राजे-रजवाड़ों के गढ़ में BJP के सामने साख बचाने की चुनौती, एसपी सिंह पटेल की मजबूत दावेदारी

Loksabha Election Pratapgarh: राजे-रजवाड़ों के प्रताप के कारण इस धरती को प्रतापगढ़ के नाम से जाना जाता है। अब तक राजनीति के कई रंग देख चुकी है यह धरा। इसे अवध क्षेत्र का प्रवेश द्वार माना जाता है। आजादी के आंदोलन में भी इस क्षेत्र का बड़ा नाम रहा है। राजनीति में यहां से निकले कई चेहरे पूरे देश में चमके। इस बार चुनावी लड़ाई कांटे की है। अभी हाल ही में NDA गठबंधन से अपनादल की नेत्री अनुप्रिया पटेल के बयान से निश्चित तौर पर वहां के राजघराने में रोष का माहौल होगा। ऐसे में भाजपा के सामने साख बचाने की चुनौती है।

इस बार आम चुनाव में भाजपा सांसद संगम लाल गुप्ता के सामने जहां जीतने की चुनौती है, वहीं समाजवादी पार्टी प्रत्याशी डॉ. एसपी सिंह पटेल के पास अपने नाम के आगे सांसद लिखवाने का मौका है। बसपा ने युवा प्रथमेश मिश्र सेनानी को मैदान में उतारकर मुकाबले को रोचक बना दिया है। आमतौर पर मुद्दे दरकिनार हैं। विकास की चर्चा होती है तो जातीय समीकरण की भी। संसदीय क्षेत्र क्रमांक 39 प्रतापगढ़ के मुद्दों की बात करें तो यह कोई एक नहीं, अनेक हैं।

इन मुद्दों पर होगी लड़ाई

राजनीति में अग्रणी भूमिका निभाने वाला और सत्ता को मजबूती देने वाले बड़े दिग्गजों का गढ़ होते हुए भी यहाँ के विकास की गति कभी तेज नहीं हो सकी शायद यही कारण है की इस बार की लड़ाई मुद्दों पर होगी। यहाँ के आंवला किसानों को उचित मूल्य नहीं मिलता। खारा पानी मुसीबत है। ग्रामीण क्षेत्र के अस्पतालों की दशा ठीक नहीं है। उद्योग नहीं हैं। रोजगार के अवसर के लाले पड़े हैं। बड़ी संख्या में लोग सूरत, मुंबई, दिल्ली, पंजाब, कानपुर में रोजी रोटी के लिए हैं। उच्च शिक्षा संस्थानों की भारी कमी है। हास्टल नहीं हैं। ट्रैफिक प्लान नहीं है, मुख्यालय में जाम बड़ी समस्या है।

कांग्रेस का गढ़ था प्रतापगढ़

ऐतिहासिक स्थल उपेक्षित हैं। पर्यटन के नक्शे पर इसे उभारा नहीं जा सका है। संसदीय क्षेत्र कभी कांग्रेस का गढ़ था। कालाकांकर राजघराने से राजा रामपाल सिंह कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में थे। इसी राजघराने के राजा दिनेश सिंह कांग्रेस से सांसद व विदेश मंत्री तक बने।

उनकी बेटी राजकुमारी रत्ना सिंह भी तीन अलग-अलग चुनावों में कांग्रेस से सांसद बनीं, हालांकि मौजूदा समय में वह भाजपा में हैं। इस बार कांग्रेस यहां सीधे मुकाबले में नहीं है। वह सपा के साथ गठबंधन में है। बसपा अकेले लड़ रही है।

मायावती, प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल और उनकी पार्टी के अन्य नेता यहां आ चुके हैं। मतदाता भी अब काफी हद तक खुलने लगे हैं। 

हिंदुत्व और राष्ट्रवाद को भुना रही भाजपा

भाजपा राष्ट्रवाद के नाम पर वोट मांग रही है, वहीं विपक्षी दलों के पास भी बेरोजगारी व महंगाई जैसे मुद्दे हैं… देखिए क्या होता है?’ सिविल लाइन के कमल किशोर पांडेय कहने लगे ‘इस सरकार में और कुछ हो न हो, लेकिन राम मंदिर बना। अपराधियों का सफाया हुआ, हमें तो यह अच्छा लगता है।’

अवधेश ओझा कहते हैं कि ‘सरकार में विकास भी तो हुआ है। भाजपा प्रत्याशी के लिए पूरी पार्टी लग गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सभाएं हो चुकी हैं। गृहमंत्री अमित शाह फिर आने वाले हैं। गठबंधन धर्म निभाते हुए केंद्रीय राज्य मंत्री व अपना दल एस की प्रमुख अनुप्रिया पटेल ताबड़तोड़ सभाएं कर रही हैं। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक भी सक्रिय हैं।’

मीरा भवन निवासी अभिषेक तिवारी कहते हैं ‘केवल भावनात्मक बातें करने से और धर्म ध्वज लहराने से ही रोजगार और किसानों की समस्या दूर नहीं होती। भाजपा प्रत्याशी के पास गिनाने को बहुत सारे काम हैं, लेकिन उनके दावों की काट भी सपा और बसपा प्रत्याशी लेकर घूम रहे हैं। सपा प्रत्याशी सभाओं में साफ कहते हैं कि स्वास्थ्य और शिक्षा में कुछ काम नहीं हुआ है। बसपा उम्मीदवार भी जिले की तस्वीर को बदरंग बताते हैं।’

तीनों प्रत्याशियों को राजनीतिक अनुभव

राजनीतिक तापमान को समझने वालों का मानना है कि लड़ाई किसी में आमने-सामने कहना उचित नहीं होगा। तीनों प्रमुख प्रत्याशी राजनीतिक अनुभव भी रखते हैं। संगम लाल सदर से विधायक भी रह चुके हैं।

एसपी सिंह पटेल व उनकी पत्नी करीब 18 साल तक विधान परिषद के सदस्य रहे हैं। एस पी सिंह और उनके परिवार से यहाँ की जनता भलीभांति जानती है और भावनात्मक रूप से जुडी हुई है शायद यही वजह है कि वह यहाँ मजबूत दावेदारी पेश कर रहें हैं। तो वहीं प्रथमेश सेनानी के परिवार में राजनीति फलती-फूलती रही है। पिता शिव प्रकाश सेनानी कुंडा से कई बार लड़े। उनकी मां सिंधुजा सेनानी के पास भी राजनीतिक अनुभव है। अब जनता किसे चुनती है, यह तो वही जाने। हां इतना कहना उचित होगा कि यहां भाजपा के सामने साख बचाने की चुनौती है।

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