एक सवाल: क्या भ्रष्टाचार का सिर्फ आरोप लगाकर आम जीवन से जुड़ी परियोजना को बाधित करना ही है मकसद?

क्या जल जीवन मिशन पर उप्र में मंडरा रहा है भ्रष्टाचार का साया

लखनऊ। केंद्र की मोदी सरकार की घरों में नल से शत प्रतिशत पीने के पानी के आपूर्ति की महत्‍वाकांक्षी योजना जल जीवन मिशन को उप्र के ग्रामीण क्षेत्रों पहुँचाने के लिए प्रदेश की योगी सरकार कृतसंकल्पित दिखाई पड़ती है।

लेकिन इस हेतु समयबद्ध तरीके से योजना को लागू करने के जिम्मेदार जलशक्ति मंत्रालय पर मीडिया द्वारा भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जा रहे हैं।

दरअसल उप्र में राज्‍य पेयजल एवं स्‍वच्‍छता मिशन के नाम से संचालित इस योजना में प्राथमिक तौर पर उन घरों का बेसलाइन सर्वे कराया जाना था, जिन घरों में पाइपलाइन से आपूर्ति नहीं हो रही है। इस सर्वे के आधार पर ही आगे की कार्य योजना तैयार की जानी है।

अब भ्रष्टाचार के आरोप की कहानी यहीं से शुरू होती है. इस बेसलाइन सर्वे के लिए जब निविदा आमंत्रित की गई तो कहा गया कि केंद्र सरकार की मंशा के विपरीत इसमे लिमिटेड कंपनियों को सम्बद्ध किया गया है।

जबकि सरकार ऐसे कार्यों को गैर सरकारी संगठनों, स्‍वयंसेवी संगठनों व महिला स्‍वयं सहायता समूहों से करवाना चाहती है ताकि अधिक से अधिक लोगों को रोजगार मुहैया कराया जा सके.

अब कहने सुनने में तो यह बात अच्छी लग सकती है लेकिन देखना यह भी होगा कि ऐसे कार्यों के लिए उक्त संस्थाओं के पास पर्याप्त विशेषज्ञता, अनुभव व संसाधन हैं या नहीं।

सिर्फ रोजगार पैदा करने के लिए आम लोगों के जीवन से जुडी इस महत्‍वाकांक्षी योजना के क्रियान्वयन को खतरे में नहीं डाला जा सकता।

गौरतलब है कि मौजूदा आंकड़ों के हिसाब से मात्र 18 फीसदी घरों में ही पीने के पानी की आपूर्ति हो पा रही है और 2024 तक इसे शत प्रतिशत तक पहुंचाना है।

केंद्र सरकार ने यह फैसला इसलिये लिया क्‍योंकि देश के तमाम राज्‍यों में लोग आर्सेनिक, फ्लोराइड, लेड मिश्रित दूषित जल पीकर कई प्रकार के रोगों से ग्रसित होते हैं और असमय काल के गाल में समा जाते हैं।

भ्रष्टाचार का एक और आरोप तब लगा जब कार्य हेतु सबसे अधिक मूल्य की निविदा डालने वाली कंपनी मेधज टेक्नोकांसेप्ट प्रा.लि. को भी कार्य का आवंटन हुआ हालाँकि इस फर्म के अतिरिक्त भी तीन और फर्में कार्य कर रही है क्योंकि काम को चार जोन में बांटकर करवाया जा रहा है.

इस आरोप की सच्चाई जानने का प्रयास जब किया गया तो यह पता चला कि इस बेसलाइन सर्वे के लिये QCBS यानी क्‍वालिटी एंड कास्‍ट बेस्‍ड सर्विस के आधार पर ई-टेंडर मंगाया गया। इसमें मेधज टेक्नोकांसेप्ट की दर सबसे अधिक थी.

अब पता करने पर यह पता चला कि इस टेंडरिंग का का आधार (QCBS) CVC (केन्द्रीय सतर्कता आयोग) द्वारा अनुमोदित प्रणाली है. पता चला कि ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि दूसरी प्रणालियों में फर्में काम पाने के लिए कम रेट डाल देती हैं लेकिन बाद में फायदा न होता देख कार्य पूर्ण करने में आनाकानी करने लगती हैं. QCBS में रेट पर सौदेबाज़ी नहीं हो सकती इसलिए इस पद्धति से कार्य का पूर्ण होना निश्चित होता है.

