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Criminal Law Bills: इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड-बयान भी अब साक्ष्य, तीनों कानूनों में अहम प्रावधान
Criminal Law: लोकसभा से पास हुए तीन नए आपराधिक कानूनों से जल्द न्याय मिलने की आस जगी है। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम में कई अहंम प्रावधान किए गए हैं। इलेक्ट्रॉनिक तरीके से लिए गए बयान और रिकॉर्ड को साक्ष्य व दस्तावेज के रूप में शामिल किया गया है।
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अंग्रेजों के शासन में मानव-वध या महिलाओं पर अत्याचार से महत्वपूर्ण तथ्य राजद्रोह और खजाने की रक्षा थी। इसके उलट नए कानूनों में महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराधों हत्या और राष्ट्र के विरुद्ध अपराधों को प्रमुखता दी गई है। इन कानूनों की प्राथमिकता भारतीयों को न्याय देने और उनके मानवाधिकारों के रक्षा की है।
भारतीय न्याय संहिता ने यौन अपराधों से निपटने के लिए ‘महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराध’ नामक एक नया अध्याय पेश किया है। विधेयक में नाबालिग बच्चियों के साथ दुष्कर्म के मामला को पॉक्सो के साथ सुसंगत किया गया है और ऐसे अपराधों में आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है।
सामूहिक दुष्कर्म के सभी मामलों में 20 वर्ष की सजा या आजीवन कारावास का प्रावधान. नाबालिग के साथ सामूहिक बलात्कार को एक नए अपराध की श्रेणी में रखा गया है। धोखे से यौन संबंध बनाने या विवाह करने के सच्चे इरादे के बिना विवाह करने का वादा करने वालों पर लक्षित दंड का प्रावधान।
भारतीय न्याय संहिता में पहली बार आतंकवाद की व्याख्या की गई है और इसे दंडनीय अपराध बना दिया गया है। इसके अनुसार जो कोई भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता, सुरक्षा या आर्थिक सुरक्षा या प्रभुता को संकट में डालने या संकट में डालने की संभावना के आशय से या भारत में या विदेश में जनता अथवा जनता के किसी वर्ग में आतंक फैलाने या आतंक फैलाने की संभावना के आशय से बमों, डाइमामाइट, विस्फोटक पदार्थों, अपायकर गैसों, न्यूक्लीयर का उपयोग करके ऐसा कार्य करता है, जिससे, किसी व्यक्ति या व्यक्तियों की मृत्यु होती है, संपत्ति की हानि होती है, या करेंसी के निर्माण या उसकी तस्करी या परिचालनं हो तो वह आतंकवादी कार्य करता है।
आतंकी कृत्य मृत्युदंड या आजीवन कारावास के साथ दंडनीय है जिसमें पैरोल नहीं मिलेगा। आतंकी अपराधों की एक श्रृंखला भी पेश की गई है जिसके अनुसार सार्वजनिक सुविधाओं या निजी संपत्ति को नष्ट करना अपराध है। ऐसे कृत्यों को भी इस खंड के तहत शामिल किया गया है जिनसे ‘महत्वपूर्ण अवसंरचना की क्षति या विनाश के कारण व्यापक हानि’ होती है।
संगठित अपराध
- नए विधेयक में संगठित अपराध से संबंधित एक नई दांडिक धारा जोड़ी गई है।
- भारतीय न्याय संहिता 111. (1) में पहली बार संगठित अपराध की व्याख्या की गई है
- सिंडिकेट से की गई विधिविरुद्ध गतिविधि को दंडनीय बनाया है।
- तए प्रावधानों में सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियां, अलगाववादी गतिविधियां अथवा भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्य को जोड़ा गया है।
