समावेशी विचारधारा के जरिए सशक्त भारत के निर्माण के पोषक थे पं. दीनदयाल उपाध्याय

Pandit Deendayal Upadhyay

पं. दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चिंतक और संगठनकर्ता थे। वे भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानववाद नामक विचारधारा दी।

पं. दीनदयाल उपाध्याय एक समावेशित विचारधारा के समर्थक थे जो एक मजबूत और सशक्त भारत का निर्माण कर सके। राजनीति के अतिरिक्त साहित्य में भी उनकी गहरी अभिरुचि थी। उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में कई लेख लिखे, जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए।

पं. दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर 1916 को जयपुर के निकट धानक्या गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय था, जो नगला चंद्रभान (फरह, मथुरा) के निवासी थे। उनकी माता का नाम रामप्यारी था, जो धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। पिता रेलवे में जलेसर रोड स्टेशन के सहायक स्टेशन मास्टर थे।

दूरदर्शी राजनीतिज्ञ पं. दीनदयाल उपाध्याय ने समय समय पर विभिन्न चुनौतियों व समस्याओं के निराकरण के लिए अपने विचार-दर्शन से देश का मार्गदर्शन किया। उनके एकात्म मानववाद व अंत्योदय के मंत्र से तमाम राजनीतिज्ञ जनकल्याण व राष्ट्रसेवा के लिए आज भी प्रेरित होते हैं।

1967 में जनसंघ की कमान संभालने वाले दीनदयाल उपाध्याय की अगले साल ही, 10 फरवरी 1968 को रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत हो गई थी। इस घटना ने पूरे देश को चकित कर दिया।

दीनदयाल सियालदाह एक्सप्रेस से लखनऊ से पटना जा रहे थे। रात करीब 2 बजे ट्रेन मुगलसराय स्टेशन पहुंची, तो वो ट्रेन में मौजूद नहीं थे।

स्टेशन के नजदीक ही उनकी लाश पड़ी मिली, उस दौरान उनके हाथ में 5 रुपये का नोट भी था। हालांकि आज तक यह पता नहीं चल सका कि उनकी मौत का असली कारण क्या था।

1937 में जब पं. दीनदयाल उपाध्याय कानपुर से बीए कर थे, अपने सहपाठी बालूजी महाशब्दे की प्रेरणा से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आये। संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार का सान्निध्य कानपुर में ही मिला।

पं. दीनदयाल उपाध्याय ने पढ़ाई पूरी होने के बाद संघ का दो वर्षों का प्रशिक्षण पूर्ण किया और संघ के जीवनव्रती प्रचारक हो गये। आजीवन संघ के प्रचारक रहे।

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