UGC का बड़ा एक्शन; 63 यूनिवर्सिटीज को डाला डिफॉल्टर लिस्ट में, संकट में छात्रों का भविष्य?

Defaulter University news: विश्वविद्यालयों का नियमों की अनदेखी के रवैए को लेकर यूजीसी कड़ी नाराजगी जताई है। UGC ने नियमों का पालन न करने के चलते 63 विश्वविद्यालयों को डिफॉल्टर यूनिवर्सिटी की लिस्ट में डाल दिया है। इससे छात्रों का भविष्य भी संकट में आ सकता है.

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी UGC ने 63 विश्वविद्यालयों को नियमों का पालन न करने के चलते डिफॉल्टर यूनिवर्सिटी की लिस्ट में डाल दिया है. ये वे विश्वविद्यालय हैं, जिन्होंने अब तक अपने यहां लोकपाल की नियुक्ति नहीं की है. आश्चर्य की बात ये है कि इनमें निजी और डीम्ड के साथ ही सरकारी विश्वविद्यालय भी शामिल हैं. आइए जानते हैं कि कोई यूनिवर्सिटी कब डिफॉल्टर घोषित होती है? इससे संस्थान के कौन से अधिकार छिन सकते हैं?

यूजीसी ने इन सभी के खिलाफ नाराजगी जताई है. अगर ये विश्वविद्यालय दिए गए समय तक लोकपाल की नियुक्ति नहीं कर करते हैं तो यूजीसी इनकी मान्यता भी रद्द कर सकता है. इससे छात्रों का भविष्य भी संकट में आ सकता है. आइए जानने की कोशिश करते हैं कि कोई यूनिवर्सिटी कब डिफॉल्टर घोषित होती है.

यूजीसी का तय किया है नियम

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने साल 2023 में छात्रों की शिकायतों के लिए शिकायत निवारण विनियम-2023 को अधिसूचित किया था, जिसने विनियम 2019 की जगह ली है. इसके तहत देश भर के सब विश्वविद्यालयों और अन्य उच्च शिक्षण संस्थानों में लोकपाल की नियुक्ति की जानी है, जो छात्रों की शिकायतों का निवारण करेगा.

डिफॉल्टर घोषित

हद तो यह है कि देश भर के कई निजी और सरकार विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों ने इस दिशा में अभी तक कदम नहीं बढ़ाए हैं. इसीलिए यूजीसी ने 63 विश्वविद्यालयों को डिफॉल्टर लिस्ट में डाल दिया है. इनमें करीब 46 राज्य विश्वविद्यालय, 06 निजी विश्वविद्यालय और 11 मानद विश्वविद्यालय हैं. यूजीसी ने सभी डिफॉल्टर विश्वविद्यालयों को नोटिस जारी किया है कि नियमों के तहत लोकपाल की जल्द नियुक्ति करें और छात्रों से जुड़ी व्यवस्थाओं को जुटाएं.

विश्वविद्यालयों के छिन सकते अधिकार

ऐसा करने में असफल रहने पर इन यूजीसी इन विश्वविद्यालयों के तमाम अधिकार छीन सकता है. इनमें विश्वविद्यालयों की ओर से दी जाने वाली वित्तीय सहायता पर यूजीसी रोक लगा सकता है तो कोर्स आदि के संचालन को प्रतिबंधित कर सकता है. अंतिम विकल्प के तौर पर यूजीसी इनकी मान्यता भी रद्द कर सकता है. इससे यहां पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं की डिग्रियों पर संकट पैदा हो सकता है.

मानकों का पालन जरूरी

यूजीसी ने तय किया है कि हर विश्वविद्यालय को अपने एडमिशन फॉर्म पर हर कोर्स के बारे में लिखना होगा कि वह यूजीसी से मान्यता प्राप्त है या नहीं. अब कोई भी यूनिवर्सिटी या कॉलेज किसी भी छात्र के मूल दस्तावेज जमा नहीं करवा सकते हैं. फॉर्म पर ही पूरी प्रवेश प्रक्रिया और आरक्षण की जानकारी देनी होती है. अब हर विश्वविद्यालय और कॉलेज में यूजीसी नियम के अनुरूप ही शिक्षक रखे जा सकते हैं. परीक्षा के बाद 180 दिनों के भीतर छात्र के घर डिग्री पहुंचानी जरूरी है.

परीक्षाओं और मूल्यांकन में देरी पर संस्थानों के अधिकारियों पर कार्रवाई हो सकती है. विश्वविद्यालयों या संस्थानों की ओर से ली जाने वाली हर कोर्स की फीस का विवरण फॉर्म पर होना चाहिए. बीच में कोई विद्यार्थी पढ़ाई छोड़ता है तो केवल एक हजार काटकर बाकी फीस लौटानी होगी. इसके अलावा फीस देने में विलंब पर किसी विद्यार्थी को कॉलेज या यूनिवर्सिटी से निष्कासित नहीं किया जा सकता. उच्च शिक्षण संस्थानों में तय किए अन्य मानकों में हर कॉलेज और यूनिवर्सिटी में लैब-लाइब्रेरी की अनिवार्यता भी है. हॉस्टल में संबंधित कॉलेज-यूनिवर्सिटी के ही विद्यार्थी रह सकते हैं.

विद्यार्थियों पर संकट

इन नियमों का पालन नहीं करने पर भी यूजीसी की ओर से संबंधित यूनिवर्सिटी और कॉलेजों के खिलाफ यूजीसी की ओर से कार्रवाई की जा सकती है. इनमें किसी एक खास कोर्स पर प्रतिबंध लगाने, किसी कोर्स की मान्यता खत्म करने से लेकर संस्थान तक की मान्यता छीनने की कार्रवाई हो सकती है. ऐसे ही अगर डिफॉल्टर घोषित विश्वविद्यालयों ने लोकपाल की नियुक्ति नहीं की तो भी कार्रवाई के दायरे में आएंगे.

किसी भी संस्थान के खिलाफ इस तरह से कार्रवाई होती है तो सबसे ज्यादा नुकसान विद्यार्थियों का ही होता है. अगर उन्हें किसी दूसरे कॉलेज या विश्वविद्यालय में स्थानांतरित नहीं किया जाता है तो उनका साल खराब हो जाता है. कई बार डिग्री पर भी संकट आ जाता है.

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