- छोटे संगठित आपराधिक कृत्यों को भी अपराध घोषित किया गया। 7 वर्ष तक की कैद हो सकती है। इससे संबंधित प्रावधान खंड 112 में हैं।
- आर्थिक अपराध की व्याख्या भी की गई है : करेंसी नोट, बैंक नोट और सरकारी स्टांपों का हेरफेर, कोई स्कीम चलाना या किसी बैंक/वित्तीय संस्था में गड़बड़ ऐसे कृत्य शामिल है।
- संगठित अपराध के कारण किसी व्यक्ति की मृत्यु हो गई है तो आरोपी को मृत्यु दंड या आंजीवन कारावास की सजा
- जुर्माना भी लगाया जाएगा, जो 10 लाख रुपये से कम नहीं होगा।
- संगठित अपराध में सहायता करने वालों के लिए भी सजा का प्रावधान किया गया है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता: न्याय
आपराधिक कार्यवाही शुरू करने, गिरफ्तारी, जांच, आरोप पत्र, मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही, संज्ञान, आरोप तय करने, प्ली बारगेनिंग, सहायक लोक अभियोजक की नियुक्ति, ट्रायल, जमानत, फैसला और सजा, दया याचिका आदि के लिए एक समय- सीमा निर्धारित की गई है।
- 35 धाराओं में समय-सीमा जोड़ी गई है, जिससे तेज गति से न्याय प्रदान करना संभव होगा।
- बीएनएसस में, इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन के माध्यम से शिकायत देने वाले व्यक्ति द्वारा तीन दिनों के भीतर एफआईआर को रिकॉर्ड पर लिया जाना होगा।
- यौन उत्पीड़न के पीड़ित की चिकित्सा जांच रिपोर्ट मेडिकल एग्जामिनर द्वारा 7 दिनों के भीतर जांच अधिकारी को फॉरवर्ड की जाएगी।
- पीड़ितों/मुखबिरों को जांच की स्थिति के बारे में सूचना 90 दिनों के भीतर दी जाएगी।
- आरोप तय करने का काम सक्षम मजिस्ट्रेट द्वारा आरोप की पहली सुनवाई से 60 दिनों के भीतर किया जाना होगा।
- मुकदमे में तेजी लाने के लिए, अदालत द्वारा घोषित अपराधियों के खिलाफ उनकी अनुपस्थिति में भी आरोप तय होने के 90 दिन के अंदर मुकदमा शुरू होगा।
- किसी भी आपराधिक न्यायालय में मुकदमे की समाप्ति के बाद निर्णय की घोषणा 45 दिनों से अधिक नहीं होगी।
- सत्र न्यायालय द्वारा बरी करने या दोषसिद्धि का निर्णय बहस पूरी होने से 30 दिनों के भीतर होगा, जिसे लिखित में मेंशनड कारणों के लिए 45 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम में भी अहम प्रावधान
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 में दस्तावेजों की परिभाषा का विस्तार करते हुए इसमें इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकार्ड, ईमेल, सर्वर लॉग्स, कंप्यूटर पर उपलब्ध दस्तावेज, स्मार्टफोन या लैपटॉप के संदेश, वेबसाइट, लोकेशनल साक्ष्य को शामिल किया गया है।
- ‘इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड ‘दस्तावेज़’ की परिभाषा में शामिल
- इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्राप्त बयान ‘साक्ष्य’ की परिभाषा में शामिल
- इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड को प्राथमिक साक्ष्य के रूप में मानने के लिए और अधिक मानक जोड़े गए, जिसमें इसकी उचित कस्टडी-स्टोरेज-ट्रांसमिशन- ब्रॉडकास्ट पर जोर दिया गया।
Union Home Minister Amit Shah moves the Bharatiya Nyaya (Second) Sanhita, 2023, the Bharatiya Nagarik Suraksha (Second) Sanhita, 2023 and the Bharatiya Sakshya (Second) Bill, 2023 in Rajya Sabha for consideration and passage.
