न्यायाधीशों की संख्या दोगुनी करने की मांग पर SC की टिप्पणी

प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय से कहा है कि न्यायाधीशों की संख्या को दोगुना करना लंबित मामलों को हल करने का समाधान नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों में न्यायाधीशों की संख्या दोगुनी करने की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा है कि अधिक न्यायाधीशों का मतलब अधिक केसों का समाधान नहीं है, बल्कि अच्छे न्यायाधीशों की आवश्यकता है। प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय से कहा है कि न्यायाधीशों की संख्या को दोगुना करना लंबित मामलों को हल करने का समाधान नहीं है। 

‘अधिक न्यायाधीशों का मतलब अधिक केसों का समाधान नहीं’

मुख्य न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय से कहा, “अधिक न्यायाधीशों का मतलब अधिक केसों का समाधान नहीं है, आपको अच्छे न्यायाधीशों की आवश्यकता है।” याचिकाकर्ता अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा था कि इस समय अदालतों में लगभग 5 करोड़ मामले लंबित हैं। इसका मतलब है कि लगभग 20 करोड़ लोग प्रभावित हैं, यह अमेरिका की आबादी के करीब है। इसलिए मामलों को समाधान के लिए न्यायाधीशों की संख्या दोगुनी करने की आवश्यकता है । हालांकि, पीठ याचिकाकर्ता के दलीलों से संतुष्ट नहीं हुई। 

इलाहाबाद HC में 160 सीटों को भरने में कठिनाई आ रही है : पीठ

पीठ ने कहा  कि न्यायाधीशों की संख्या दोगुनी करना समाधान नहीं है। हर बुराई को देखने का मतलब यह नहीं है कि जनहित याचिका दायर की जानी चाहिए। मुख्य न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय से कहा न्यायाधीशों की मौजूदा रिक्तियों को भरना कितना मुश्किल है, और कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में 160 सीटों को भरने में ही कठिनाई आ रही और याचिकाकर्ता 320 की मांग कर रहा है।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, “क्या आप बॉम्बे हाई कोर्ट गए हैं? वहां एक भी नए जज को नहीं जोड़ा जा सकता है, क्योंकि कोई बुनियादी ढांचा नहीं है। अधिक जजों की नियुक्ति समस्या का समाधान नहीं है।” शीर्ष अदालत की टिप्पणी के बाद याचिकाकर्ता अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका वापस ले ली है। शीर्ष पीठ ने कहा कि याचिका को वापस ले लिया गया मानकर खारिज कर दिया गया है और याचिकाकर्ता को कुछ शोध करने के बाद नई याचिका दायर करने की छूट दी गई।

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