बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष: हर किसी के लिए प्रेरणादायी है गौतम बुद्ध का जीवन

गौतम बुद्ध

आज 26 मई बुधवार को बुद्ध पूर्णिमा का त्योहार मनाया जा रहा है। हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व है। जहां बुद्ध पूर्णिमा का पर्व बौद्ध अनुयायियों के लिए खास महत्व रखता है, तो वहीं हिंदुओं के लिए भी इस दिन की अलग मान्यता है।

मान्यता है कि बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही भगवान गौतम बुद्ध का जन्म हुआ, इसी दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और इसी दिन उनका महानिर्वाण भी हुआ।

गौतम बुद्ध का जीवन हर किसी के लिए प्रेरणादायी है। गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म के प्रवर्तक थे। इनका जन्म 483 ईसा पूर्व तथा महापरिनिर्वाण 563 ईसा पूर्व में हआ था। बचपन में उनको राजकुमार सिद्धार्थ के नाम से जाना जाता था।

बौद्ध ग्रंथों के अनुसार गौतम बुद्ध के जन्म से 12 वर्ष पूर्व ही एक ऋषि ने भविष्यवाणी की थी कि यह बच्चा या तो एक सार्वभौमिक सम्राट या महान ऋषि बनेगा। 35 वर्ष की आयु में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।

वह संसार का मोह त्याग कर तपस्वी बन गए थे और परम ज्ञान की खोज में चले गए थे। आइए आज हम आपको सिद्धार्थ के महात्मा बुद्ध बनने तक के सफर के बारे में बताते हैं।

जन्मकाल

बुद्ध का गोत्र गौतम था। बुद्ध का वास्तविक नाम सिद्धार्थ गौतम था। उनका जन्म शाक्य गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी में हुआ था।

बुद्ध के जन्म के सात दिन के भीतर ही उनकी माता का देहांत हो गया था। उनका पालन पोषण उनकी मौसी गौतमी ने किया था। शिशु का नाम सिद्धार्थ रखा गया था।

शाक्य वंश के राजा शुद्धोधन सिद्धार्थ के पिता थे। सिद्धार्थ के जन्म से पूर्व हुई भविष्यवाणी से परेशान होकर उनके पिता ने उन्हें तपस्वी बनने से रोकने के लिए राजमहल की परिधि में रखा।

गौतम राजसी विलासिता में पले-बढ़े, बाहरी दुनिया से आक्रांत, नृत्य करने वाली लड़कियों द्वारा मनोरंजन, ब्राह्मणों द्वारा निर्देशन, और तीरंदाजी, तलवारबाजी, कुश्ती, तैराकी और दौड़ में प्रशिक्षित किए गए थे।

कम उम्र में ही उनका विवाह राजकुमारी यशोधरा से करा दिया गया। दोनों का एक पुत्र भी हुआ। जिसका नाम राहुल था।

इसलिए मनाते हैं बुद्ध पूर्णिमा

दरअसल, जब भगवान बुद्ध ने अपने जीवन में हिंसा, पाप और मृत्यु के बारे में जाना, तब से उन्होंने मोह और माया को त्याग दिया। ऐसे में उन्होंने अपने परिवार को छोड़कर सभी जिम्मेदारियों से मुक्ति ले ली, और खुद सत्य की खोज में निकल पड़े।

इसके बाद बुद्ध को सत्य का ज्ञान भी हुआ। वहीं, वैशाख पूर्णिमा की तिथि का भगवान बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाओं से विशेष संबंध है। इसी वजह से हर साल वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाती है।

भारत के अलावा इन देशों में मनाया जाता है ये दिन

भारत के अलावा विदेशों में भी सैकड़ों सालों से बुद्ध पूर्णिमा का पर्व मनाया जा रहा है। इसमें कंबोडिया, नेपाल, जापान, चीन, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया, वियतनाम, थाईलैंड आदि कई देश शामिल हैं, जो इस दिन बुद्ध जयंती मनाते हैं।

ऐसे हुई बुद्धत्व की प्राप्ति

हिंदू शास्त्रों के अनुसार, बुद्ध जब महज 29 साल के थे, तब उन्होंने संन्यास धारण कर लिया था और फिर उन्होंने बोधगया में पीपल के पेड़ के नीचे 6 साल तक कठिन तप किया था। वो बोधिवृक्ष बिहार के गया जिले में आज भी स्थित है।

बुद्ध को शाक्यमुनि के रूप में भी जाना जाता है। सात हफ्तों तक उन्होंने मुक्ति की स्वतंत्रता और शांति का आनंद लिया। प्रारंभ में तो वह अपने बोधि के बारे में दूसरों को ज्ञान नहीं देना चाहते थे। बुद्ध का मानना था कि अधिकांश लोगों को समझाना बहुत मुश्किल होगा।

मान्यता है कि बुद्ध को स्वयं ब्रह्माजी ने अपने ज्ञान को लोगों तक पहुंचने का आग्रह किया था फिर वह इस पर सहमत हो गए। इस तरह उन्होंने अपना पहला धर्मोपदेश उप्र के वाराणसी के पास सारनाथ में अपने पहले मित्रों को दिया था।

माने जाते हैं भगवान विष्णु के अवतार

वैशाख माह में पूर्णिमा के दिन बुद्ध पूर्णिमा का पावन त्योहार मनाया जाता है। इस दिन भगवान बुद्ध का जन्म हुआ। भगवान बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। इस पूर्णिमा को सत्यव्रत पूर्णिमा भी कहा जाता है। बुद्ध पूर्णिमा को प्रकश उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन अन्न दान का विशेष महत्व है।

Back to top button