लू से मरे चमगादड़ों से ग्रामीणों की हुई दावत… अब सता रही है महामारी का डर

देश में भीषण गर्मी से हाहाकार मचा है। सूरज की तपिश में इंसानों के साथ पशु-पक्षी भी मर रहे हैं। झारखंड में अधिकतम तापमान 45 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच गया, जिससे चमगादड़ों की मौत हो रही है। अब लोग मरे हुए चमगादड़ों को खा रहे हैं। इसे लेकर स्वास्थ्य विभाग की चिंता बढ़ गई है। अब बड़ा सवाल उठता है कि चमगादड़ खाने से क्या देश में फिर कोरोना जैसी महामारी फैल सकती है।

गढ़वा के सुंडीपुर गांव में मरे हुए चमगादड़ खा लेने के बाद अब गांव वालों को महामारी की चिंता सताने लगी है। ग्रामीणों की चिंता को देखते हुए गुरुवार को उपायुक्त के निर्देश पर गांव में स्वास्थ्य विभाग की टीम पहुंची और चमगादड़ खाने वाले 27 लोगों की जांच की गई है। सभी स्वस्थ बताए जा रहे हैं।

मरे हुए चमगादड़ों के सैंपल किए गए एकत्रित 

स्वास्थ्य विभाग की टीम चमगादड़ खाने वाले लोगों को आइसोलेट करने पर भी विचार कर रहा है। स्वास्थ्य विभाग की टीम में शामिल सदस्यों ने बताया कि गांव में शिविर लगाने के दौरान वहां कई चमगादड़ मृत मिले, जिन्हें दफना दिया गया।

पशुपालन विभाग चमगादड़ों की मौत के कारणों की जांच के लिए नमूना एकत्रित कर जांच कराने की तैयारी में है। हजारीबाग के सरैया चट्टी पाठक टोला में भी बड़ी संख्या में चमगादड़ अधिक गर्मी की वजह से झुलस कर मर गए हैं।

स्थानीय ने इस घटना को लेकर क्या बताया

स्थानीय लोगों के अनुसार, यहां पीपल, बरगद इमली, सेमल, आम के पेड़ों पर वर्षों से चमगादड़ों का बसेरा है। कुछ लोग इनके मांस का सेवन भी करते हैं। कोरोना संक्रमण के बाद से लोग डर गए हैं, जिससे इनके शिकार में कमी आई है। पर्यावरणविद डा. मुरारी सह कहते हैं कि चमगादड़ों के पंख महीन झिल्ली से बने होते हैं। वह अधिक तापमान नहीं सह पाते हैं। गर्मी दूर करने के लिए ये पानी में गोता लगाते हैं, जिससे इनके शरीर का तापमान कम हो जाता है।

जहां आसपास जलस्त्रोत नहीं हैं, ऐसे स्थानों पर चमगादड़ों की मौत हो रही है। रांची के मोरहाबादी मैदान के आसपास स्थित पेड़ों पर भी चमगादड़ों का सालों से बसेरा है। यहां हजारों की संख्या में चमगादड़ यूकिलिप्टस आदि ऊंचे पेड़ों पर आशियना बनाए हुए है।

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