काबुल छोड़ने के सिवा कोई रास्ता नहीं था: पूर्व अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी
रियाद। अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कहा है कि काबुल छोड़ने का फैसला उन्होंने मिनटों में लिया था।
उन्होंने कहा काबुल छोड़ने के फैसले का मुझे भी नहीं पता था। यह बात उन्होंने बीबीसी रेडियो 4 से कही है।
‘नहीं पता था कि मुझे काबुल छोड़ना पड़ेगा’
गनी ने कहा है कि 15 अगस्त को जब इस्लामी अतिवादियों ने काबुल पर कब्जा कर लिया और मेरी सरकार गिर गई। मुझे कोई आभास तक नहीं था कि अफगानिस्तान में यह मेरा आखिरी दिन होने वाला है।
दोपहर तक राष्ट्रपति भवन की सुरक्षा भी खत्म हो चुकी थी। उन्होंने कहा है कि अगर मैं कोई स्टैंड लेता तो वे सभी मारे जाते। वे मेरा बचाव करने में सक्षम नहीं थे।
गनी ने कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हमदुल्ला मोहिब वाकई डरे हुए थे। उन्होंने मुझे दो मिनट से अधिक का समय नहीं दिया।
उन्होंने खोस्त, जलालाबाद आदि शहरों के बारे में सोचा लेकिन ये शहर तालिबान के कब्जे में आ चुके थे लेकिन जब हमने उड़ान भरी तो यह साफ था कि हम जा रहे हैं। गनी तब से संयुक्त अरब अमीरात में हैं।
पैसे लेकर भाग गए गनी?
अशरफ गनी पर लाखों रुपये लेकर अफगानिस्तान छोड़ने का आरोप लगा लेकिन उन्होंने पैसे लेकर अफगानिस्तान छोड़ने की बात से साफ मना कर दिया।
गनी ने बताया है कि मेरी पहली चिंता काबुल में होने वाली लड़ाई को रोकने की थी। काबुल को बचाने के लिए मुझे ऐसा करना पड़ा। यह कोई राजनीतिक समझौता नहीं था, यह एक हिंसक तख्तापलट था।
उन्होंने कहा कि मुझे बलि का बकरा बनाया गया। मेरे जीवन के सभी काम इसके नीचे दबा दिए गए। मेरे मूल्यों को कुचल दिया गया। अफगानिस्तान में जो कुछ हुआ वह अफगानिस्तान का मसला न बनकर अमेरिकी मसला बन गया।