पंजाब: राज्यपाल की राष्ट्रपति शासन लगा देने की धमकी, सीएम भगवंत मान बोले- मैं झुकूंगा नहीं..
पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित ने दो दिन पहले भगवंत मान सरकार को चेतावनी दी थी कि अगर पत्रों के जवाब न मिले तो वह राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश केंद्र से कर सकते हैं।

सूत्रों के अनुसार 15 अगस्त को पत्र लिखकर राजभवन ने पंजाब सरकार से कुछ जानकारियां मांगी थी। 11 दिन बीतने के बावजूद भगवंत मान सरकार की ओर से कोई जानकारी उपलब्ध नहीं करायी गयी। अगर राज्यपाल के पत्र का जवाब नहीं मिलता है तो ये संवैधानिक कर्तव्य का अपमान है। इससे पहले कि वह संविधान के अनुच्छेद 356 और भारतीय दंड संहिता की धारा 124 के तहत अंतिम निर्णय लें, मुख्यमंत्री भगवंत मान उचित कदम उठाएं।’
राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित की इस चिट्ठी को पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगाने की चेतावनी के तौर पर देखा जा रहा है। इसके जवाब में मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा है कि गवर्नर को लगता है कि उनकी चिट्ठी के बाद सीएम की कुर्सी छिनने के डर से मैं कंप्रोमाइज कर लूंगा तो जान लें मैं कोई समझौता नहीं करूंगा।
राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने भगवंत मान की सरकार को बर्खास्त करने के पीछे 2 कानूनी आधार दिए हैं
1. सरकार संविधान के मूल सिद्धांत की अनदेखी कर रही है।
2. राज्य में कानून व्यवस्था पूरी तरह से फेल है।
पंजाब सरकार संविधान के मूल सिद्धांत की अनदेखी कर रही ?
राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने पंजाब सीएम भगवंत मान को लिखे पत्र में कहा है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 167 के प्रावधानों के मुताबिक, राज्यपाल अगर राज्य के प्रशासनिक मामलों के बारे में कोई जानकारी मांगें तो मुख्यमंत्री द्वारा उसे उपलब्ध कराया जाना अनिवार्य होता है। ऐसा नहीं करके राज्य सरकार संविधान के मूल सिद्धांत की अनदेखी कर रही है।
संविधान के मूल सिद्धांतों के अनेक पहलू हैं। जनता के अनुसार देखा जाए तो चैप्टर-3 में दिए गए मौलिक अधिकारों का संरक्षण सबसे अहम है। संसद और सुप्रीम कोर्ट के अनुसार संघीय व्यवस्था, संसदीय प्रणाली, ज्यूडिशियल रिव्यू जैसे विषय बेसिक ढांचे में आते हैं।
राज्यों के हिसाब से देखा जाए तो केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों का पालन, अदालतों के फैसले का सम्मान, राज्य की वित्तीय व्यवस्था का सही ऑडिट, संविधान की 7वीं अनुसूची के तहत केंद्रीय मामलों में बेवजह हस्तक्षेप नहीं करना जैसी बातें राज्यों की संवैधानिक जिम्मेदारी है।
पंजाब सीमावर्ती राज्य है, जहां राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवादियों पर लगाम का मामला सबसे अहम है। इसके अलावा पंजाब के बारे में राज्य सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारियों को अलग तरीके से आकलन करने की यदि कोशिश की गई तो उन मापदंडों को अन्य राज्यों पर भी लागू करना पड़ेगा।
राज्य में कानून व्यवस्था पूरी तरह से फेल हाे चुकी है?
पंजाब राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने अपने पत्र में लिखा है कि पंजाब में नशा चरम पर है। राज्य में हर मेडिकल दुकानों और शराब के ठेकों पर गैरकानूनी नशीले पदार्थ आसानी से उपलब्ध हैं। इससे साफ है कि पंजाब में कानून व्यवस्था पूरी तरह से फेल है।
मीडिया रिपोर्ट्स और वरिष्ट वकील विराग के अनुसार पंजाब में ड्रग्स का नासूर बहुत पुराना है। पहले की सरकारों के मंत्रियों के ऊपर ड्रग्स कारोबारियों के साथ रिश्तों के आरोप थे। अगर वर्तमान राज्य सरकार के अफसर या मंत्रियों की ड्रग्स या शराब के कारोबारियों के साथ मिलीभगत है तो राज्यपाल को इस बारे में केंद्र सरकार को सबूतों के साथ जानकारी देनी चाहिए।
इन सबूतों के आधार पर केंद्रीय एजेंसी NCB एनडीपीएस एक्ट के तहत संबंधित अधिकारियों और मंत्रियों के खिलाफ मामले दर्ज कर सकती है, लेकिन ऐसे आरोपों के आधार पर पूरी राज्य सरकार के खिलाफ कार्रवाई करना या धमकी देना संविधान सम्मत नहीं है।
अनुच्छेद-355 के तहत केंद्र सरकार, राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए बगैर भी हस्तक्षेप कर सकती है। केंद्र सरकार की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब के अलावा देश के कई राज्यों में ड्रग्स का अवैध कारोबार हो रहा है। शराब की बिक्री तो देश के कई राज्यों में आमदनी का बड़ा जरिया है।
अवैध शराब की बिक्री से अनेक राज्यों में राजस्व का भारी नुकसान होने के साथ बेगुनाह लोगों की मौतों का आंकड़ा बहुत बड़ा है। मणिपुर में कानून और व्यवस्था की स्थिति पूरी तरह से विफल हो गई है। राज्य में विधानसभा का अधिवेशन भी नहीं हो पाया। इसके बावजूद वहां पर राष्ट्रपति शासन नहीं लगा। इसलिए शराब और ड्रग्स मामलों के आधार पर पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा करना गलत होगा।
पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगाना मुमकिन है ?
सुप्रीमकोर्ट के वकील विराग के मुताबिक यह एक आपातकालीन अधिकार है, जिसका बहुत ही जिम्मेदारी के साथ इस्तेमाल होना चाहिए। अनुच्छेद-356 के तहत राज्यपाल को अनेक विशेष अधिकार हासिल हैं। राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर और केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश पर राष्ट्रपति अनुच्छेद-356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाने की मंजूरी दे सकते हैं।
संसद के दोनों सदनों की मंजूरी भी लेनी होती है। उत्तराखंड समेत कई राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया था।
