जयंती पर विशेष: शिक्षा को समानता का सबसे बड़ा हथियार मानते थे डॉ. भीमराव आंबेडकर

Dr. Babasaheb Ambedkar

सामाजिक नवजागरण के अग्रदूत, समतामूलक समाज के निर्माणकर्ता और आधुनिक राष्ट्र के शिल्पकार भारत रत्न डॉ. भीमराव आंबेडकर का कहना था कि ‘शिक्षा शेरनी के दूध की तरह है जो पिएगा वही दहाड़ेगा।’

उनके सामाजिक समानता के मिशन के केन्द्र में समाज के कमजोर, मजदूर, महिलाएं थीं, जिन्हें वे शिक्षा और संघर्ष से सशक्त बनाना चाहते थे।

उनके जीवन का एक मात्र लक्ष्य था समाज के शोषित वर्गों को न्याय दिलाना, जिसके लिए उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।

डॉ. भीमराव आंबेडकर उन नियमों को खुली चुनौती देते थे, जिनके पीछे कमजोर वर्ग के अधिकारों का हनन हो रहा था। वे एक व्यवाहारिक एवं यथार्थवादी चिंतक थे।

उन्होंने ऐसे समाज की रूपरेखा तैयार की जिसमें व्यक्ति एवं समूह को समाज में एक छोर से दूसरे छोर तक गमनागमन की पूरी छूट हो।

समाज के सभी तबको को शिक्षा, आत्मविकास एवं रोजगार के समान अवसर उपलब्ध हो, लोगों को विचार अभिव्यक्ति करने की पूर्ण स्वतन्त्रता हो।

समाज के कमजोर वर्ग को भी निर्भीक नेतृत्व मिले, ताकि समाज के सार्वभौमिक विकास में सबका साथ और सबका विकास संभव हो सके।

डॉ. भीमराव आंबेडकर, संघर्ष से शिखर तक 

एक मजबूत राष्ट्र के निर्माण में डॉ. भीमराव आंबेडकर का अहम् योगदान है, जिसके लिए आने वाली सदियां उनको बतौर आधुनिक भारत के शिल्पकार के रूप में याद रखेंगी।

14 अप्रैल सन् 1891, मध्यप्रदेश की महू छावनी में रामजी सकपाल के घर एक बालक ने जन्म लिया, जिसका नाम भीम रखा गया।

रामजी सकपाल महार जाति से सम्बन्ध रखते थे और सेना में शिक्षक के रूप में तैनात थे।

उनकी आर्थिक हालत बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन शिक्षा के प्रति उनका अटूट प्रेम था, इसलिए वे बालक भीम को अच्छी शिक्षा देने के लिए मन में दृढ़ संकल्पित थे।

बालक भीम ही बड़े होकर बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर बनें।

आर्थिक आभाव, अछूत जाति में पैदा होना उस दौर की सबसे बड़़ी समस्याओं में से एक था,

लेकिन डॉ. आंबेडकर की इच्छा शक्ति के आगे सभी समस्याओं को हार मानना पडा।

पढ़-लिखकर समाज की उन्नति का सरल मार्ग खोजने की चाह आंबेडकर को 21 जुलाई 1913 को कोलम्बिया विश्वविद्यालय ले गई, वहां का वातावरण जाति भेदभाव से रहित था।

निश्चित समय अवधि में अपनी पढ़ाई पूरी करने की चाह में डॉ. भीमराव आंबेडकर 18 घंटों से भी ज्यादा समय अपनी पढ़ाई में लगाते थे।

जल्द ही उन्होंने कोलम्बिया विश्वविद्यालय से एम.ए. की उपाधि प्राप्त करने के उपरांत पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।

उन्होंने उच्च शिक्षा और शोध की उपाधियां भले ही विदेश में प्राप्त की हों, लेकिन अध्ययन सदैव भारत से जुड़ी समस्याओं का ही किया।

वह एक कुशल राजनेता, अर्थशास्त्रीय, शिक्षाविद एवं कानूनविद् के साथ-साथ कुशल समाजशास्त्री भी थे।

यकीनन आज के युवा वर्ग के लिए बाबा साहब का जीवन संघर्ष प्रेरणादायक है, जिसे उन्होंने भारत को सशक्त राष्ट्र बनाने में लगाया।

यह 19वीं और 20वीं सदी का वह दौर था जब अस्पृश्य जाति में पैदा होना एक अभिश्राप से कम नहीं था। जहां न शिक्षा थी न ज्ञान और सत्ता थी।

सीमित साधनों के साथ उनमें न केवल अस्पृश्य अपितु सम्पूर्ण देश के प्रति कृतज्ञता और राष्ट्र प्रेम का विशाल भण्डार था,

जिसके लिए उन्हें भारतरत्न की उपाधि से विभूषित किया गया, इसलिए आज भी बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर आधुनिक भारत के निर्माता के रूप में याद किए जाते हैं।

भारत की महिला शक्ति को समानता और सशक्तिकरण की इच्छा 

आंबेडकर भारतीय समाज की जरूरतों से भली- भांति परिचित थे इसलिए भारत की महिला शक्ति को समानता और सशक्तिकरण के अधिकार दिलाने हेतु संसद में ‘हिन्दू कोड बिल’ लेकर आए।

डॉ. आंबेडकर बिल पास करवाना चाहते थे, ताकि समाज में महिलाओं को भागीदारी का बराबर का नेतृत्व मिल सके

लेकिन हिंदू कोड बिल उस समय पास न हो सका, जिसके विरोध में उन्होंने विधि मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। 

आंबेडकर अपने जीवन पर्यन्त स्वतंत्र ढंग से जन-जागृति का अभियान चलाते रहे, ताकि सम्पूर्ण समाज का विकास सुनिश्चित हो सके।

उनका जन-जागृति अभियान देश के कोने-कोने से कमजोर पिछड़ों को बल देने हेतु था ताकि बदलाव की लहर स्थायी हो सके।

डा. भीम राव आंबेडकर द्वारा समाज की उन्नति का सकारात्मक, संवैधानिक प्रयास सदैव समाज से नाकारात्मक विचारों को दूर करने का सफल प्रयास साबित होगा, जो आधुनिक भारत के निर्माण में सफल प्रयास है। उनमें असीम शक्ति थी।

उनकी वह शक्ति पद और सत्ता की नहीं अपितु विचारों की थी, जिसका प्रयोग उन्होंने संपूर्ण समाज के कल्याण के लिए किया।

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