UP Politics: बसपा की चाल से बिगड़ेगा यूपी का समीकरण, मायावती को किसका इंतजार?

Politics: लोकसभा चुनाव की चर्चा के केंद्र में एकाएक बसपा फिर से आ गई है. इस बात की चर्चाएं जोरों पर हैं कि बसपा विपक्षी इंडिया गठबंधन में शामिल होंगी या नहीं. दोनों ही स्थितियों में चुनाव के सियासी समीकरण बदलते हुए देर नहीं लगेगी.

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लोकसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने उत्तर प्रदेश की 51 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है, वहीं समाजवादी पार्टी (एसपी) ने भी अपने कोटे की 31 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है। चुनाव में सबसे पहले उम्मीदवारों के नाम की घोषणा करने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने इस बार अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। बसपा प्रमुख मायावती ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है, लेकिन अभी तक एक भी सीट पर उम्मीदवारों के नाम का ऐलान नहीं किया गया है। ऐसे में हर किसी के मन में यह सवाल उठ रहा है कि आखिर मायावती किसका इंतजार कर रही हैं?

चुनाव में सबसे पहले प्रत्याशियों के नाम की घोषणा करने वाली बसपा ने इस बार अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं, जिसके चलते ही गठबंधन में शामिल होने के कयास लगाए जा रहे हैं. बसपा के सांसद रामजी गौतम ने कहा कि पार्टी ने पहले ही अकेले चुनाव लड़ने का फैसला कर रखा है. ऐसे में बसपा अगर अपनी सियासी चाल बदलती है तो फिर 2024 के सारे समीकरण बदल जाएंगे?

बसपा बदलेगी चाल तो बिगड़ेगा बीजेपी का खेल
बसपा अगर अपनी एकला चलो की सियासी चाल को बदलती है और विपक्षी गठबंधन का हिस्सा बनती हैं तो फिर लोकसभा चुनाव के सियासी समीकरण पूरी तरह से बदल जाएंगे. कांग्रेस, बसपा और सपा ने अगर साथ मिलकर चुनाव लड़ा तो सियासी मुकाबलों में नया मोड़ आएगा. उत्तर प्रदेश में नए सिरे से टिकट बंटवारा और प्रत्याशियों को इधर-उधर भेजकर चुनाव लड़ाने की संभावना होगी. बसपा विपक्ष इंडिया गठबंधन में आती है तो सूबे की कई सीटों पर खासकर पश्चिमी में प्रत्याशियों में फेरबदल की संभावना बन जाएगी. ऐसी स्थिति में बिजनौर और सहारनपुर सीट बसपा के पास रहने की संभावना होगी.

‘बागियों’ पर है बसपा की नजर!
लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटे राजनीतिक दलों के बीच टिकट बंटवारे को लेकर होने वाले उतार-चढ़ाव पर मायावती की नजरें टिकी हुई हैं। इसी वजह से वह इस बार फूंक-फूंक कर कदम रख रही हैं। प्रत्याशियों के चयन के लिए मायावती हर दिन मंडल और सेक्टर प्रभारियों के साथ बैठक कर रही हैं। ऐसे में पार्टी उन दावेदारों पर खास ध्यान दे रही है जिन्हें पिछले चुनाव में 2 लाख से ज्यादा वोट मिले थे। इसके अलावा जिन सीटों पर ऐसे उम्मीदवार उपलब्ध नहीं हैं, वहां पार्टी जोनल कोऑर्डिनेटर को ही टिकट देने की रणनीति अपना सकती है।

बसपा सूत्रों की मानें तो पार्टी समन्वयकों ने अपने-अपने क्षेत्र की अधिकांश सीटों पर संभावित उम्मीदवारों के नामों की सूची भी मायावती को सौंप दी है। बीएसपी ने हर सीट के लिए तीन नाम चुने हैं, जिस पर पार्टी मुखिया के साथ मंथन चल रहा है। बसपा ने इस बार रणनीति बनाई है कि सपा-कांग्रेस गठबंधन और बीजेपी के उम्मीदवारों की सूची आने के बाद ही पार्टी अपने उम्मीदवारों की सूची जारी करेगी। ऐसे में मायावती की रणनीति विपक्षी दलों के उम्मीदवारों के समीकरण को देखकर ही अपना कदम आगे बढ़ाने की रही है।

यूपी में त्रिकोणीय लड़ाई की सूरत बनेगी
लोकसभा चुनाव को लेकर सपा-कांग्रेस में गठबंधन से प्रदेश में एनडीए से ज्यादा अकेले चुनाव मैदान में उतरने वाली बसपा को बड़ा झटका लगने की आशंका जताई जा रही है. बसपा अपने सियासी नुकसान के साथ सपा-कांग्रेस गठबंधन का भी खेल बिगाड़ सकती है. मायावती के एकला चलो फैसले से यूपी में त्रिकोणीय लड़ाई की सूरत बन जाएगी. इस स्थिति में विपक्ष का वोट बंटेगा, जिसका सीधा लाभ बीजेपी गठबंधन को मिल सकता है. विपक्ष भी इस बात को समझ रहा है. इसीलिए विपक्षी दल मायावती को बीजेपी की बी-टीम बताने में जुटा है ताकि सत्ता विरोधी वोट बंट न सके. सपा-कांग्रेस साथ है, जिसकी वजह से मुस्लिम वोट का एकतरफा झुकाव उसकी ओर होने से गठबंधन को तो फायदा हो सकता है, लेकिन बसपा के लिए सिर्फ दलित वोट के दम पर किसी भी सीट पर जीत सुनिश्चित करना मुश्किल दिख रहा है.

आचार संहिता लगने का हो रहा है इंतजार
फिलहाल कांग्रेस, बसपा और सपा ने अपने प्रत्याशियों की नई सूची जारी नहीं की है. सियासत के जानकारों का दावा है कि आचार संहिता लगने का इंतजार किया जा रहा है. 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-आरएलडी गठबंधन संग लड़ने पर बसपा को 10 लोकसभा सीटों पर सफलता मिली थी. 2014 में अकेले चुनाव मैदान में उतरने पर पार्टी शून्य पर सिमट कर रह गई थी. सर्वाधिक 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में बीजेपी के विजय रथ को थामने के लिए कांग्रेस की लगातार कोशिश रही कि विपक्षी गठबंधन में सपा के साथ बसपा भी आ जाए, लेकिन मायावती अभी तक तैयार नहीं है. ऐसे में मायावती अगर अपना स्टैंड चुनाव आचार संहिता लगने के बाद बदलती हैं तो फिर बीजेपी के लिए कई सीटों पर चुनौती खड़ी हो जाएगी.

आपको बता दें कि पिछले लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा-आरएलडी के साथ होने का खामियाजा बीजेपी को उठाना पड़ा था. बीजेपी सूबे की 80 लोकसभा सीटों में से 64 सीटें ही जीत सकी थी जबकि 2014 में 73 सीटें उसे मिली थी. इस तरह से बीजेपी को 9 लोकसभा सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था. यूपी में करीब दो दर्जन लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां पर दलित और मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका में है. इन सीटों को बचाए रखना बीजेपी के लिए मुश्किल हो जाएगा. 2024 में बीजेपी ने क्लीन स्वीप मतलब सूबे की सभी 80 की 80 लोकसभा सीटें जीने का प्लान बनाया है. इसे अमलीजामा पहनाने के लिए आरएलडी और राजभर को भी साथ मिला लिया है.

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