Ayurveda-Allopathy: एलोपैथी से घटता लगाव…आयुर्वेद की ओर लौट रहे लोग?
Ayurveda-Allopathy: आज कल घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कुदरती और हर्बल उपचारों की मांग बढ़ रही है। आयुर्वेदिक चिकित्सकों की तादाद में भी इजाफा हो रहा। इस क्षेत्र में युवा उद्यमी भी बड़ी संख्या में आ रहे हैं। साथ ही सरकार भी आयुर्वेदिक चिकित्सा को बढ़ावा दे रही है।
आयुर्वेदिक इलाज के बारे में कई तरह की बातें कही जाती हैं. कुछ कहते हैं कि इसका असर देरी से होता है, इसलिए बहुत लोग आयुर्वेद का विकल्प बीमारी की शुरुआत में नहीं चुनते. आयुर्वेदाचार्य मानते हैं कि बीमारी बढ़ने के बाद ही लोग आयुर्वेद का इलाज लेने पहुंचते हैं, इसलिए असर होने में वक्त लगता है.
कोविड में 60 फीसदी लोग लंग इंन्फेक्शन झेलकर मौत के मुंह से वापस लौटे. कई लोगो के योग आयुर्वेद के उनके जीवन में आने के बाद कभी उन्हें सांस की दिक्कत नहीं आई.
10 वर्षों में बढ़ा आयुष कारोबार
हाल ही में आयुष मंत्रालय ने भी जोर दिया कि वैश्विक बाजारों में आयुष उत्पादों की धाक जमाने के लिए इनोवेशन और बेहतर इकोसिस्टम बनाने की जरूरत है। मंत्रालय ने बताया कि आयुष क्षेत्र 10 वर्षों में 24 अरब डॉलर तक पहुंच गया है।
आयुर्वेद एलोपैथी से किस तरह से अलग?
आयुर्वेदाचार्य के अनुसार आयुर्वेद केवल ये नहीं है कि कोई बीमारी हो गई तो उसे कैसे ट्रीट करना है, जैसे एलोपैथी में होता है. एलोपैथी में अगर आपको पेट दर्द है तो दर्द की दवा दे दी जाती है. जबकि आयुर्वेद में किसी भी बीमारी का इलाज किया जाता है तो उसमें देखा जाता है कि बीमारी क्यों हुई? उसके कारण पर काम किया जाता है.
आयुर्वेद का उद्देश्य
स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं, आतुरस्य विकार प्रशमनं’
आयुर्वेद की संहिता में दो उद्देश्य बताए गए हैं. पहला, जो स्वस्थ हैं, उनको स्वस्थ रखना ताकि कोई बीमारी हो ही ना. दूसरा, अगर किसी को कोई रोग हो गया है तो उसे कैसे ठीक करना है.
इसमें केवल लक्षण के आधार पर इलाज नहीं किया जाता है बल्कि इसमें ये भी देखा जाता है कि आखिर बीमारी क्यों हुई. अगर दो रोगियों का बीपी बढ़ा हुआ है तो दोनों के बीपी बढ़ने के कारण अलग हो सकते हैं. इसमें हो सकता है कि किसी का वात दोष की वजह से बीपी हाई हुआ हो और किसी का पित्त दोष की वजह से बीपी हाई हुआ हो. ऐसे में इन दोनों का एक ही तरीके से इलाज नहीं किया जा सकता है.
तीन दोषों से मिलकर बना है शरीर
हमारा शरीर तीन दोषों से मिलकर बना है. वो वात, पित्त और कफ है. अगर ये तीनों दोष बैलेंस हैं, तो हम लोग स्वस्थ रहते हैं. अगर इसमें से किसी का इंबैलेंस होता है तो कोई ना कोई बीमारी हो जाती है. जिस तरह से पृथ्वी पंचमहाभूतों से मिलकर बनी है, इसी तरह हमारा शरीर भी पंचमहाभूतों से मिलकर बना है.
वात दोष: जैसे हवा चल रही है, हवा की वजह से गति होती है. हमारी बॉडी में वात दोष हवा को डिनोट करता है. अगर शरीर में कोई मूवमेंट होता है तो वो वात दोष से कंसर्न रहेगी.
पित्त दोष: डाइजेशन से रिलेटेड कोई भी इशू रहता है तो वो अग्नि महाभूत का रहता है. जैसे कच्चे फल सूरज की गर्मी से पकते हैं, वैसे ही पाचन क्रिया तेज महाभूत की वजह से होती है. इसी तरह से हमारे शरीर में पित्त दोष रहता है. जो आग और तेज से मिलकर बना है. जो पाचन के लिए काम करता है .
कफ दोष: पृथ्वी का काम जैसे धारण करना होता है, इसी तरह से हमारे शरीर में जो धारण करने का काम होता है, वो कफ दोष का रहता है.
आयुर्वेद में इलाज का तरीका
आजकल लोग साल या छह महीने में डी-टॉक्सिफिकेशन के लिए भी वैलनेस सेंटर या योग आश्रम जाते हैं. इसलिए पंचकर्मा को कई बार बस डी-टॉक्सीफिकेशन ही मान लिया जाता है लेकिन आयुर्वेद इज मच मोर देन डी-टॉक्सीफिकेशन.
