गणितज्ञ रामानुजन जयंती: पूरी दुनिया को मनवाया अपने गणित ज्ञान का लोहा

गणितज्ञ रामानुजन

नई दिल्ली। आज का दिन भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि केवल 32 वर्ष के जीवन में ही पूरी दुनिया को अपने गणित के ज्ञान का लोहा मनवाने वाले श्रीनिवास अयंगर रामानुजन की आज जयंती है।

रामानुजन की जयंती  पर ही देश में हर साल 22 दिसंबर राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाया जाता है।

रामानुजन की उपलब्धियों को सम्मान देने और इस तारीख को यादगार बनाने के लिए भारत सरकार ने इसे राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मान्यता दी थी।

साल 2012 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने मद्रास विश्वविद्यालय में रामानुजन की 125वीं जयंती समारोह के दौरान इसकी घोषणा की थी। 

गणित के कारण अन्य विषयों में होते थे फेल

रामानुजन का जन्म तमिलनाडु राज्य के ईरोड में 22 दिसंबर वर्ष 1887 में हुआ था। उन्होंने 1903 में तंजावुर के कुंभकोणम में सरकारी कॉलेज में प्रवेश लिया।

यहां गणित में जरूरत से ज्यादा रूचि होने के कारण उन्हें अन्य विषयों में फेल होना पड़ता था या कम अंक प्राप्त होते थे। आगे जाकर अपने जीवनकाल में गणित के कई सिद्धांतों के क्षेत्र में उनका बड़ा योगदान दिया था। 

12 साल की उम्र में विकसित किए थ्योरम्स

रामानुजन बचपन से ही गणित में किसी अन्य इंसान से कहीं अधिक निपुण थे। केवल 12 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने बिना किसी की सहायता लिए त्रिकोणमिति में महारत हासिल कर ली थी और कई थ्योरम्स को विकसित कर लिया था।

उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से भी पढ़ाई की। वर्ष 1911 में इंडियन मैथमेटिकल सोसाइटी के जर्नल में बर्नूली नंबरों पर आधारित उनका 17 पन्नों का एक पेपर पब्लिश हुआ था। 

मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में की नौकरी

वर्ष 1912 में आर्थिक कारणों की वजह से उन्हें मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क के तौर पर नौकरी भी करनी पड़ी।

यहां एक अंग्रेज सहकर्मी ने उनकी गणित कौशल से प्रभावित होकर उन्हें गणित पढ़ने के लिए ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जीएच हार्डी के पास भेजा।

प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज में दाखिला भी मिल गया था। प्रोफेसर हार्डी ने ही छात्रवृत्ति में रामानुजन की मदद की। 

1917 में मैथेमैटिकल सोसायटी के लिए चुने गए

रामानुजन ने वर्ष 1916 में गणित से बीएससी की डिग्री प्राप्त की थी। इसके एक वर्ष बाद ही 1917 में उन्हें लंदन मैथेमैटिकल सोसायटी के लिए चुन लिया गया। बिना किसी की मदद के उन्होंने हजारों इक्वेशन बनाएं और 3900 परिणामों को संकलित किया।

इनमें से कुछ- रामानुजन प्राइम, रामानुजन थीटा फंक्शन, विभाजन सूत्र और मॉक थीटा फंक्शन आदि है। उन्होंने आगे चलकर गणित के डाइवरजेंट सीरीज पर भी अपने सिद्धांत दिएं।

1918 में रॉयल सोसायटी के फेलो बने

वर्ष 1918 में रामानुजन को एलीप्टिक फंक्शंस और संख्याओं के सिद्धांत पर उनके शोध के लिए रॉयल सोसायटी के फेलो के रूप में चुना गया। वह इस फेलो के लिए चुने जाने वाले पहले भारतीय थे।

खास बात यह थी की रॉयल सोसायटी के पूरे इतिहास में उनसे कम आयु का सदस्य न तब था और न आज तक हुआ है। इसी साल उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज में भी पहले भारतीय फेलो के रूप में चुना गया था। आज भी उनके बनाए गए ऐसे कई थ्योरम हैं, जो गणितज्ञों के लिए एक पहेली बनें हुए हैं। 

32 की उम्र में हुआ निधन

वर्ष 1919 में रामानुजन भारत वापस चले आए थे। 26 अप्रैल 1920 को उन्होंने कुंभकोणम में ही अंतिम सांस ली। वर्ष 1991 में उनकी जीवनी-द मैन हू न्यू इंफिनिटी (The Man Who Knew Infinity) प्रकाशित हुई थी। इसी जीवनी पर आगे चलकर साल 2015 में फिल्म भी बनाई गई। 

1729 से रिश्ता

रामानुजन की जीवनी के अनुसार एक बार प्रोफेसर हार्डी अस्पताल में रामानुजन को देखने के लिए पहुंचे। उन्होंने बताया की वह 1729 नंबर की एक खास टैक्सी में बैठ कर यहां तक आए हैं।

रामानुजन ने उन्हें बताया कि यह दो अलग क्यूब के योग को दो तरीकों से जानने के लिए सबसे छोटा अंक है। तभी से गणित की दुनिया में 1729 अंक आज भी हार्डी-रामानुजन नंबर के नाम से प्रचलित है। 

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