एलडीए का गजब खेल, सैकड़ों साल के कब्जेदार को कर दिया बेदखल; अब हाईकोर्ट ने किया न्याय

लखनऊ। लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) वैसे तो अपने तमाम कारनामो के लिए हमेशा ही चर्चा में बना रहता है लेकिन इस बार एलडीए ने सैकड़ों साल से जमीन पर काबिज़ उसके मालिक को मनमानेपूर्ण तरीके से एकपक्षीय कार्रवाई करते हुए बेदखल कर दिया।
मामला जब हाईकोर्ट के संज्ञान में आया तो कोर्ट ने एलडीए को फटकार लगाते हुए वास्तविक जमीन मालिक को जमीन पर पुनः कब्जा देने का फैसला सुनाया है। मामला लखनऊ के अर्जुनगंज तहसील के ग्रामसभा सरसवा का है।
मिली जानकारी के अनुसार ग्रामसभा सरसवा में श्रीमती मंजू सिंह पत्नी स्व. विमल सिंह की 64 बीघा जमीन है जो उनकी कई पीढ़ियों से होती हुई अब उनके कब्जे में है। राजस्व अभिलेखों के अनुसार इस जमीन पर श्रीमती मंजू सिंह के पूर्वजों का सन 1856 से कब्ज़ा है।
अपनी मनमानेपूर्ण रवैए के लिए चर्चित लखनऊ विकास प्राधिकरण ने उक्त जमीन पर दिसंबर 2020 में अपना कब्ज़ा बनाने हेतु बिना किसी नाप-जोख व नोटिफिकेशन के पुलिस बल के साथ धावा बोल दिया।
लखनऊ विकास प्राधिकरण की एकतरफा कार्रवाई का आलम यह रहा कि पीड़ित पक्ष को अपनी बात रखने का मौका भी नहीं दिया। आखिरकार जब श्रीमती मंजू सिंह व अन्य पक्षकारों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो वहां से उन्हें न्याय मिला।
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने एलडीए को फटकार लगाते हुए पूछा कि क्या आपने कब्जे की कार्रवाई से पूर्व पक्षकारों को नोटिस दिया था? क्या आपने कब्जे की कार्रवाई से पूर्व नाप-जोख किया था?
इन सभी प्रश्नों का उत्तर स्वाभाविक रूप से न में होने पर कोर्ट ने आपने आदेश में एलडीए को उक्त जमीन श्रीमती मंजू सिंह व अन्य को वापस सौपने को कहा है। इतना ही नहीं कोर्ट ने एलडीए को 23 फरवरी तक शपथ पत्र देकर यह भी बताने को कहा है कि कार्रवाई में नियमों का पालन हुआ है या नहीं।
हाईकोर्ट की फटकार के बाद जैसा कि एलडीए हमेशा से करता आया है, पक्षकारों से समझौते के प्रयास में है। एलडीए अब यह चाहता है कि पक्षकार कोर्ट में उनके द्वारा नोटिस दिए जाने व नाप-जोख किये जाने की बात स्वीकार कर लें जिससे कोर्ट में उनकी इज्जत और नौकरी दोनों बच जाय।
पूरे प्रकरण में एलडीए के बड़े अधिकारी अपनी गर्दन बचाने के लिए छोटे कर्मचारियों को फंसाने से भी नहीं चूक रहे हैं। एलडीए के वीसी व अन्य बड़े अधिकारी सारा ठीकरा एडीएम (प्रशासन) पर फोड़ने की फ़िराक में हैं क्योंकि मौके पर वही लोग थे।
अब देखना यह है कि माननीय हाईकोर्ट के आदेश की तामील कब और कैसे होती है क्योंकि यदि एलडीए ऐसा नहीं करता है तो उस पर कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट का भी मामला बन सकता है।