आयुर्वेद में शमन और शोधन दो तरह की चिकित्सा होती है. शमन और शोधन चिकित्सा को ऐसे समझा जा सकता है कि अगर किसी का कपड़ा हल्का गंदा होता है तो आप उसे नाजुक ब्रश से साफ कर देते हैं, इसी प्रक्रिया को शमन कहा जाता है. वहीं, जैसे आपके कपड़े पर बहुत ज्यादा दाग पड़ जाते हैं तो आप उसे लाउंड्री में धोने के लिए भेज देते हो, इसे ही शोधन चिकित्सा कहा जाता है. शोधन का मतलब होता है कि बॉडी की क्लींजिंग करना, जिससे सारा टॉक्सिन बाहर आ जाए.
अगर किसी का शरीर दोषों से भरा हुआ है, उसको शमन चिकित्सा से ठीक किया जाता है. अगर किसी की बॉडी में टॉक्सिन है तो उसे बाहर निकाला जाता है क्योंकि जब तक टॉक्सिन को बाहर नहीं निकाला जायेगा, मरीज जल्दी से ठीक नहीं होगा. जिस तरह से घर में कोई भी नई चीज लेकर आते हैं तो हमें जहां जो चीज रखनी होती है, उसे साफ करते हैं. इसी तरह से हम जब तक शरीर की पूरी शुद्ध नहीं करेंगे, तब तक शमन चिकित्सा इतनी इफेक्टिव नहीं रहेगी.
शमन– शमन में केवल दवाइयों के द्वारा रोगों को ठीक किया जाता है. ये दवाइयां हर्बो मिनरल होती हैं, काढ़े और क्वाथ होते हैं . दवाइयां हर्ब की बनी होती हैं या मिनरल मेडिसिन होती हैं जो रसायनशाला में आ जाती हैं, जैसे अलग अलग भस्में जैसे गोल्ड भस्म, रजत भस्म, ताम्र भस्म.
शोधन – शोधन में शरीर की अंदर से शुद्धि पंचकर्म से होती है
पंचकर्म क्या है?
पंचकर्म पद्धति आयुर्वेदिक चिकित्सा की सबसे पुरानी पद्धतियों में से एक है. पंचकर्म का अर्थ पांच क्रियाएं हैं. इन्हीं पांच चरणों से बॉडी से टॉक्सिन को बाहर किया जाता है. ये पांच कर्म, वामन, विरेचन, वस्ति, नस्य और रक्तमोक्षण हैं.
वमन: इसमें वोमिटिंग के जरिए क्लींजिंग कराई जाती है.
विरेचन: इसमें लूज मोशन के जरिए बॉडी को साफ किया जाता है.
नस्य: इसमें नाक से दवा डालते हैं, जो सीधा नर्वस सिस्टम पर काम करती है क्योंकि नाक ही हमारे सिर का द्वार होता है.
रक्तमोक्षण: अगर किसी के शरीर में गंदा खून जमा हो गया है तो उसे शरीर से बाहर निकाला जाता है. इसमें अगर किसी का पित्त एक जगह बहुत बड़ा हुआ है या फिर स्क्रीन में कोई प्रॉब्लम है, उस जगह पर हम जलोका लगाते हैं. इससे जो भी गंदा खून होता है, वो लीच लगाकर बाहर खींच लेती है.
रक्तमोक्षण में ही वीनस पंचर भी किया जाता है. शरीर में जहां भी पता चलता है कि वहां पर रक्त जमा है तो वहां से पंचर करके थोड़ा सा ब्लड निकाल देते हैं.
वस्ति: ये मेडिकेटेड एनिमा होता है. जिस तरह से हम एनिमा देते हैं, इस तरह इसमें भी होता है लेकिन इसमें दूसरे द्रव्य डाले जाते हैं. जैसे अनुवासन वस्ति में तेल एनिमा दिया जाता है. अस्थापना वस्ति में रोग के हिसाब से मेडिसिन लेकर काढ़ा बनाया जाता है फिर उसी काढ़े का एनिमा दिया जाता है और क्लींजिंग कराई जाती है.
क्या देर से असर करता है आयुर्वेद ?
महर्षि डॉक्टर राजेश योगी कहते हैं, आयुर्वेद देव चिकित्सा है इसमें चिकित्सक का भी भाव वैसा होना चाहिए और रोगी का भी. आयुर्वेद उन पर काम नहीं करता जो पथ्य यानि रोग के हिसाब से खाने का ध्यान नहीं रखते. जो पथ्य का ध्यान रखते हैं उन पर पहले दिन से काम करता है.
कितना असरदार आयुर्वेद?
रिपोर्ट्स के अनुसार डी-टॉक्सिफिकेशन तो अभी ज्यादा पॉपुलर हुआ है, इससे पहले ज्यादा लोग जानते नहीं थे. साउथ में लोग आयुर्वेद को फर्स्ट प्रेफरेंस देते हैं, उन्हें कोई दिक्कत होती है तो वो सबसे पहले आयुर्वेदिक डॉक्टर के पास ही जाते हैं. इतनी अवेयरनेस अभी नॉर्थ में नहीं है. यहां पर लोग अभी भी आयुर्वेद को सेकंड प्रेफरेंस दे रहे हैं.
दरअसल, पहले लोग एलोपैथी में ही जाते हैं, जब उन्हें लगता है कि आराम नहीं हो रहा है या एलोपैथिक दवाइयों के साइड इफेक्ट हो रहे हैं तो वो आयुर्वेद की ओर आते हैं. अगर आप समय से आयुर्वेद की ओर आते हैं तो ना तो आपको साइड इफेक्ट होंगे, और ना ही आप बीमारे के एडवांस स्टेज तक पहुंचेंगे. कारण ये है कि आयुर्वेद में हर बीमारी के जड़ पर काम किया जाता है. जिससे आदमी रोग मुक्त हो जाता है.