नवरात्रि में उप्र के इन देवी मंदिरों में करें माता के दर्शन, पूर्ण होगी मनोकामना

उप्र के प्रसिद्ध देवी मंदिर

आज 2 अप्रैल से चैत्र नवरात्रि प्रारंभ है। नवरात्रि सनातन धर्म का महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें देवी मां के नौ स्वरूपों की 9 दिनों तक पूजा की जाती है। लोग अपने घरों में कलश स्थापना कर मां की पूजा अर्चना करते हैं।

इस दौरान देवी भक्त उपवास भी रखते हैं। नवरात्रि के नौ दिन आस्था, श्रद्धा से परिपूर्ण होते हैं, जिसमें लोग मां के नौ स्वरूपों के दर्शन के लिए मंदिर जाते हैं। भक्त महानवमी के दिन खासतौर पर मंदिर जाते हैं और माता के दर्शन करते हैं।

वैसे तो भारत में कई प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर हैं, जहां भक्तों की मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। 52 शक्तिपीठों में मां का वास रहता है। ऐसे में अगर भक्त नवरात्रि में देवी मां के पवित्र और प्राचीन मंदिर के दर्शन करना चाहते हैं तो कुछ प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में जान लें।

अगर आप उप्र के रहने वाले हैं तो आपको माता के दर्शन के लिए कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं। उप्र में ही देवी मां के कुछ प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में यहां जान लीजिए, जिनसे भक्तों की अटूट आस्था जुड़ी है।

शैलपुत्री मंदिर, वाराणसी

देवी मां के नौ स्वरूपों में से एक माता शैलपुत्री के दर्शन करना चाहते हैं, तो पवित्र नगरी वाराणसी के अलईपुर क्षेत्र में मां शैलपुत्री का मंदिर है। यहां हर साल काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मान्यता है कि यहां मां के दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।

शैलपुत्री मंदिर, वाराणसी

मां ललिता देवी मंदिर, सीतापुर

उप्र में सबसे पवित्र स्थानों में नैमिष धाम है। यह सीतापुर के मिश्रिख में बसा है। नैमिष धाम में मां ललिता देवी मंदिर स्थित है। इस मंदिर में माता के दर्शन के लिए दूर दराज से लोग आते हैं।

ललिता देवी मंदिर माता के 52 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि यहां माता सती का हृदय गिरा था। यहां सच्चे मन से पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

ललिता देवी मंदिर, नीमसार

देवी पाटन मंदिर, बलरामपुर

यूपी के ही बलरामपुर जिले में तुलसीपुर में माता का प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर का नाम देवी पाटन मंदिर है। 52 शक्तिपीठों में देवी पाटन मंदिर भी है। यहां माता सती का वाम स्कंध के साथ पट गिरा था। इसलिए इस शक्तिपीठ का नाम पाटन पड़ा और यहां विराजमान देवी को माता मातेश्वरी कहा जाता है।

देवी पाटन मंदिर, बलरामपुर

तरकुलहा मंदिर, गोरखपुर

गोरखपुर जिले में माता का एक चमत्कारी मंदिर है, जो तरकुलहा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर को लेकर एक मान्यता है कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जब कोई अंग्रेज मां के मंदिर के पास से गुजरता था तो क्रांतिकारी बंधू सिंह अंग्रेज का सिर काटकर देवी मां को समर्पित करता था।

तरकुलहा मंदिर, गोरखपुर

अंग्रेजों ने बंधू सिंह को पकड़ लिया और सार्वजनिक फांसी की सजा सुनाई लेकिन जैसे ही बंधू सिंह को फांसी दी जाने लगी, फांसी का फंदा टूट गया। ऐसा 6 बार हुआ।

अंत में जल्लाद बंधू सिंह के सामने गिड़गिड़ाते हुए बोला कि अगर उसने बंधू सिंह को फांसी नहीं दी तो अंग्रेज उसे मार डालेंगे।

बंधू सिंह ने माता से प्रार्थना की तो 7वीं बार उन्हें फांसी हो गई। उसके बाद से माता की महिमा दूर दूर तक फैली और लोग यहां अपनी मनोकामनाएं लेकर आने लगे।

प्रयाग शक्तिपीठ मां ललिता मंदिर, प्रयागराज

52 शक्तिपीठ में से एक संगम नगरी प्रयागराज में है। यहां मां सती के हाथ की उंगली गिरी थी। यहां माता ललिता के तीन मंदिर हैं और तीनों को ही शक्तिपीठ माना जाता है। नवरात्रि में माता के मंदिर में भक्तों का जमावड़ा लगता है।

ललिता देवी मंदिर, प्रयागराज

विशालाक्षी शक्तिपीठ, वाराणसी

काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर माता का शक्तिपीठ है। इस मंदिर का नाम विशालाक्षी मंदिर है। यहां माता सती के काम के मणि जड़ित कुंडल गिरे थे। इसे इसे मणिकर्णिका घाट भी कहते हैं। यहां माता को विशालाक्षी मणिकर्णी के रूप में पूजा जाता है।

विशालाक्षी शक्तिपीठ, वाराणसी
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