महाराष्ट्र में गुलियन-बैरे सिंड्रोम से मचा हाहाकार, 16 मरीज वेंटिलेटर पर एक मौत

Guillain-Barre Syndrome: पुणे में इन दिनों गुलियन-बैरे सिंड्रोम नामक बीमारी ने कोहराम मचा रखा है. महाराष्ट्र में इस रोग से पहली मौत हुई है. इस रोग के अब तक पुणे में 101 संदिग्ध केस पाए गए हैं.

Death Due To Guillain-Barre Syndrome: महाराष्ट्र में एक बीमारी जीबीएस ने लोगों को डरा दिया है। गुलियन-बैरे सिंड्रोम जिसके बारे में अधिकतर लोगों को पता ही नहीं है। पहली संदिग्ध मौत की बात राज्य स्वास्थ्य विभाग ने बताई है। विभाग के मुताबिक गिलियन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) से जुड़ी पहली संदिग्ध मौत सोलापुर से रिपोर्ट हुई है। आधिकारिक प्रेस नोट जारी कर विभाग ने इसकी जानकारी दी है। जिसके बाद स्‍वास्‍थ्‍य विभाग समेत पूरे महाराष्ट्र में हाहाकार मचा हुआ है।

जिसके मुताबिक प्रदेश में जीबीएस के 101 बीमारों में 68 पुरुष और 33 महिलाएं हैं। 19 बच्चे हैं, जिनकी उम्र 9 साल से कम है। 50 से लेकर 83 साल की उम्र के 23 मरीज हैं।16 मरीजों को वेंटिलेटर पर रखा गया है। विभाग के अनुसार 81 मरीज पुणे नगर निगम से, 14 पिंपरी चिंचवाड़ नगर निगम से और 6 अन्य जिलों के हैं। वहीं सोलापुर जिले से एक संदिग्ध की मौत की भी सूचना है। पुणे नगर निगम और ग्रामीण जिला अधिकारियों को निगरानी गतिविधियों को बढ़ाने का निर्देश दिया गया है। मरीजों के मल के 7 नमूने राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी), पुणे को भेजे गए हैं। कुल 23 रक्त नमूनों की जांच की गई है।

स्वास्थ्य विभाग ने दी पैनिक से बचने की सलाह

दरअसल, गुइलेन बैरे सिंड्रोम एक न्यूरोलॉजिकल बीमारी है, जिसका इलाज संभव है। विभाग ने टेस्टिंग बढ़ा दी है और किसी भी तरह के पैनिक से बचने की सलाह दी है। टेस्ट के लिए मरीजों से लिए गए कुछ जैविक नमूनों में कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी बैक्टीरिया का पता चला है। सी जेजुनी सबसे गंभीर संक्रमण का भी जिम्मेदार है। पुणे से सबसे ज्यादा मामले सामने आने के बाद राज्य स्तरीय त्वरित प्रतिक्रिया दल ने तत्काल प्रभावित क्षेत्र का दौरा किया।

गुइलेन-बैरे सिंड्रोम या जीबीएस यह एक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिसमें शरीर की इम्यूनिटी गलती से अपने ही पेरिफेरल नसों पर हमला बोल देती है। इससे मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। हाथ-पैर सुन्न हो जाते हैं, पैरालाइसिस भी हो सकता है। यह आमतौर पर शुरुआती इलाज से ही इस बीमारी को ठीक किया जा सकता है और 2-3 हफ्ते के अंदर रिकवरी भी संभव है। ज्यादातर मरीज पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं, जबकि कुछ मरीजों में बाद में भी कमजोरी की शिकायत बनी रहती है।

(इनपुट-आईएएनएस)

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