिस्सा हो सकता है।

लाखों रुपये गटक गया निलंबित सिपाही
ट्रैफिक निदेशालय की यूजर आईडी व पासवर्ड हासिल कर 116 चालान डिलीट करने वाले निलंबित सिपाही अजय शर्मा ने फर्जीवाड़ा कर लाखों का हेरफेर किया है। इसके पीछे कोई सुनियोजित रैकेट भी शामिल हो सकता है। गोसाईंगंज थाना प्रभारी इंस्पेक्टर अंजनी कुमार मिश्रा का कहना है कि अब तक यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि कुल चालानों की कीमत कितनी थी? विवेचना की जा रही है। जांच पूरी होने के बाद ही सही तस्वीर सामने आ सकेगी।

मोबाइल बंद कर सिपाही फरार
कारनामा सामने आते ही ट्रैफिक लाइन के पुलिस अफसरों ने आरोपित सिपाही से बात करने का प्रयास किया, लेकिन शुरुआत में आरोपों को गलत बताने के बाद अब उसने मोबाइल फोन बंद कर लिया है। पुलिस की टीमें आरोपित सिपाही को तलाश रही हैं। जांच अधिकारी का कहना है कि जरूरत पड़ने पर उसके मोबाइल फोन की कॉल डिटेल भी खंगाली जाएगी।

हर तीन माह में बदलना होता है पासवर्ड
एनआईसी के एक अधिकारी का कहना है कि जिन विभागों को यूजर बनाकर संचालन के लिए दिया जाता है। वहां के उच्चाधिकारी खुद अपना पासवर्ड बनाते हैं। एनआईसी की ओर से निर्देश है कि यूजर संचालक हर तीन माह में हर हाल में अपना पासवर्ड बदल दें। पासवर्ड न्यूमरेक, अल्फबेटिकल व सिंबोलिक पेयर के साथ ही बनाएं और उसे गोपनीय रखें। हर विभाग में एक-दो लोगों ही पासवर्ड की जानकारी रहती है। ऐसे में आरोपित सिपाही का कोई न कोई करीबी दूसरा जरूर होगा।

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