Ayodhya: राम मंदिर का ताला खुलवाने का दावा, फिर भी कांग्रेसियों ने ठुकराया प्राण-प्रतिष्ठा न्योता

Ayodhya Temple: राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण ठुकराते हुए कांग्रेस ने कहा था कि यह भाजपा का राजनीतिकरण प्रोजेक्ट है. दरअसल कांग्रेस ने यह फैसला काफी कैलकुलेशन करने के बाद लिया है. पार्टी नेताओं का मानना था कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह में पार्टी नेताओं के शामिल होने से दक्षिण भारत में कांग्रेस को नुकसान हो सकता है.

इमेज क्रेडिट-सोशल मीडिया प्लेटफार्म

अयोध्या में राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में कांग्रेस नेता शामिल नहीं होंगे. एक दिन पहले पार्टी हाईकमान ने अपना स्टैंड क्लीयर कर दिया है. कांग्रेस ने अपने बयान में यह भी कहा कि हमारे जिन नेताओं को न्योता मिला है, वे नहीं जाएंगे. अन्य कोई नेता भी इस कार्यक्रम का हिस्सा नहीं बनेगा. इसे कांग्रेस की बड़ी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. चूंकि न्योता मिलने के 21 दिन बाद पार्टी ने सार्वजनिक रूप से अयोध्या ना जाने का ऐलान किया है.

इससे पहले कांग्रेस खुद को राम और राम मंदिर से जोड़ती आ रही है. सॉफ्ट हिंदुत्व का कार्ड भी खेलने से नहीं हिचकती है. लेकिन, इस मेगा इवेंट के न्योते को क्यों ठुकराया है, इसके मायने निकाले जा रहे हैं. पांच पॉइंट में जानिए…

बुधवार को कांग्रेस ने एक बयान जारी किया और बताया कि पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी और अधीर रंजन को  22 जनवरी को राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होने का न्योता मिला था. चूंकि यह बीजेपी और आरएसएस का इवेंट है और चुनावी लाभ के लिए अधूरे मंदिर का उद्घाटन किया जा रहा है. इसलिए कांग्रेस पार्टी न्योते को सम्मान अस्वीकार करती है. कांग्रेस पार्टी से कोई नेता अयोध्या के कार्यक्रम में नहीं जाएगा. इसके साथ ही कांग्रेस ने अपने आधिकारिक नोट में उस लाइन को भी जोड़ा, जिसे पिछले दिनों अखिलेश यादव, ममता बनर्जी, सीपीएम नेता वृंदा करात, सीताराम येचुरी के बयानों में सुना गया है.

कांग्रेस ने भी उसी लाइन को दोहराया है और धर्म को एक निजी मसला बताकर किनारा किया है. पढ़िए कांग्रेस ने अपने बयान में क्या कहा…
”हमारे देश में लाखों लोग भगवान राम की पूजा करते हैं. धर्म एक निजी मामला है. लेकिन आरएसएस / बीजेपी ने लंबे समय से अयोध्या में मंदिर को राजनीतिक प्रोजेक्ट बनाया है. बीजेपी और आरएसएस के नेताओं द्वारा अधूरे मंदिर का उद्घाटन स्पष्ट रूप से चुनावी लाभ के लिए किया जा रहा है. 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन करते हुए और भगवान राम का सम्मान करने वाले लाखों लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी और अधीर रंजन चौधरी ने स्पष्ट रूप से आरएसएस/बीजेपी के कार्यक्रम के निमंत्रण को सम्मानपूर्वक अस्वीकार कर दिया है.”

कांग्रेस के ज्यातादर सहयोगी दलों ने साफ कर दिया है कि वो राम लला की मूर्ति के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में नहीं जाएंगे. जबकि न्योता मिलने के बाद कांग्रेस नेता यही कहते आ रहे थे कि इंतजार करिए. जल्द बता देंगे. सोनिया गांधी का पॉजिटिव रुख है. अगर वो नहीं जाएंगी तो किसी पार्टी नेता/ प्रतिनिधिमंडल को अयोध्या भेजेंगे. इस बीच, कांग्रेस के ज्यादातर सहयोगी दलों को या तो न्योता नहीं मिला या वो खुलकर संकेत देने लगे थे कि अयोध्या के कार्यक्रम में नहीं जाएंगे. उद्धव ठाकरे गुट अयोध्या जाने की सलाह दे रहा था. अरविंद केजरीवाल और और शरद पवार न्योता मिलने का इंतजार कर रहे हैं. लालू प्रसाद यादव, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, सीताराम येचुरी, वृंदा करात जैसे नेताओं ने अयोध्या ना जाने का फैसला लिया है.

इससे पहले नॉर्थ बनाम साउथ की लड़ाई में भी कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व की चुप्पी पर बीजेपी सवाल उठाते आई है. दक्षिण भारत में कांग्रेस और उसके सहयोगी दल लगातार बयानबाजी करते देखे गए हैं. लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने चुप रहकर इस लड़ाई से दूरी बनाई है. जानकार कहते हैं कि दिसंबर में विधानसभा चुनाव के दरम्यान सनातन विरोधी बयानों की कीमत कांग्रेस को उत्तर भारत के राज्यों में चुकानी पड़ी है. लेकिन, चुप्पी साधे रहने से साउथ में फायदा पहुंचा है.

‘सहयोगी दलों के साथ खड़े होने का संदेश’

कांग्रेस के ज्यातादर सहयोगी दलों ने साफ कर दिया है कि वो राम लला की मूर्ति के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में नहीं जाएंगे. जबकि न्योता मिलने के बाद कांग्रेस नेता यही कहते आ रहे थे कि इंतजार करिए. जल्द बता देंगे. सोनिया गांधी का पॉजिटिव रुख है. अगर वो नहीं जाएंगी तो किसी पार्टी नेता/ प्रतिनिधिमंडल को अयोध्या भेजेंगे. इस बीच, कांग्रेस के ज्यादातर सहयोगी दलों को या तो न्योता नहीं मिला या वो खुलकर संकेत देने लगे थे कि अयोध्या के कार्यक्रम में नहीं जाएंगे. उद्धव ठाकरे गुट अयोध्या जाने की सलाह दे रहा था. अरविंद केजरीवाल और और शरद पवार न्योता मिलने का इंतजार कर रहे हैं. लालू प्रसाद यादव, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, सीताराम येचुरी, वृंदा करात जैसे नेताओं ने अयोध्या ना जाने का फैसला लिया है.

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