
लखनऊ विश्वविद्यालय में “संस्कृत की प्रासंगिकता” कार्यक्रम का आयोजन
Lucknow University: संस्कृत तथा प्राकृत भाषा विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय में 12 अगस्त “संस्कृत की प्रासंगिकता” का आयोजन हुआ। समारोह में बिहार के कुलपति आचार्य लक्ष्मी निवास पांडेय जी मुख्यवक्ता थे। उन्होंने संस्कृत की महत्ता व उपयोगिता को बताते हुए कहा कि भारत में भारतीयता और भारतीय संस्कृति की पुन: स्थापना के लिए संस्कृत का अध्ययन, अध्यापन, पठन और पाठन बहुत आवश्यक है।
संस्कृत तथा प्राकृत भाषा विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय (Lucknow University), लखनऊ एवं संस्कृत भारती अवध प्रांत के संयुक्त तत्वावधान में रक्षाबंधन के उपलक्ष्य में आज श्रावण शुक्ल सप्तमी विक्रम संवत् 2081 को तदनुसार दिनाँक 12 अगस्त 2024 को राष्ट्रीय शिक्षा नीति में “संस्कृत की प्रासंगिकता” विषयक व्याख्यान का आयोजन अभिनवगुप्त संस्थान ल0 वि0 वि0 के कांतिचंद्र सभागार में किया गया। जिसका उद्घाटन वैदिक मंगलाचरण से प्रारंभ हुआ तत्पचात् दीप प्रज्ज्वलन करके आये हुए अतिथियों का स्वागत कार्यक्रम के संयोजक डॉ अभिमन्यु सिंह एवं डॉ सत्यकेतु ने अंगवस्त्र तथा पुष्प प्रदान करके किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ अशोक शतपथी ने किया। आए हुए सभी अतिथियों का वाचिक स्वागत डॉ सत्यकेतु जी ने किया।
संस्कृत भाषा लोक व्यवहार से हुई दूर
कार्यक्रम में आए हुए कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा, बिहार के कुलपति आचार्य लक्ष्मी निवास पांडेय जी ने कहा कि भारत में संस्कृत के लगभग 15 विश्ववद्यालय है और सब में संस्कृत भाषा का पठन-पाठन होता है लेकिन संभाषण का कार्य नहीं होता है। उन्होंने कहा कि संस्कृत एक भाषा है विषय नहीं। विदेश शिक्षा प्रणाली के परिणाम स्वरूप संस्कृत को जानभूझकर एक कठिन विषय के रूप में प्रचारित करने से संस्कृत भाषा लोक व्यवहार से दूर हो गई। जबकि कोई भी भाषा कठिन या सरल नहीं होती है। आपने कहा कि भाषा भाषण के अभाव में कठिन हो जाती है। भाषा तो वही है जो बोलने के व्यवहार में है।
इसी का लाभ उठाकर विपक्षी इसे मृत भाषा कहते है जबकि अब भी लाखों लोग संस्कृत भाषा में बात करते है। हर भारतीय संस्कृत भाषा सीख सकता है। भाषा का भाषण व्यवहार से ही आ सकता है। उन्होंने कहा कि संस्कृति की रक्षा से ही संस्कृत उन्नयन होगा। संस्कृत को स्कोरिंग विषय बना देने से न शास्त्र का विकास है और न ही संस्कृत का। संस्कृत को जन भाषा बनाने से ही भाषा का उत्थान होगा। भारत की अस्मिता व राष्ट्रीय एकता की बोधक है संस्कृत । विरासत और विज्ञान के समन्वय के समन्वय से ही विकास संभव है। यही हमारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उद्देश्य है !
संस्कृति, विरासत, विज्ञान और विकास का समागन
अध्यक्षीय उद्बोधन लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ के कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो अरविंद मोहन जी ने करते हुए कहा न्यू एजुकेशन पॉलिसी का महत्वपूर्ण फ़ोकस है संस्कृति, विरासत, विज्ञान और विकास । आपने कहा कि संस्कृत के ग्रंथों व पुराणो में विरासत समाहित है। संस्कृत के ज्ञान के बिना विरासत को संजोया नहीं जा सकता है। कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन संस्कृत विभाग के समन्वयक डॉ अभिमन्यु सिंह ने किया ।
इस अवसर पर संस्कृत तथा ज्योतिर्विज्ञान विभाग के सहायक अध्यापक डॉ अनिल कुमार पोरवाल, डॉ विष्णुकान्त शुक्ल, डॉ अनुज कुमार शुक्ल, एवं संस्कृत तथा प्राकृत भाषा विभाग के सहायक आचार्य डॉ अशोक कुमार शतपथी, डॉ गौरव सिंह, डॉ ऋचा पाण्डेय अध्यापकों सहित अनेक अन्य अध्यापक एवं लगभग 100 से अधिक छात्र छात्राएं भी उपस्थित रहें ।