Subrata Roy Sahara: सहारा ग्रुप के मुखिया सुब्रत रॉय का मुंबई में निधन, लखनऊ में अंतिम श्रधांजलि

सहारा ग्रुप: बिज़नेस मैन सुब्रत राॅय का 75 साल की उम्र में लंबी बीमारी के बाद मंगलवार देर रात निधन हो गया. बिहार के अररिया जिले के रहने वाले सुब्रत रॉय की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई कोलकाता में हुई और फिर वो गोरखपुर चले आये थे. साल 1978 में सुब्रत रॉय ने अपने एक दोस्त के साथ मिलकर स्कूटर पर बिस्किट और नमकीन बेचने का काम शुरू किया.

इमेज क्रेडिट-सोशल मीडिया प्लेटफार्म

सुब्रत रॉय के सहारा ग्रुप को खड़ा करने की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. सुब्रत रॉय का कभी गली-गली सामान बेचने से शुरू हुआ उनका ये सफर सहारा ग्रुप में तब्दील हुआ.

एक समय सहारा ग्रुप देश की सबसे बड़ी प्राइवेट एयरलाइंस कंपनी से लेकर हॉकी और क्रिकेट की टीम का मुख्य स्पॉन्सर होता था. सहारा ग्रुप का कारोबार को-ऑपरेटिव फाइनेंस कंपनी से लेकर रीयल एस्टेट, डी2सी एफएमसीजी और मीडिया सेक्टर तक फैला है. इस ग्रुप के इतिहास में एक ऐसा दौर भी आया जब देश के करोड़ों लोगों ने 10-20 रुपए रोजाना जमा करके सहारा में अपना खाता खोला.

सहारा ग्रुप बना देश का दूसरा सबसे बड़ा एम्प्लॉयर

सहारा ग्रुप के मुखिया सुब्रत रॉय ने साल 1978 में अपने एक दोस्त के साथ मिलकर एक छोटा सा बिज़नेस शुरू किया था. लेकिन किसे पता था कि एक दिन सहारा नाम को दो लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का एंपायर बना देगा. लोगों से 10-20 रुपए रोज जमा करवाकर सुब्रत रॉय ने भारत के फाइनेंस सेक्टर के लिए एकदम नई मिसाल पेश की. लोगों को उनकी छोटी-छोटी बचत पर अच्छा रिटर्न मिला. लोगों से जुटाए पैसों से दूसरे कारोबार खड़े किए.

सहारा कंपनी के इतिहास में वो दौर भी आया जब सहारा ग्रुप रेलवे के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा एम्प्लॉयर बन गया. ऑफिस और फील्ड को मिलाकर सहारा के अंब्रेला तले काम करने वाले एम्प्लॉइज की संख्या 12 लाख तक पहुंच गई. कोई भी प्राइवेट कंपनी आज तक देश में ये आंकड़ा नहीं छू पाई है.

वर्ष 1978 में चिटफंड कंपनी से पहचान

सुब्रत रॉय ने 1978 में अपने एक दोस्त के साथ मिलकर चिटफंड कंपनी शुरू की. यही कंपनी बाद में सहारा का अनोखा को-ऑपरेटिव फाइनेंस बिजनेस बना. एक कमरे के साथ शुरू हुई ये कंपनी देखते ही देखते पूरे देश में पॉपुलर हो गई. ये शहर दर शहर और गांव दर गांव पहुंच बढ़ाती गई. मध्यम वर्ग से लेकर निचले तबके लोगों ने सहारा पर पूरा भरोसा जताया और सहारा के पास पैसों का एक बड़ा पूल जमा होता गया.

नो लिमिट बिजनेस मॉडल

सुब्रत रॉय के सहारा फाइनेंस मॉडल को गरीब और मध्यम वर्ग ने हाथों हाथ लेना शुरु किया. कंपनी की सबसे बड़ी यूएसपी थी कि जिसके पास जितना भी पैसा है वो अपने खाते में जमा कर सकता है. उनके इस मॉडल ने फाइनेंशियल इंक्लूजन की एक नई परिभाषा तय की. इस ‘नो मिनिमम लिमिट’ डिपॉजिट की वजह से गरीब से गरीब आदमी भी सहारा में खाता खुलवाने लगा.

सहारा का कारोबार

सहारा ग्रुप की शुरुआत भले को-ऑपरेटिव फाइनेंस से हुई, लेकिन सुब्रत रॉय का विजन काफी बड़ा था. सहारा ग्रुप ने स्पोर्ट्स टीम को स्पॉन्सर करना शुरू किया. साथ में ही सहारा ग्रुप ने एयरलाइंस सेक्टर में भी हाथ आजमाया, हालांकि कुछ समय बाद बाद में उस बिजनेस को बेच दिया. इसके अलावा सहारा ग्रुप का बिजनेस रीयल एस्टेट सेक्टर, टाउनशिप बनाने, मीडिया और एंटरटेनमेंट, हेल्थ केयर, एजुकेशन, होटल इंडस्ट्री, इलेक्ट्रिक व्हीकल, डी2सी एफएमसीजी और टेक्नोलॉजी जैसे सेक्टर तक फैला हुआ है.

सेबी के साथ विवाद से नुकसान

सहारा ग्रुप की समस्या तब शुरू हुई, जब सेबी ने उसे धन की हेर-फेर के मामले में दबोच लिया. इसके चलते सुब्रत रॉय को सुप्रीम कोर्ट में कार्रवाई का सामना करना पड़ा और 2 साल से भी ज्यादा वक्त जेल में काटना पड़ा. इसी के साथ सहारा के पतन की दास्तान लिखनी शुरू हो गई.

सुब्रत राय के संघर्ष से लेकर कामयाबी तक के सफर पर बायोपिक

सुब्रत राय सहारा के 75वें जन्मदिन पर ‘द केरला स्टोरी’ के निर्देशक सुदीप्तो सेन ने उनकी बायोपिक बनाने का ऐलान किया था। इस बायोपिक में सुब्रत के संघर्ष के दिनों से लेकर कामयाबी के शिखर तक पहुंचने का हर अनुभव दिखाया जाएगा।

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