— ANI (@ANI) December 21, 2023
These Bills were passed by the Lok Sabha on 20th… pic.twitter.com/fpFHnmP6ll
बड़े बदलाव
दस्तावेजों की जांच करने के लिए मौखिक और लिखित स्वीकारोक्ति और एक कुशल व्यक्ति के साक्ष्य को शामिल करने के लिए और माध्यमिक साक्ष्य जोड़े गए, जिनकी जांच अदालत’ द्वारा आसानी से नहीं की जा सकती है।
साक्ष्य के रूप में इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड की कानूनी स्वीकार्यता, वैधता और प्रवर्तनीयता स्थापित की गई।
महिलाओं के प्रति अपराध
नए विधेयक महिलाओं के खिलाफ उन संज्ञेय अपराधों के लिए ई-एफआईआर की भी अनुमति देते हैं जहां आरोपी अज्ञात है।
घोषित अपराधियों की भारत से बाहर भी कुर्क कर सकेंगे संपत्ति
10 वर्ष/अधिक की सजा या आजीवन कारावास या मृत्युदंड की सजा वाले मामलों में दोषी को घोषित अपराधी करार दिया जा सकता है। घोषित अपराधियों के मामलों में भारत से बाहर की संपत्ति की कुर्की और जब्ती के लिए नया प्रावधान किया गया है।
फोरेंसिक : 7 वर्ष या अधिक सजा वाले अपराधों में ऐसे सबूत जरूरी
सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में फोरेंसिक का इस्तेमाल जरूरी होगा। राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में जरुरी इंफ्रास्ट्रक्चर 5 वर्ष के भीतर तैयार करना होगा। 7 वर्ष या उससे अधिक की सजा वाले सभी अपराधों में ‘फोरेंसिक एक्सपर्ट’ द्वारा क्राइम सीन पर फोरेंसिक एविडेंस कलेक्शन अनिवार्य होगा। इससे क्वालिटी ऑफ इन्वेस्टीगेशन में सुधार होगा और इन्वेस्टीगेशन साइंटिफिक पद्धति पर आधारित होगी। इसका लक्ष्य मामलों में 100 फीसदी सजा सुनिश्चित करना है।
नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी (एनएफएसयू) की स्थापना पर फोकस
- गांधीनगर, दिल्ली, गोवा, त्रिपुरा, गुवाहाटी, भोपाल, धारवाड़ में एनएफएसयू के कुल 7 परिसर और 2 ट्रेनिंग अकादमी बनेंगे
- सीएफएसएल पुणे एवं भोपाल में नेशनल फोरेंसिक साइंस अकादमी की शुरुआत
- चंडीगढ़ में अत्याधुनिक डीएनए विश्लेषण सुविधा का उद्घाटन
पुलिस की जवाबदेही सुनिश्चित होगी
- गिरफ्तार व्यक्तियों की सूचना प्रदर्शित करना
- राज्य सरकार को एक पुलिस अधिकारी को नामित करने के लिए अतिरिक्त दायित्व दिया गया है जो सभी गिरफ्तारियों और गिरफ्तार लोगों के संबंध में जानकारी एकत्र करने के लिए जिम्मेदार होगा।
- ऐसी जानकारी को हर पुलिस स्टेशन और जिला मुख्यालय में प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाना भी आवश्यक है।
- अफसरों के खिलाफ मामले की सहमति सरकारी अफसरों के विरूद्ध मामला चलाने के लिए सहमति या असहमति पर सक्षम अधिकारी 120 दिनों में निर्णय लेगा। यदि ऐसा न हो, तो मान लिया जाएगा कि अनुमति प्रदान हो गई है।
टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल पर जोर
- क्राइम सीन, जांच, ट्रायल सभी चरणों में टेक्नोलॉजी का उपयोग होगा। इससे सबूतों की गुणवत्ता में सुधार होगा। पीड़ित और आरोपियों दोनों के अधिकारों की रक्षा होगी। एफआईआर से केस डायरी, चार्जशीट व जजमेंट सभी डिजिटाइज्ड हो जाएंगे। सभी पुलिस थानों और न्यायालयों में एक रजिस्टर के जरिये ई-मेल एड्रेस, फोन नंबर अथवा ऐसा कोई अन्य विवरण रखा जाएगा।
- सबूत व तलाशी की रिकॉर्डिंग
- ऑडियो-वीडियो की रिकॉर्डिंग अनिवार्य होगी। इसे अविलंब मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाए। फोरेंसिक साक्ष्य एकत्र करने की प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की आवश्यकता। पुलिस जांच के दौरान दिए गए किसी भी बयान की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग का विकल्प।
3200 सुझाव…150 से ज्यादा बैठकों के बाद हुआ तैयार
- अंग्रेजी शासन काल के तीनों आपराधिक कानूनों में सुधार की प्रक्रिया 2019 में शुरू हुई
- गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यपालों, सीएम, उपराज्यपालों/प्रशासकों को पत्र लिखा
- न्यायाधीशों, सांसदों, बार के सदस्यों, भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों आदि से सुझाव मांगे गए
- मार्च 2020 में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली के कुलपति की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई
- सरकार को सुधार के बारे में कुल 3200 सुझाव प्राप्त हुए
- 18 राज्यों, 06 संघ राज्य क्षेत्रों, भारत के सुप्रीम कोर्ट, 16 उच्च न्यायालयों, 27 न्यायिक अकादमियों- विधि विश्वविद्यालयों, संसद सदस्यों, पुलिस अधिकारियों ने भी सुझाव भेजे.
- गृह मंत्री ने इस बारे में 150 से ज्यादा बैठकें कीं हैं.