आज है नृसिंह जयंती, तुला राशि वाले जरूर रखें उपवास
आज नृसिंह जयंती है, नारायण के चौथे अवतार नृसिंह मानव और सिंह के संयुक्त विग्रह हैं। इसमें प्रदोष व्यापिनी चतुर्दशी ही लेनी चाहिए।
यदि दोनों दिन ऐसी चतुर्दशी न मिले, तो कम से कम त्रयोदशी छोड़कर दूसरे ही दिन उपवास करना चाहिए। इसके अलावा शनिवार, स्वाति नक्षत्र, सिद्धि और वणिज का संयोग हो तो उस दिन व्रत करना चाहिए।
नृसिंह पुराण में लिखा है-
स्वातीनक्षत्रेसंयोग शनिवार महद्वतम्। सिद्धियोगस्य संयोग वणिजे करणे तथा।।
पुंसां सौभाग्ययोगेन लभ्यते दैवयोगत:। सवैरेतैस्तु संयुक्तं हत्याकोटिविनाषनम् ।।
नृसिंह भगवान की राशि तुला थी। जिन लोगों की तुला राशि है, उन्हें चल रही शनि की ढैय्या से राहत पाने के लिए यह व्रत जरूर करना चाहिए। प्रात:काल में व्रत करने की इच्छा लेकर तांबे के पात्र में जल लें और मंत्र पढ़ें- नृसिंह देवदेवेश तव जन्मदिने शुभे। उपवासं करिष्यामि सर्वभोगविवर्जित:।।
दोपहर में तिल, गोमय, मिट्टी और आंवले से अलग-अलग चार बार स्नान करें। फिर वहीं नित्यपूजा आदि करें। शाम को एक वेदी पर अष्टदल बनाकर सिंह,नृसिंह और माता लक्ष्मी की सोने की मूर्ति आदि स्थापित कर शोडषोपचार,पंचोपचार आदि से पूजा करें, पूर्ण ब्रह्मचर्य में रहें।
रात में गायन-वादन, पुराण पढ़ना, हरि कीर्तन से जागरण करें। अगली सुबह फिर पूजन करें और यथासंभव दान आदि कर प्रसाद-भोजन ग्रहण करें। इससे नृसिंह भगवान आपकी रक्षा करेंगे और बलवान संतान प्रदान करेंगे।
नृसिंह अवतार की कथा
पृथ्वी के उद्धार के समय श्रीहरि ने वाराह अवतार में हिरण्याक्ष का वध किया। इससे उसका बड़ा भाई हिरण्यकशिपु बड़ा दुखी हुआ। उसने श्री हरि को पराजित करने के लिये कठिन तप किया और ब्रह्मा जी से इच्छानुसार वरदान पाया।
उसने अपने राज्य में विष्णु पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया परन्तु उसके पुत्र प्रह्लाद ने श्रीहरि की भक्ति को ही श्रेष्ठ बताया।
हिरण्यकशिपु ने प्रहलाद के प्राण लेने का कई बार प्रयास किया, किंतु हर बार विष्णु जी ने उसकी रक्षा की। अंतत: विष्णु जी ने नृसिंह अवतार लेकर उसका वध किया। बद्रीनाथ से पूर्व जोशीमठ और मप्र के शोणितपुर में इनके भव्य मंदिर है।