
DRDO के इन तीन वैज्ञानिकों की देन है कोरोना की दवा 2-डीजी, जानिए इनके बारे में

नई दिल्ली। कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर से जूझ रहे देश के लिए एक नई दवा की खबर नई उम्मीद लेकर आई है। भारत के औषधि महानियंत्रक (DCGI) ने DRDO (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन) द्वारा विकसित इस कोविड रोधी दवा के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति दे दी है।
रक्षा मंत्रालय का कहना है कि यह दवा कोरोना मरीजों को जल्दी ठीक होने में मदद करती है और ऑक्सीजन पर निर्भरता भी कम करती है। यहां हम आपको बताने जा रहे हैं उन वैज्ञानिकों के बारे में जिन्होंने इस दवा को विकसित किया है।
2-डीजी (2-डीऑक्सी-डी-ग्लूकोज) दवा को ऐसे समय मंजूरी मिली है जब भारत कोरोना वायरस की महामारी की दूसरी लहर से घिरा है और देश के स्वास्थ्य अवसंरचना पर भारी दबाव है।
खास बात यह है कि यह दवा पाउडर के रूप में पैकेट में आती है, इसे पानी में घोलकर पीना होता है। संकट के समय में वरदान मानी जा रही इस दवा को तैयार करने के पीछे तीन वैज्ञानिकों का दिमाग रहा है। ये हैं डॉ. सुधीर चांदना, डॉ. अनंत नारायण भट्ट और डॉ. अनिल मिश्रा।
डॉ. सुधीर चांदना
हिसार के रहने वाले डॉ. सुधीर चांदना DRDO में अतिरिक्त निदेशक हैं और उन्होंने इस दवा को तैयार करने में अहम भूमिका निभाई है। चांदना का जन्म अक्तूबर 1967 में हिसार के पास रामपुरा में हुआ था।

उनके पिता हरियाणा न्यायिक सेवा में कार्यरत थे। उन्होंने चंडीगढ़ के डीएवी कॉलेज से बीएससी और हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय से माइक्रोबायोलॉजी में एमएससी की।
साल 1991 से 1993 तक उन्होंने ग्वालियर और फिर दिल्ली में इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियल मेडिसिन एंड अलायड साइंसेज में अपनी सेवा दी।
डॉ. अनंत नारायण भट्ट
उप्र के गोरखपुर के रहने वाले डॉ. अनंत नारायण भट्ट डीआरडीओ के न्यूक्लियर मेडिसिन एंड अलायड साइंसेज में वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा जन्म स्थान गगहा में हुई और बीएससी उन्होंने किसान पीजी कॉलेज से की।

इसके बाद उन्होंने अवध विवि से बायोकेमिस्ट्री में एमएससी की। सीडीआरआई लखनऊ से उन्होंने ड्रग डेवलपमेंट (औषधि विकास) विषय में पीएचडी पूरी की। इसके बाद वह बतौर वैज्ञानिक डीआरडीओ से जुड़ गए।
डॉ. अनिल मिश्रा
मूल रूप से उप्र के बलिया जिले के रहने वाले डॉ. अनिल मिश्रा कैलिफोर्निया विवि में पोस्ट डॉक्टरल फेलो रहे हैं। उन्होंने गोरखपुर विवि से एमएससी की थी और बनारस हिंदू विवि से पीएचडी पूरी की थी।

वह डीआरडीओ के न्यूक्लियर मेडिसिन एंड अलायड साइंसेज में वैज्ञानिक हैं और साइक्लोट्रॉन एडं रेडियो फार्मास्यूटिकल साइंसेज डिवीजन में भी सेवाएं दे रहे हैं। साल 2002 से 2003 तक वह जर्मनी के प्रतिष्ठित मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट में विजिटिंग प्रोफेसर भी रहे हैं।