अब ऐसे में कुछ खर्च कम करने के लिए आम आदमी के जीवन से जुडी ऐसी महत्‍वाकांक्षी परियोजनाओं को समयबद्ध तरीके से होने देने में बाधा पहुँचाना बिलकुल उचित नहीं है.

वैसे भी सर्वविदित है कि कोई भी परियोजना यदि समय से पूर्ण नहीं हुई तो उसकी लागत अपने आप बढ़ जाती है और कमोबेश उसी लागत पर पहुँच जायेगी जिस पर आज सवाल उठाया जा रहा है लेकिन तब ये सवाल उठाने वाले गायब हो जायेंगे और आम जनता नेताओं, अधिकारियों व कार्यदायी संस्थाओं को दोषी मानने लगती है. कार्य भी आरोपों की जाँच जैसे समय ख़राब करने वाले कामों में पड़कर ठन्डे बस्ते में पहुँच जाएगा.

भ्रष्टाचार के आरोपों पर जब मेधज टेक्नोकांसेप्ट के जिम्मेदार अधिकारीयों से पुछा गया तो उनका कहना था राज्‍य पेयजल एवं स्‍वच्‍छता मिशन (Swsm) उप्र सरकार का एक प्रतिष्ठित विभाग है.

हम अपने ऊपर लगाए सभी आरोपों का दृढ़ता से खंडन करते हैं. हमने राज्य सरकार और केन्द्रीय सतर्कता आयोग के दिशा-निर्देशो के आधार पर ही निविदा की शर्तों को पूरा किया है. मानक विभाग द्वारा निर्धारित किया गया और इसी क्रम में हमनें भी निविदा में भाग लिया।   

हमारी संस्था 14 वर्षों से प्रदेश ही नहीं अपितु पूरे देश में लगभग 28 प्रान्तो में अपनी प्रभावशाली उपस्थिति रखकर कार्य कर रही है। आज देश भर में हमारे 2000 से अधिक कुशल एवं अनुभवी इंजीनियर्स नौकरी कर अपने परिवार का दायित्व संभाले हुए हैं।

हमारी संस्था को कई बार प्रदेश एवं देश स्तर के पुरस्काररों से अलंकृत किया गया है जिसमें सबसे प्रतिष्ठित MSME (अति सूक्ष्म, मध्यम एवं लघु उद्यम) मंत्रालय की तरफ से माननीय प्रधानमंत्री भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत किया गया है।

हमारी संस्था एक ऐसी कम्पनी के रूप में जानी जाती है, जो अनवरत उ0प्र0 राज्य के गौरव के लिये कार्य कर रही है। यह हमारी संस्था को बदनाम करने की साजिश मात्र है।

भ्रष्टाचार के इन आरोपों के विषय में जब हमने अपने स्तर से पता लगाया तो पता चला कि यह विभाग उत्तर प्रदेश सरकार के सबसे ईमानदार मंत्री के अधीन है।

प्रधान सचिव स्तर के अधिकारी ने बताया कि सरकार के सभी दिशानिर्देशों व मानकों का पालन किया गया है. आरोप बेबुनियाद व तथ्यहीन हैं।

हाल ही में केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी ने केंद्र के सरकारी बाबुओं को योजना में कर रही देरी के कारणों को दूर ना करने के लिए जमकर लताड़ा था और ये खबर पूरे देश में सुर्ख़ियों में थी।

ऐसे अनगिनत उदाहरण है जिसमें कम क़ीमत में काम लेकर कई फर्मों ने काम अधूरा छोड़ दिया और सरकारी योजनाएँ अधर में रह गयीं।

अगर ऐसे में कोई फर्म सरकार द्वारा ही तय की गयी QCBS प्रणाली से काम को ठीक से करना चाहती है तो सिर्फ भ्रष्टाचार के नाम पर सरकारी योजना को क्षति पहुँचाने के पीछे के कारणों को भी उजागर करना होगा।  

अब सवाल यह भी उठता है कि मात्र सनसनी फ़ैलाने के लिए भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर जनता के सीधे जीवन से जुडी परियोजनाओं को बाधित करना कहाँ तक सही है?

भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना हमारा अधिकार व कर्तव्य दोनों है लेकिन यदि उसमे वास्तविकता हो तो।  

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