Rajasthan News: राजस्थान में चेहरा विहीन भाजपा, वसुंधरा को किनारे करना BJP के लिए बड़ा जोखिम

ऐसी चर्चाएं तो पहले से तेज़ थीं लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगातार दो जनसभाओं में मानो उन पर मुहर लगा दी.
वह जिस खुली जीप पर सवार होकर आए, उनके साथ सिर्फ़ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और सांसद सीपी जोशी थे, पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश की प्रभावशाली नेता वसुंधरा राजे नहीं थीं.

इमेज क्रेडिट : सोशल मीडिया

प्रधानमंत्री ने जयपुर की सभा में न तो पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का ज़िक्र किया और न ही उनके नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती भाजपा सरकार की उपलब्धियों का.राजस्थान में चेहरा विहीन भाजपा की इस स्थिति को लेकर चर्चाएं छिड़ गई हैं. भाजपा ने नई संसद के पहले ही सत्र में ‘नारी शक्ति वंदन विधेयक’ को दोनों सदनों में पारित करवाया है.ऐसे समय में प्रदेश की एक ताक़तवर महिला नेता अगर अग्रणी भूमिका में नहीं दिख रही हैं तो ज़ाहिर है लोगों का ध्यान उस पर जाएगा ही.

हैरान करने वाली बात यह है कि एक अनुभवी नेता की तरह वे अपने ग़ुस्से और मनोभावों को लगातार पी रही हैं. उन्होंने अब तक ऐसी कोई प्रतिक्रिया सार्वजनिक तौर पर नहीं दी है, जिसकी उम्मीद उनसे बहुत से राजनीतिक खेमे लगाए हुए हैं.राजस्थान की राजनीति में क़रीब दस साल पहले अपने एक प्रतिद्वंद्वी को दी अशोक गहलोत की एक नसीहत को याद करें, “जो नेता इस प्रदेश में ज़हर पीना सीख जाता है, वह कामयाब हो जाता है और जो नहीं पी सकता, वह दरकिनार हो जाता है.”

कुछ लोग मान रहे हैं कि वसुंधरा इस समय गहलोत की पुरानी सलाह पर अमल कर रही हैं. वसुंधरा 2003 से लगातार हर पाँच साल बाद अपनी प्रभावशाली यात्राएं प्रदेश भर में निकालती रही हैं, यह पहला मौक़ा है, जब उनके नेतृत्व में यात्रा नहीं निकली और चार दिशाओं और चार इलाक़ों में अलग-अलग यात्राएँ सामूहिक नेतृत्व में पार्टी ने निकालीं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सारे कयासों को दरकिनार करते हुए सोमवार को चित्तौड़गढ़ के सांवरिया सेठ में हुई सभा में साफ़ कहा, इस विधानसभा चुनाव में सिर्फ़ एक ही चेहरा है और वह कमल, हमारा उम्मीदवार सिर्फ़ कमल है, इसलिए एकजुटता के साथ कमल को जिताने के लिए भाजपा कार्यकर्ता काम करें.
प्रदेश के इस मौजूदा राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में अब प्रश्न उठ खड़ा हुआ है कि भाजपा ने राज्य में किसी को मुख्यमंत्री का चेहरा क्यों नहीं बनाया है? इसके पीछे क्या वजह है?
और भी कई प्रश्न इससे जुड़ गए हैं, क्या किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन सकी? ऐसा हुआ तो क्यों हुआ? वसुंधरा राजे की उपेक्षा क्यों हो रही है? क्या ये स्थिति भाजपा के पक्ष में जाएगी? क्या इस स्थिति का भाजपा को नुक़सान हो सकता है?
हमने इन प्रश्नों के जवाब तलाश करने की कोशिश आम मतदाताओं और कुछ सजग प्रेक्षकों से बातचीत करके की.
राजस्थान के चुनावी समर को लेकर हम जब भाजपा और संघ के पुराने नेताओं से बातचीत करते हैं तो एक नया सार यह निकलकर आ रहा है कि अब बाक़ी प्रदेशों की तरह भाजपा का चेहरा तो बदला ही जा रहा है, उसकी चाल भी बदली जा रही है, राजस्थान में तो पार्टी का चरित्र भी बदलने की तैयारी में है.

इस बार शुरू से कुछ संदेह जताए जा रहे थे कि संभवत: वसुंधरा को चुनाव में चेहरा घोषित नहीं किया जाए, लेकिन भाजपा की चारों राजनीतिक यात्राएं जहाँ-जहाँ गईं, वहाँ-वहाँ वसुंधरा की ग़ैर-मौजूदगी के कारण उल्लास की कमी लोगों ने महसूस की.प्रेक्षकों का मानना है कि राजस्थान में भैरो सिंह शेखावत के बाद भाजपा अब एक और पीढ़ी के परिवर्तन वाले दौर में है. संघ और भाजपा के नेता अब पार्टी को एक नए चरित्र में ढालने तो जा ही रहे हैं, पार्टी संगठन में वे जनरेशन शिफ़्ट भी कर रहे हैं.

एक प्रमुख संघनिष्ठ भाजपा नेता का कहना है, “मोदी देश भर में अमृतकाल की टीम तैयार कर रहे हैं, जो 2047 में पार्टी को अभूतपूर्व कामयाबी के दौर में ले जाए, और आज जो चेहरे तय हो रहे हैं, वे अगले 25 साल के लिए होंगे, इसलिए अभी और बहुत से बदलाव देखने को मिलेंगे.”

संघ के पुराने नेता और भाजपा में कई राजनीतिक पीढ़ियों का उतार-चढ़ाव देख चुके कन्हैयालाल चतुर्वेदी कहते हैं, “देश हो या प्रदेश, अच्छे परिवर्तन हो रहे हैं. नए लोग आने ही चाहिए, नए तभी आएंगे, जब पुराने अपने अनुभवों से और नए अपने काम से संगठन को मज़बूत बनाएंगे, एमएलए हो या एमपी, तीन बार से अधिक मौक़ा नहीं दिया जाना चाहिए, तभी तो युवा आगे आएंगे.”
चतुर्वेदी ने संघ की प्रसिद्ध पत्रिका “पाथेय कण’ का लंबे समय तक संपादन किया है. वे बताते हैं, “संघ में भी अब नई पीढ़ी आ चुकी है, नए लोग तेज़ी से आ रहे हैं, हमारे यहाँ अब अधिकतर प्रचारक 50 साल से कम उम्र के हैं.’भाजपा का आला कमान बहुत ताक़तवर है और एक ताक़तवर नेतृत्व अपनी पसंद और नापसंद के नेताओं में अंतर करता है, भले ऐसा नेतृत्व भाजपा का हो या काँग्रेस का.

कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के कमज़ोर होने से राजस्थान में दूसरी तरह के हालात हैं और भाजपा का नेतृत्व मज़बूत होने से अलग तरह की परिस्थितियां बन गई हैं.
प्रेक्षक यह भी मानते हैं कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व जिस समय कमज़ोर था, तब क्षत्रपों के तेवर अलग थे और उनकी हुंकारों से आलाकमान के महलों की नींव हिलती थी लेकिन अब केंद्रीय नेतृत्व असाधारण रूप से शक्तिशाली है तो वहीं क्षत्रप सत्ता के रथ का घर्घर-नाद सुनकर चुप्पी साधे हैं. सत्ता, शक्ति और राज नेताओं का यह रवैया इसी तरह का रहता है.

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